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कोरोना के कारण भुखमरी की कगार पर गरीब, ETV भारत की पड़ताल में सरकारी दावों की पोल खुली - corona virus effect in jharkhand

झारखंड में कोरोना महामारी को कारण सभी वर्ग प्रभावित हो रहे हैं. सबसे ज्यादा मार गरीब वर्ग पर पड़ रही है. उनके सामने रोजी रोटी का प्रश्न यक्ष खड़ा है. दूसरी ओर गरीब तबकों के लिए सरकार द्वारा किए गए दावे हवा हवाई साबित हो रहे हैं. वास्तव में गरीब वर्ग के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है.

due to corona epidemic in dhanbad starvation on poor section
गरीब तबका भुखमरी की कगार पर
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Published : Apr 13, 2020, 11:20 AM IST

Updated : Apr 17, 2020, 12:53 PM IST

धनबाद: कोरोना महामारी के कारण राज्य में पूरी तरह से लॉकडाउन लागू है. सभी जिलों में इसका सख्ती से पालन हो रहा है. इस विपदा की घड़ी में गरीबों के सामने रोजी रोटी का संकट मंडरा रहा है.

देखें पूरी खबर

लॉकडाउन के दौरान गरीबों को राशन आसानी से उपलब्ध हो सके इसके लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अफसोस इस बात कि है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ उन जरूरतमंदों तक नही पहुंच पा रहा है.

महज कागज तक सिमटकर रह गए सरकारी दावे

जिले में कुल 4 लाख 26 हजार राशनकार्ड धारक हैं, जिन्हें लाल कार्ड और पीला कार्ड के नाम से जाना जाता है. ऐसे कार्ड धारकों को दो महीने का एकमुश्त राशन सरकार की ओर से दिया जा रहा है. सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 44 हजार ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने राशन कार्ड के लिए अपना आवेदन दिया है. सरकार इन्हें भी राशन मुहैया करा रही है.

ये भी पढ़ें-कोरोना : 24 घंटे में 51 मौतें, अब तक 9300 से ज्यादा संक्रमित

इसके अलावा ऐसे परिवार जिनके पास न राशन कार्ड है और न ही उनके द्वारा विभाग को कोई आवेदन ही दिया गया है. ऐसे लोगों के लिए शहरी क्षेत्र में वार्ड पार्षद और ग्रामीण क्षेत्रों में मुखिया के बैंक अकाउंट में 10 हजार की राशि उपलब्ध कराई गई है.

ताकि इन परिवारों की मदद की जा सके. राशि खत्म होने पर पार्षद और मुखिया को यह राशि फिर से उपलब्ध कराई जाएगी. दूसरी ओर एसडीएम राज महेश्वरम कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान कोई भूखा ना रहे इसके लिए जिले के रेड क्रॉस भवन में सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाया गया है.

यहां सामाजिक संगठन, व्यवसायी वर्ग या राजनीतिक दल के नेता कच्चा अनाज उपलब्ध कराते हैं. यहां अनाज इकट्ठा किया जाता है. फिर सूचना के आधार पर कच्चे अनाज को जरुरतमंदों तक पहुंचाया जाता.

रोजगार बंद होने से मजदूर परेशान

इसके लिए नम्बर भी प्रशासन की ओर से जारी किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ बैठक कर उन्हें अनाज वितरण करने के लिए क्षेत्र का निर्धारण किया गया है. ताकि एक ही परिवार को लाभ ना मिलकर सभी जरूरतमंद परिवारों को लाभ मिल सके.

लॉकडाउन के दौरान कोई भी भूखा ना रहे या फिर किसी को खाने की तकलीफ नही हो रही है. इस बात की अधिकारी लाख दावे करें. लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत कुछ और ही बयां करती है.

जिले में कई ऐसे गरीब तबके के लोग हैं, जो प्रतिदिन काम कर वह अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं. लॉकडाउन के बाद उनकी स्थिति बेहद ही दयनीय है. ना तो उनके पास राशन कार्ड है और ना ही उन्हें सरकार द्वारा चलाई जा रही लॉकडाउन के दौरान किसी योजना का लाभ मिल सका है.

