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PMCH में 14 सालों तक चला साफ-सफाई के टेंडर का खेल, स्वास्थ्य मंत्री ने दिए जांच के आदेश

पीएमसीएच में सफाई व्यवस्था के लिए एक बार फिर टेंडर प्रक्रिया पर विवाद शुरू हो गया है. जगजीवन श्रमिक सहयोग समिति ने वर्तमान में काम कर रही एजेंसी मेसर्स वर्मा इंटरप्राइजेज पर निहित शर्तों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है. समिति ने टुंडी विधायक मथुरा महतो को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है. जिसके बाद विधायक ने इस मामले को स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को सौंप दिया है.

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Published : Aug 5, 2020, 1:37 PM IST

Demand for investigation on cleanliness working agency in PMCH dhanbad
Demand for investigation on cleanliness working agency in PMCH dhanbad

धनबाद: पीएमसीएच में सफाई व्यवस्था के लिए एक बार फिर टेंडर प्रक्रिया पर विवाद शुरू हो गया है. जगजीवन श्रमिक सहयोग समिति ने वर्तमान में काम कर रही एजेंसी मेसर्स वर्मा इंटरप्राइजेज पर निहित शर्तों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है. इसे लेकर जगजीवन श्रमिक सहयोग समिति ने टुंडी विधायक मथुरा महतो को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है.

जगजीवन श्रमिक सहयोग समिति लिमिटेड, साल 2006 से 2019 तक पीएमसीएच में सफाई का ठेका लेकर कार्य करते आ रही थी, लेकिन कभी भी इस समिति ने इस बीच हुए टेंडर प्रक्रिया में भाग नहीं लिया. सिर्फ एक्सटेंशन लेकर अपनी कार्य अवधि को बढ़ाता रहा. येनकेन प्रकारेण टेंडर प्रक्रिया भी इन 13 सालों के दौरान रद्द भी होती रही. अब एक बार फिर कुछ ऐसा ही शगूफा इस समिति ने छोड़ा है. समिति की ओर से टुंडी विधायक मथुरा महतो को एक पत्र लिखकर वर्तमान में पीएमसीएच की साफ-सफाई का काम देख रही एजेंसी मेसर्स वर्मा इंटरप्राइजेज पर आरोप लगाया कि निहित शर्तों को अनदेखी कर एजेंसी ने टेंडर लिया है. सहयोग समिति की शिकायत पर विधायक ने स्वास्थ मंत्री बन्ना गुप्ता से जांच कराने की मांग की है. सहयोग समिति का टेंडर प्रकिया से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. विधायक मथुरा महतो की शिकायत पर स्वास्थ्य मंत्री ने जांच के आदेश दे दिए हैं. यही नहीं टेंडर की जांच शुरू भी हो गई है और जांच जारी है. तीन सदस्यीय टीम टेंडर प्रक्रिया की जांच कर रही है. रांची के तीन वरीय अधिकारियों की ओर से मामले की जांच की जा रही है.

कब क्या हुआ
साल 2006 में टेंडर प्रकिया में तीन एजेंसी, टेंडर प्रक्रिया में शामिल हुई थी. इन तीनों को तकनीकी रूप से सफल पाते हुए इनका वित्तीय भाग खोला गया. पहला कृष्णा कंस्ट्रक्शन कंपनी, बरियातू, रांची. जिसकी राशि 216150 रुपए, दूसरा जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति जिसकी राशि 2,11000 रुपए और तीसरा मेसर्स केबीपी सिन्हा, हरमू हाउसिंग कॉलनी, रांची 16,919 रुपए था. कृष्णा कंस्ट्रक्शन कंपनी की टेंडर राशि ज्यादा होने के कारण छांट दिया गया था. तकनीकी अहर्ताओं को पूरा नही करने की स्थिति में मेसर्स केबीपी सिन्हा के टेंडर को रद्द कर दिया गया. जबकि सहयोग समिति L2 होते हुए इनको L1 दर से 10 प्रतिशत दर बढ़ाकर कार्य आवंटित कर दिया गया. मेसर्स के बीपी सिन्हा का कार्य अगर संतोषजनक नहीं था तो किस परिस्थिति में इनका वित्तीय भाग खोला गया. L 1 नहीं होते हुए भी जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति को कार्य आवंटित कर दी गई. साथ ही वर्ष 2006 में 18,1000 रुपए से आवंटित कार्य बिना टेंडर का वर्ष 2019 में बढ़कर लगभग 15 लाख रुपए हो गया.

