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बेटे के दर्द भरे सवाल ने बदल डाली पिता की जिंदगी, सड़कों से साफ करने लगे शीशा

देवघर में सिंचाई विभाग में काम करने वाले जितेंद्र महतो ने शहर और देश के लिए एक मिसाल कायम किया है. वो अपने बेटे को मिले दर्द के बाद नंदन पहाड़ इलाके के रास्ते पर 2015 से ही शीशा के साथ-साथ कूड़ा चुनने का काम कर रहे हैं.

Jitendra Mahato set an example of cleanliness in deoghar
स्वच्छता की लिख डाली इबारत
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Published : Jan 9, 2020, 11:16 PM IST

देवघर: एक थे माउंटेन मैन दशरथ मांझी, जिन्होंने अपनी पत्नी की तकलीफों को देखकर पहाड़ का सीना चीर डाला था. माउंटेन मेन का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है. देवघर में भी अपने बेटे की मोहब्बत में कैद एक पिता भी आजकल कुछ ऐसा ही कर रहे हैं.

देखें पूरी खबर

देवघर के सिंचाई विभाग में काम करने वाले जितेंद्र महतो जो बिहार के आरा जिले के रहने वाले हैं. वो शहर के नंदन पहाड़ इलाके में एक दिन अपने बेटे के साथ घूमने निकले तो, रास्ते में बिखरे शीशे का एक टुकड़ा उनके बेटे के पैर में चुभ गया, बेटे के पैर से खून बह रहा था और आंखों में आंसू था, लेकिन इस दर्द के बीच बेटे के एक शब्द ने पिता के जीने का मकसद ही बदल दिया. दर्द से कराह रहे उनके बेटे ने कहा कि पापा लोग शीशा ऐसे क्यों फेंकते हैं. उसके बाद से ही जितेंद्र महतो ने तय कर लिया कि इस रास्ते से गुजरने वाले किसी भी इंसान को अब दर्द महसूस नहीं होने देंगे.

इसे भी पढ़ें:- देवघरः 24 जिलों के केवीके वैज्ञानिकों की बैठक, बेलपत्र से बने खाद की लॉन्चिंग

अपने बेटे की तकलीफ को महसूस करने वाला यह बाप अब उन रास्तों पर बिखरे दर्द देने वाले उन तमाम चीजों को समेट कर न सिर्फ सफाई का पैगाम दे रहे हैं, बल्कि बैठने के लिए आरामदायक कुर्सीनुमा डस्टबिन बनाकर उसमें सफाई से जुड़े संदेश लिखकर लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं. जितेंद्र महतो ने अपने कारनामे से इलाके की तस्वीर ही बदल दी है.

देश में स्वच्छता अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है. सफाई पर करोड़ों रूपये की राशि खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन यह शख्स अपनी तनख्वाह के पैसे से सीमेंट और रेत का इंतजाम करता है और स्लोगन लिखने के लिए रंग और ब्रश का भी बंदोबस्त करता है. अपने मकसद में कामयाब हो रहे जितेंद्र अब सुकून की सांस ले रहे हैं. जितेंद्र महतो अपने बेटे के उस शब्द को महसूस कर कामयाबी की नई मिसाल पेश कर रहे हैं.

देवघर: एक थे माउंटेन मैन दशरथ मांझी, जिन्होंने अपनी पत्नी की तकलीफों को देखकर पहाड़ का सीना चीर डाला था. माउंटेन मेन का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है. देवघर में भी अपने बेटे की मोहब्बत में कैद एक पिता भी आजकल कुछ ऐसा ही कर रहे हैं.

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देवघर के सिंचाई विभाग में काम करने वाले जितेंद्र महतो जो बिहार के आरा जिले के रहने वाले हैं. वो शहर के नंदन पहाड़ इलाके में एक दिन अपने बेटे के साथ घूमने निकले तो, रास्ते में बिखरे शीशे का एक टुकड़ा उनके बेटे के पैर में चुभ गया, बेटे के पैर से खून बह रहा था और आंखों में आंसू था, लेकिन इस दर्द के बीच बेटे के एक शब्द ने पिता के जीने का मकसद ही बदल दिया. दर्द से कराह रहे उनके बेटे ने कहा कि पापा लोग शीशा ऐसे क्यों फेंकते हैं. उसके बाद से ही जितेंद्र महतो ने तय कर लिया कि इस रास्ते से गुजरने वाले किसी भी इंसान को अब दर्द महसूस नहीं होने देंगे.