इसके अलावा किसी भी सामाजिक संगठनों ने भी इनकी ओर नजरें इनायत नही की है. सरिता, सुशीला, मोंगलु टुडू, सरस्वती मुर्मू और सोनामुनु टुडू जैसी कई महिलाओं ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनके पति कामकाज नही कर पा रहें हैं. घर पर बैठे हैं. सभी दिहाड़ी मजदूर है. राशन कार्ड भी नही है. महिलाओं ने कहा कि सरकार द्वारा वर्तमान में दी जा रही किसी भी योजना का लाभ हमे नही मिल पा रहा है.

यह भी पढ़ेंः खेतों में लहलहा रही है फसल फिर भी मायूस हैं किसान, जानिए क्यों

लछमिनिया देवी नाम की एक महिला ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा कि मेरे पति बीमार रहते हैं. अक्सर वे पड़े रहते हैं. मैं ही बाहर जाकर प्रतिदिन काम करती थी. दो वक्त की रोटी जुगाड़ हो पाती थी.

लेकिन लॉकडाउन के बाद अब दो वक्त तो क्या एक वक्त का जुगाड़ बड़ी मुश्किल से हो पाता है. वह कहती है कि राशन कार्ड नही है. इसलिए राशन नही मिला है. लोग बोलते हैं ब्लॉक ऑफिस जाने के लिए, लेकिन हम नही जानते कि ब्लॉक ऑफिस कहां है. उन्होंने कहा कि किसी ने भी अबतक हमारी मदद नही की है.

वहीं सहदेव टुडू का कहना है कि वह दिहाड़ी मजदूर है. लॉकडाउन के बाद काम पूरी तरह से बन्द है. राशन कार्ड के लिए कई बार आवेदन दिया, लेकिन राशन कार्ड नही बन सका. सहदेव ने बताया कि घर से 3किलोमीटर की दूरी पर खिचड़ी बांटी जाती है.

प्रतिदिन वहां से खिचड़ी खाकर और लेकर घर आते हैं.लॉकडाउन के दौरान इन गरीबों तक अनाज का एक दाना नही पहुंच पाना प्रशासन की उदासीन रवैया का एक जीता जागता उदाहरण है. प्रशासन को धरातल पर कार्य करने की जरूरत है. तभी जरूरतमंदों तक सरकार की योजनाओं का लाभ मिल सकेगा.

धनबाद: कोरोना महामारी के कारण राज्य में पूरी तरह से लॉकडाउन लागू है. सभी जिलों में इसका सख्ती से पालन हो रहा है. इस विपदा की घड़ी में गरीबों के सामने रोजी रोटी का संकट मंडरा रहा है.

देखें पूरी खबर

लॉकडाउन के दौरान गरीबों को राशन आसानी से उपलब्ध हो सके इसके लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अफसोस इस बात कि है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ उन जरूरतमंदों तक नही पहुंच पा रहा है.

महज कागज तक सिमटकर रह गए सरकारी दावे

जिले में कुल 4 लाख 26 हजार राशनकार्ड धारक हैं, जिन्हें लाल कार्ड और पीला कार्ड के नाम से जाना जाता है. ऐसे कार्ड धारकों को दो महीने का एकमुश्त राशन सरकार की ओर से दिया जा रहा है. सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 44 हजार ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने राशन कार्ड के लिए अपना आवेदन दिया है. सरकार इन्हें भी राशन मुहैया करा रही है.

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इसके अलावा ऐसे परिवार जिनके पास न राशन कार्ड है और न ही उनके द्वारा विभाग को कोई आवेदन ही दिया गया है. ऐसे लोगों के लिए शहरी क्षेत्र में वार्ड पार्षद और ग्रामीण क्षेत्रों में मुखिया के बैंक अकाउंट में 10 हजार की राशि उपलब्ध कराई गई है.

