देवघरः बाबा बैद्यनाथ मंदिर जितना पुराना है, उतनी ही पुरानी यहां की व्यवस्थाएं भी हैं. आधुनिक युग में भी यहां के पुजारी आदि परंपरा का निर्वहन कर महत्वपूर्ण जानकारी को सहेज कर पीढ़ी दर पीढ़ी रखते आ रहे हैं. पंडा और यजमान के बीच यह व्यवस्था ऐसी है कि कौन भक्त कहां से आया, उनके पूर्वजों में कौन कौन और कब कब आया, किस पंडा ने पूजा कराई. ऐसी तमाम जानकारियां पंडों की पोथी अथवा बही में दर्ज है.
देवघर पहुंचने पर भक्तों को चारों ओर से पंडा घेर लेते हैं और कौन घर? कौन जिला? कौन पंडा?, जैसे सवालों की बौछार कर देते हैं. देखने सुनने में थोड़ा अजीब जरूर है पर यह एक ऐसी व्यवस्था है जो सदियों से चली आ रही है. इस छोटे सवाल का सीधा संबंध बही-खाता और पोथी से है, जो पंडों के पास मौजूद होता है. इसी बही से आपको पुरखों का बाबा धाम से जुड़ा इतिहास और पीढ़ियों पहले आपके पुरखों मैं कौन कौन और कब कब देवघर पहुंचे थे. इसका पूरा ब्यौरा इस बही में मौजूद रहता है.
कागज कलम वाली बही ऐसी है कि कई बार यजमानों द्वारा लिखी किसी पूर्वज की लिखावट भी मिल जाती है. बिहार के गया के रहने वाले हो या गुजरात के रहने वाले हो या फिर कश्मीर के रहने वाले हो या फिर दक्षिण के किसी राज्य के हों. अगर किसी भक्त के पूर्वज देवघर आकर यहां पंडों के माध्यम से पूजा कराए हैं तो उनका पूरा ब्यौरा पंडों के पास मौजूद है. पंडे भी पीढ़ी दर पीढ़ी इस बही को संभालकर रखते हैं. इसलिए देवघर आने वाले भक्त अपने खानदानी पंडे को ढूंढते हैं या फिर अपना नाम और जिला बताकर पंडों से जानकारी लेते हैं. महज 15 मिनट में उस परिवार का पूरा खाता पंडा आपके सामने रख देंगे. पुरोहित बताते हैं कि कई लोग देश के साथ साथ विदेशों से भी लोग अपनी पुरखों की जानकारी लेने के लिए यह पहुंचते हैं. जिससे वो जान पाते हैं कि हमारे पूर्वज कौन हैं और हमारे पंडा कौन हैं. इस पोथी से भक्त और यजमान का अनोखा रिश्ता बनता है. आज के इस आधुनिक युग में कई सारे पंडा देश-विदेश में अपने भक्तों से सोशल मीडिया के माध्यम से भी जुड़े हैं.