देवघरः कहा जाता है कि अगर आप बाबा बैद्यनाथ की पूजा किसी कारण नहीं कर पाते, तो पंचशूल का दर्शन अवश्य कर लें. इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. आपने ज्यादातर शिवालयों में त्रिशूल लगा देखा होगा, लेकिन बाबा भोले के नगरी में बाबा मंदिर और माता पार्वती मंदिर के शीर्ष पर पंचशूल स्थापित है. जो इस मंदिर को दूसरे मंदिरों से अलग करती है.
पंचशूल प्रतीक है पंचतत्वों का
5 तत्वों से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है और पंचशूल उसी का प्रतीक है. शिव सबके गुरु है जिस वजह से यहां शिव के ललाट पर पंचशूल विराजमान है. कहा जाता है इसके दर्शन मात्र से ही लोगों का कल्याण हो जाता है. बाबा मंदिर ही नहीं, उसके प्रांगण में स्थित सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल है. भारत में और कहीं ऐसा नहीं देखा गया है. ये सिर्फ बाबाधाम में है. ये पंचशूल शक्ति का भी प्रतीक है. लंका में भी रावण के महल में पंचशूल था. रावण की लंका के पंचशूल को खत्म कर ही, श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त किया था. बाबा मंदिर से सभी मंदिरों में लगा पंचशूल पांचों तत्वों जिसमें सृष्टि की रचना हुई है, उसे दर्शाता है.
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भारत का इकलौता मंदिर जहां लगा है पंचशूल
पूरे भारत में यही एक मंदिर है, जहां पंचशूल है. वो भी बाबा के मंदिर पर भक्त इस पंचशूल के दर्शन मात्र से ही धन्य हो जाते हैं. इस पंचशूल के दर्शन से भक्तों को लगता है, वह बाबा भोले के दर्शन कर चुके है. बताया जाता है कि श्रावणी मेलें में इतनी भीड़ होती है कि श्रद्धालु पूजा नहीं कर पाते. ऐसे में श्रद्धालु बाबा के पंचशूल के दर्शन कर ही बाबा का आशीर्वाद पाते हैं.