ताकि इन परिवारों की मदद की जा सके. राशि खत्म होने पर पार्षद और मुखिया को यह राशि फिर से उपलब्ध कराई जाएगी. दूसरी ओर एसडीएम राज महेश्वरम कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान कोई भूखा ना रहे इसके लिए जिले के रेड क्रॉस भवन में सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाया गया है.

यहां सामाजिक संगठन, व्यवसायी वर्ग या राजनीतिक दल के नेता कच्चा अनाज उपलब्ध कराते हैं. यहां अनाज इकट्ठा किया जाता है. फिर सूचना के आधार पर कच्चे अनाज को जरुरतमंदों तक पहुंचाया जाता.

रोजगार बंद होने से मजदूर परेशान

इसके लिए नम्बर भी प्रशासन की ओर से जारी किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ बैठक कर उन्हें अनाज वितरण करने के लिए क्षेत्र का निर्धारण किया गया है. ताकि एक ही परिवार को लाभ ना मिलकर सभी जरूरतमंद परिवारों को लाभ मिल सके.

लॉकडाउन के दौरान कोई भी भूखा ना रहे या फिर किसी को खाने की तकलीफ नही हो रही है. इस बात की अधिकारी लाख दावे करें. लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत कुछ और ही बयां करती है.

जिले में कई ऐसे गरीब तबके के लोग हैं, जो प्रतिदिन काम कर वह अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं. लॉकडाउन के बाद उनकी स्थिति बेहद ही दयनीय है. ना तो उनके पास राशन कार्ड है और ना ही उन्हें सरकार द्वारा चलाई जा रही लॉकडाउन के दौरान किसी योजना का लाभ मिल सका है.

इसके अलावा किसी भी सामाजिक संगठनों ने भी इनकी ओर नजरें इनायत नही की है. सरिता, सुशीला, मोंगलु टुडू, सरस्वती मुर्मू और सोनामुनु टुडू जैसी कई महिलाओं ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनके पति कामकाज नही कर पा रहें हैं. घर पर बैठे हैं. सभी दिहाड़ी मजदूर है. राशन कार्ड भी नही है. महिलाओं ने कहा कि सरकार द्वारा वर्तमान में दी जा रही किसी भी योजना का लाभ हमे नही मिल पा रहा है.

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लछमिनिया देवी नाम की एक महिला ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा कि मेरे पति बीमार रहते हैं. अक्सर वे पड़े रहते हैं. मैं ही बाहर जाकर प्रतिदिन काम करती थी. दो वक्त की रोटी जुगाड़ हो पाती थी.

लेकिन लॉकडाउन के बाद अब दो वक्त तो क्या एक वक्त का जुगाड़ बड़ी मुश्किल से हो पाता है. वह कहती है कि राशन कार्ड नही है. इसलिए राशन नही मिला है. लोग बोलते हैं ब्लॉक ऑफिस जाने के लिए, लेकिन हम नही जानते कि ब्लॉक ऑफिस कहां है. उन्होंने कहा कि किसी ने भी अबतक हमारी मदद नही की है.

वहीं सहदेव टुडू का कहना है कि वह दिहाड़ी मजदूर है. लॉकडाउन के बाद काम पूरी तरह से बन्द है. राशन कार्ड के लिए कई बार आवेदन दिया, लेकिन राशन कार्ड नही बन सका. सहदेव ने बताया कि घर से 3किलोमीटर की दूरी पर खिचड़ी बांटी जाती है.

प्रतिदिन वहां से खिचड़ी खाकर और लेकर घर आते हैं.लॉकडाउन के दौरान इन गरीबों तक अनाज का एक दाना नही पहुंच पाना प्रशासन की उदासीन रवैया का एक जीता जागता उदाहरण है. प्रशासन को धरातल पर कार्य करने की जरूरत है. तभी जरूरतमंदों तक सरकार की योजनाओं का लाभ मिल सकेगा.

Last Updated : Apr 17, 2020, 12:53 PM IST
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