एजेंसी को लाभ पहुंचाने की कोशिश
टेंडर प्रकिया की जानकारों की मानें तो किसी भी टेंडर के पहले प्रकिया में शामिल होने वाले एजेंसियों के तकनीकी रुप से परिपूर्ण होने के बाद ही उनका वित्तीय टेंडर खोला जाता है. वित्तीय टेंडर खोलने के पहले प्रकिया में शामिल होने वाली एजेंसियों की तकनीकी रूप से सही होना जरूरी होता है. तकनीकी रूप से सही नहीं होने पर वित्तीय टेंडर खोलने के पूर्व ही वैसी एजेंसी को छांट दिया जाता है, लेकिन 2006 के टेंडर में ऐसा नही हुआ जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर खुलने के बाद मेसर्स के बीपी सिन्हा को तकनीकी कारणों से टेंडर से अलग किया गया और सहयोग समिति को नियम के विरूद्ध कार्य आवंटित कर दिया गया. जानकारों ने बताया कि ऐसा किसी कंपनी या एजेंसी को लाभ पहुंचाने के मकसद से किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- विधायक मथुरा महतो ने दी कोरोना को मात, 7वीं बार में कोरोना रिपोर्ट आई नेगेटिव

जांच तक टेंडर भुगतान रोकने का आदेश

सूत्रों का यह भी कहना है कि जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति L1 नहीं था. जबकि सहयोग समिति को L1 बताते हुए साफ-सफाई का टेंडर दिया गया. अप्रैल महीने में संपूर्ण लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में स्वास्थ मंत्री बन्ना गुप्ता ने पीएमसीएच का निरीक्षण किया था. जिसमे कचड़ा डंप एरिया में कचड़े के ढेर पर उन्होंने नाराजगी जताते हुए वर्तमान में कार्यरत एजेंसी पर सवालिया निशान खड़ा किए थे. डीसी के निर्देश पर अधीक्षक की ओर से एजेंसी से स्पष्टीकरण मांगा गया. एजेंसी ने अपना स्पष्टीकरण अधीक्षक को सौंपा. एजेंसी के स्पष्टीकरण से अधीक्षक और डीसी संतुष्ट होने के बाद एवं मंत्री की नाराजगी को लेकर उनसे जुर्माना वसूलने पर भी सहमति बनी. पूरे मामले से स्वास्थ्य मंत्री को अवगत कराया. डीसी के आदेश के बाद एजेंसी को भुगतान की प्रक्रिया चल ही रही थी कि स्वास्थ्य मंत्री ने अधीक्षक अरुण कुमार चौधरी को टेंडर प्रक्रिया की जांच तक भुगतान रोकने की फोन पर आदेश दिया गया.


जानकरों का कहना है कि स्वास्थय मंत्री ने अपने निरीक्षण के दौरान पीएमसीएच में कचड़ा इकट्ठा होने पर नाराजगी जताते हुए एजेंसी से स्पष्टीकरण की बात कही थी. जिसकी जांच पूरी होने के बाद भुगतान की प्रक्रिया चल रही थी, लेकिन मंत्री ने फोन कर यह कह दिया कि टेंडर प्रक्रिया की जांच के बाद ही एजेंसी को भुगतान किया जाएगा. जानकारों ने बताया कि दोनो अलग अलग मामले हैं. टेंडर प्रकिया की जांच अभी चल ही रही है. जबकि मंत्री के निरीक्षण के दौरान मिले कचड़े के ढेर की जांच पूरी कर ली गई है. कोविड 19 के संबंध में भारत सरकार का आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत जारी आदेश भी राज्य सरकार के सचिव की ओर से जारी किया गया है. जिसमें कहा गया कि डॉक्टर और हेल्थ वर्कर्स का कोई भी पैसा नहीं रोका जाना चाहिए. बावजूद इसके स्वास्थ्य सह आपदा मंत्री की ओर से भारत सरकार के आदेशों को भी दरकिनार कर दिया गया.

