देवघरः मरीज के लिए डॉक्टर भगवान का रूप होता है, बीमारी से मुक्ति दिलाने की एक उम्मीद होती है. लेकिन इस अस्पताल की हालत ही कुछ और है. एक तरफ केंद्र व राज्य सरकार नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के दावे कर रही है. वहीं दूसरी तरफ इस अस्पताल में करीब पांच साल से एक भी डॉक्टर नहीं है. ऐसी हालत है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बाघमारा की.
इसे भी पढ़ें- झारखंड में समय पर जांच नहीं होने से बढ़ रहे किडनी मरीजों की संख्या, विभाग में धूल फांक रहा उपचार वाहन
देवघर मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर बने स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बाघमारा की खुद अपनी सेहत ठीक नहीं है. डॉक्टर्स और नर्स की कमी के कारण करोड़ों की लागत से बने अस्पताल बस शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है. यहां ना तो पर्याप्त दवाइयां उपलब्ध हैं और ना ही चिकित्सक मौजूद हैं. ऐसे में यहां के मरीज और इलाके की स्वास्थ्य व्यवस्था का भगवान ही मालिक है. उपचार की समुचित व्यवस्था ना होने से मरीजों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. चिकित्सा सुविधा के नाम पर मानक के अनुरूप चिकित्सक भी तैनात नहीं है.
आलम यह है कि देवघर प्रखंड के स्वास्थ्य केंद्र बाघमारा में कई दिनों से ताला लटका है. वहीं स्थानीय निवासी बताते हैं कि यहां करोड़ों रुपए से अस्पताल बनने के बाद भी उनको कोई फायदा नहीं पहुंच रहा. इलाज के लिए हमें सदर अस्पताल ही जाना पड़ता है ना ही ये अस्पताल खुलता है और ना ही यहां कोई डॉक्टर बैठते हैं.
अब तक चालू नहीं हो पाया आरटीपीसीआर लैबः सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बाघमारा में ही आरटीपीसीआर लैब स्थापित की गयी. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड सहित कई तरह की जांच को लेकर जिला अस्पताल प्रबंधन को परेशानियों का सामना करना पड़ा था. कोविड जांच की रिपोर्ट समय पर नहीं मिलने की वजह से कई मरीजों का उपचार शुरू नहीं हो पाया और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी. कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच इन दिक्कतों से निपटने देवघर जिला स्वास्थ्य विभाग (Deoghar District Health Department) ने अस्पताल परिसर में आरटीपीसीआर जांच स्थापित की थी. लेकिन साल बीतने के बाद भी इसकी शुरुआत अब तक नहीं हो पाई है.