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अपने बेटे की तकलीफ को महसूस करने वाला यह बाप अब उन रास्तों पर बिखरे दर्द देने वाले उन तमाम चीजों को समेट कर न सिर्फ सफाई का पैगाम दे रहे हैं, बल्कि बैठने के लिए आरामदायक कुर्सीनुमा डस्टबिन बनाकर उसमें सफाई से जुड़े संदेश लिखकर लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं. जितेंद्र महतो ने अपने कारनामे से इलाके की तस्वीर ही बदल दी है.

देश में स्वच्छता अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है. सफाई पर करोड़ों रूपये की राशि खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन यह शख्स अपनी तनख्वाह के पैसे से सीमेंट और रेत का इंतजाम करता है और स्लोगन लिखने के लिए रंग और ब्रश का भी बंदोबस्त करता है. अपने मकसद में कामयाब हो रहे जितेंद्र अब सुकून की सांस ले रहे हैं. जितेंद्र महतो अपने बेटे के उस शब्द को महसूस कर कामयाबी की नई मिसाल पेश कर रहे हैं.

Intro:देवघर बर्दास्त नही हुई बेटे की तकलीफ,तो लिख डाली नई इबारत आज लोग ले रहे है सुकून की सांस।

नोट विसुअल बाइट राजीव सर को भेजी गई है। सूचनार्थ।


Body:एंकर एक थे माउंटेन मेन जिन्होंने अपनी पत्नी की तकलीफों से निजात दिलाने की खातिर पहाड़ तक का सीना चिर डाला था। अपनी पत्नी के लिए प्यार का वह वो तोहफा था जो आज इतिहास के पन्नो में दर्ज हो चुका है। उस इलाके के लोग आज उनके बनाये रास्ते पर फर्राटा भरते है और दशरथ मांझी को याद करते है।जी हां अपने बेटे की मोहब्बत में कैद एक पिता भी आजकल कुछ ऐसा ही करते नजर आ रहे है। जो न सिर्फ नई पीढ़ी के लिए बल्कि उन तमाम लोगो के लिए सबक है। जो सड़को पर दर्द पैदा करने वाले समान छोड़ जाते है। अपने बेटे की तकलीफ को महसूस करने वाला यह बाप अब उन रास्तो पर बिखरे दर्द देने वाले उन तमाम चीजो को समेट कर न सिर्फ सफाई का पैगाम दे रहे है। बल्कि बैठने के आराम दायक कुर्सी नुमा डस्टबिन बनाकर उसमें सफाई से जुड़े संदेश लिखकर लोगो को जागरूक करने में जुटे है। दरअसल देवघर के सिचाई बिभाग में काम करने वाले यह सख्स बिहार के आरा जिले के रहने वाले है शहर के नंदन पहाड़ इलाके मे एक रोज जब अपने बेटे के साथ घूमने निकले तो रास्ते मे बिखरे शीशे का एक टुकड़ा बच्चे के पैर में चुभ गया बेटे के पैर से खून बह रहा था और आंखों में आंसू थे लेकिन इस दर्द के बीच बेटे के एक शब्द ने पिता के जीने का मकसद ही बदल डाला वो शब्द थे पापा लोग शीशा ऐसे क्यों फेकते है। फिर क्या था उस दिन उन्होंने यह तय कर लिया कि इस रास्ते से गुजरने वाले किसी भी इंसान को अब दर्द महसूस नही होने देंगे। और आज इस इलाके की तस्वीर ही बदल चुकी है। रास्ते मे पड़ी शीशे अब बैठने और डस्टबिन की जगह बन चुकी है। लोगो को यह एहसास तक नही होता कि जिसपर वह बैठकर आराम कर रहे है। दरहक़ीक़त वह शीशे का टुकड़ा है।


Conclusion:बहरहाल,देश मे फिलहाल स्वच्छता अभियान जोर शोर से चलाया जा रहा है। करोड़ो रूपये की राशि खर्च की जा रही है। लेकिन यह शख्स अपनी तनख्वाह के पैसे से सीमेंट और रेत का इंतजाम करता है। और स्लोगन लिखने के लिए रंग और ब्रश का भी बंदोबस्त करता है। अपने मकसद में कामयाब हो रहा यह इंसान अब सुकून का सांस ले रहा है। और सीने को छलनी कर देने वाले बेटे के उस शब्द को महसूस कर कामयाबी की नई मिसाल पेश कर रहे है।
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