धनबाद: पीएमसीएच में सफाई व्यवस्था के लिए एक बार फिर टेंडर प्रक्रिया पर विवाद शुरू हो गया है. जगजीवन श्रमिक सहयोग समिति ने वर्तमान में काम कर रही एजेंसी मेसर्स वर्मा इंटरप्राइजेज पर निहित शर्तों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है. इसे लेकर जगजीवन श्रमिक सहयोग समिति ने टुंडी विधायक मथुरा महतो को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है.

जगजीवन श्रमिक सहयोग समिति लिमिटेड, साल 2006 से 2019 तक पीएमसीएच में सफाई का ठेका लेकर कार्य करते आ रही थी, लेकिन कभी भी इस समिति ने इस बीच हुए टेंडर प्रक्रिया में भाग नहीं लिया. सिर्फ एक्सटेंशन लेकर अपनी कार्य अवधि को बढ़ाता रहा. येनकेन प्रकारेण टेंडर प्रक्रिया भी इन 13 सालों के दौरान रद्द भी होती रही. अब एक बार फिर कुछ ऐसा ही शगूफा इस समिति ने छोड़ा है. समिति की ओर से टुंडी विधायक मथुरा महतो को एक पत्र लिखकर वर्तमान में पीएमसीएच की साफ-सफाई का काम देख रही एजेंसी मेसर्स वर्मा इंटरप्राइजेज पर आरोप लगाया कि निहित शर्तों को अनदेखी कर एजेंसी ने टेंडर लिया है. सहयोग समिति की शिकायत पर विधायक ने स्वास्थ मंत्री बन्ना गुप्ता से जांच कराने की मांग की है. सहयोग समिति का टेंडर प्रकिया से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. विधायक मथुरा महतो की शिकायत पर स्वास्थ्य मंत्री ने जांच के आदेश दे दिए हैं. यही नहीं टेंडर की जांच शुरू भी हो गई है और जांच जारी है. तीन सदस्यीय टीम टेंडर प्रक्रिया की जांच कर रही है. रांची के तीन वरीय अधिकारियों की ओर से मामले की जांच की जा रही है.

कब क्या हुआ
साल 2006 में टेंडर प्रकिया में तीन एजेंसी, टेंडर प्रक्रिया में शामिल हुई थी. इन तीनों को तकनीकी रूप से सफल पाते हुए इनका वित्तीय भाग खोला गया. पहला कृष्णा कंस्ट्रक्शन कंपनी, बरियातू, रांची. जिसकी राशि 216150 रुपए, दूसरा जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति जिसकी राशि 2,11000 रुपए और तीसरा मेसर्स केबीपी सिन्हा, हरमू हाउसिंग कॉलनी, रांची 16,919 रुपए था. कृष्णा कंस्ट्रक्शन कंपनी की टेंडर राशि ज्यादा होने के कारण छांट दिया गया था. तकनीकी अहर्ताओं को पूरा नही करने की स्थिति में मेसर्स केबीपी सिन्हा के टेंडर को रद्द कर दिया गया. जबकि सहयोग समिति L2 होते हुए इनको L1 दर से 10 प्रतिशत दर बढ़ाकर कार्य आवंटित कर दिया गया. मेसर्स के बीपी सिन्हा का कार्य अगर संतोषजनक नहीं था तो किस परिस्थिति में इनका वित्तीय भाग खोला गया. L 1 नहीं होते हुए भी जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति को कार्य आवंटित कर दी गई. साथ ही वर्ष 2006 में 18,1000 रुपए से आवंटित कार्य बिना टेंडर का वर्ष 2019 में बढ़कर लगभग 15 लाख रुपए हो गया.

एजेंसी को लाभ पहुंचाने की कोशिश
टेंडर प्रकिया की जानकारों की मानें तो किसी भी टेंडर के पहले प्रकिया में शामिल होने वाले एजेंसियों के तकनीकी रुप से परिपूर्ण होने के बाद ही उनका वित्तीय टेंडर खोला जाता है. वित्तीय टेंडर खोलने के पहले प्रकिया में शामिल होने वाली एजेंसियों की तकनीकी रूप से सही होना जरूरी होता है. तकनीकी रूप से सही नहीं होने पर वित्तीय टेंडर खोलने के पूर्व ही वैसी एजेंसी को छांट दिया जाता है, लेकिन 2006 के टेंडर में ऐसा नही हुआ जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर खुलने के बाद मेसर्स के बीपी सिन्हा को तकनीकी कारणों से टेंडर से अलग किया गया और सहयोग समिति को नियम के विरूद्ध कार्य आवंटित कर दिया गया. जानकारों ने बताया कि ऐसा किसी कंपनी या एजेंसी को लाभ पहुंचाने के मकसद से किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- विधायक मथुरा महतो ने दी कोरोना को मात, 7वीं बार में कोरोना रिपोर्ट आई नेगेटिव

जांच तक टेंडर भुगतान रोकने का आदेश

सूत्रों का यह भी कहना है कि जगजीवन श्रामिक सहयोग समिति L1 नहीं था. जबकि सहयोग समिति को L1 बताते हुए साफ-सफाई का टेंडर दिया गया. अप्रैल महीने में संपूर्ण लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में स्वास्थ मंत्री बन्ना गुप्ता ने पीएमसीएच का निरीक्षण किया था. जिसमे कचड़ा डंप एरिया में कचड़े के ढेर पर उन्होंने नाराजगी जताते हुए वर्तमान में कार्यरत एजेंसी पर सवालिया निशान खड़ा किए थे. डीसी के निर्देश पर अधीक्षक की ओर से एजेंसी से स्पष्टीकरण मांगा गया. एजेंसी ने अपना स्पष्टीकरण अधीक्षक को सौंपा. एजेंसी के स्पष्टीकरण से अधीक्षक और डीसी संतुष्ट होने के बाद एवं मंत्री की नाराजगी को लेकर उनसे जुर्माना वसूलने पर भी सहमति बनी. पूरे मामले से स्वास्थ्य मंत्री को अवगत कराया. डीसी के आदेश के बाद एजेंसी को भुगतान की प्रक्रिया चल ही रही थी कि स्वास्थ्य मंत्री ने अधीक्षक अरुण कुमार चौधरी को टेंडर प्रक्रिया की जांच तक भुगतान रोकने की फोन पर आदेश दिया गया.


जानकरों का कहना है कि स्वास्थय मंत्री ने अपने निरीक्षण के दौरान पीएमसीएच में कचड़ा इकट्ठा होने पर नाराजगी जताते हुए एजेंसी से स्पष्टीकरण की बात कही थी. जिसकी जांच पूरी होने के बाद भुगतान की प्रक्रिया चल रही थी, लेकिन मंत्री ने फोन कर यह कह दिया कि टेंडर प्रक्रिया की जांच के बाद ही एजेंसी को भुगतान किया जाएगा. जानकारों ने बताया कि दोनो अलग अलग मामले हैं. टेंडर प्रकिया की जांच अभी चल ही रही है. जबकि मंत्री के निरीक्षण के दौरान मिले कचड़े के ढेर की जांच पूरी कर ली गई है. कोविड 19 के संबंध में भारत सरकार का आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत जारी आदेश भी राज्य सरकार के सचिव की ओर से जारी किया गया है. जिसमें कहा गया कि डॉक्टर और हेल्थ वर्कर्स का कोई भी पैसा नहीं रोका जाना चाहिए. बावजूद इसके स्वास्थ्य सह आपदा मंत्री की ओर से भारत सरकार के आदेशों को भी दरकिनार कर दिया गया.

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