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कोरोना इफेक्टः देवघर में बांस की टोकरी बनाने वाले कारीगरों पर भुखमरी की नौबत, लॉकडाउन में व्यापार हुआ बर्बाद

देवघर जिले में बांस की टोकरी बनाकर जीवन यापन कर रहे कारीगरों पर लॉकडाउन कहर बनकर टूटा है. स्थिति यह है कि इन कारीगरों पर भुखमरी की नौबत आ गई है. कारीगर सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. पिछले 2 महीने से टोकरी का व्यवसाय पूरी तरह से ठप पड़ा है.

कारीगरों पर भुखमरी की नौबत
कारीगरों पर भुखमरी की नौबत
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Published : Jun 9, 2020, 1:37 PM IST

देवघरः कोरोना बंदी ने देवघर में बांस की टोकरी बनाने वाले छोटे कारीगरों को बुरी तरह प्रभावित किया है. प्रसाद के रूप में पेड़ा की पेकिंग करने के लिए इस बांस की टोकरी का ही इस्तेमाल होता है. पिछले 2 महीने से टोकरी का व्यवसाय पूरी तरह से ठप पड़ा है, जिससे उनके सामने भारी परेशानी आ रही है. इन कारीगरों ने सरकार से मदद की गुहर लगाई है. यहां बड़ी संख्या में लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं.

कारीगरों पर भुखमरी की नौबत.

देवघर के मोहनपुर प्रखंड स्थित बांक गांव के कारीगर दरअसल देवघर आने वाले श्रद्धालु जब पेड़े की खरीदारी करते हैं तो इसी बांस की टोकरी में पेड़ा पैक कर दिया जाता है.

श्रद्धालु भी पॉलीथिन की जगह प्रसाद की खरीदारी के लिए यही बांस की टोकरी ही पसंद करते है. आम दिनों में बांस की टोकरी की अच्छी खपत के कारण यहां के इन कारीगरों को प्रतिदिन अमूमन 300 से 400 रुपये की आमदनी हो जाया करती है, लेकिन कोरोना बंदी में मंदिर लंबे समय से बन्द रहने के कारण इनका यह पुश्तैनी धंधा पूरी तरह चौपट होने लगा है.

इस क्षेत्र में दर्जनों परिवार बांस की टोकरी बनाकर ही अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे है. लेकिन अब टोकरी की खपत नही होने से दर्जनों की संख्या में यह परिवार भुखमरी के कगार पर पहुच गए है. दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन इन कारीगरों को जल्द ही रोजगार मुहैया कराने का आश्वासन दे रहा है.

यह भी पढ़ेंः रांची: कपड़ा व्यवसायी झेल रहे मंदी की मार, सीएम हेमंत सोरेन से लगाई गुहार

कोरोना महामारी ने सभी वर्गों को प्रभावित किया है. इसमें देवघर जिले के बांस की टोकरी बनाने वाले कारीगर भी शामिल है. इन टोकरियों में मंदिर में प्रसाद के रूप में अर्पित होने वाले पेड़े पैक किए जाते हैं, लेकिन दो महीने से मंदिर बंद होने के कारण न तो पेड़े की बिक्री हो रही है और न इन बांस की बनी टोकरियों की खपत हो रही है.

ऐसे में अब इन कारीगरों पर भुखमरी की नौबत आ गई है. जगन मांझी कारीगर ने बताया कि लॉकडाउन से उनकी स्थिति खराब है. पूरा माल घर में पड़ा है. क्षेत्र के अनेक कारीगर व इससे जुड़े व्यापारी ने परेशानी बताई. लॉकडाउन अवधि में घर वापसी कर रहे श्रमिकों और कामगारों को रोजगार मुहैया कराने का प्रयास जारी है. स्थानीय कारीगरों की स्किल मैपिंग कर उन्हें रोजगार से जोड़ा जाएगा.

दूसरी ओर 30 जून तक झारखंड में धार्मिक स्थल न खोलने के सरकार के निर्णय से इन लोगों की इंतजार की घड़ियां और लंबी खिंच गयी हैं. सरकार और जिला प्रशासन ग्रामीण कारीगरों की समस्या पर गंभीरता से पहल करे तो इन कारीगरों की समस्या का समाधान हो सकता है.

देवघरः कोरोना बंदी ने देवघर में बांस की टोकरी बनाने वाले छोटे कारीगरों को बुरी तरह प्रभावित किया है. प्रसाद के रूप में पेड़ा की पेकिंग करने के लिए इस बांस की टोकरी का ही इस्तेमाल होता है. पिछले 2 महीने से टोकरी का व्यवसाय पूरी तरह से ठप पड़ा है, जिससे उनके सामने भारी परेशानी आ रही है. इन कारीगरों ने सरकार से मदद की गुहर लगाई है. यहां बड़ी संख्या में लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं.

कारीगरों पर भुखमरी की नौबत.

देवघर के मोहनपुर प्रखंड स्थित बांक गांव के कारीगर दरअसल देवघर आने वाले श्रद्धालु जब पेड़े की खरीदारी करते हैं तो इसी बांस की टोकरी में पेड़ा पैक कर दिया जाता है.

श्रद्धालु भी पॉलीथिन की जगह प्रसाद की खरीदारी के लिए यही बांस की टोकरी ही पसंद करते है. आम दिनों में बांस की टोकरी की अच्छी खपत के कारण यहां के इन कारीगरों को प्रतिदिन अमूमन 300 से 400 रुपये की आमदनी हो जाया करती है, लेकिन कोरोना बंदी में मंदिर लंबे समय से बन्द रहने के कारण इनका यह पुश्तैनी धंधा पूरी तरह चौपट होने लगा है.

इस क्षेत्र में दर्जनों परिवार बांस की टोकरी बनाकर ही अपने परिवार का भरण पोषण करते आ रहे है. लेकिन अब टोकरी की खपत नही होने से दर्जनों की संख्या में यह परिवार भुखमरी के कगार पर पहुच गए है. दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन इन कारीगरों को जल्द ही रोजगार मुहैया कराने का आश्वासन दे रहा है.

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कोरोना महामारी ने सभी वर्गों को प्रभावित किया है. इसमें देवघर जिले के बांस की टोकरी बनाने वाले कारीगर भी शामिल है. इन टोकरियों में मंदिर में प्रसाद के रूप में अर्पित होने वाले पेड़े पैक किए जाते हैं, लेकिन दो महीने से मंदिर बंद होने के कारण न तो पेड़े की बिक्री हो रही है और न इन बांस की बनी टोकरियों की खपत हो रही है.

ऐसे में अब इन कारीगरों पर भुखमरी की नौबत आ गई है. जगन मांझी कारीगर ने बताया कि लॉकडाउन से उनकी स्थिति खराब है. पूरा माल घर में पड़ा है. क्षेत्र के अनेक कारीगर व इससे जुड़े व्यापारी ने परेशानी बताई. लॉकडाउन अवधि में घर वापसी कर रहे श्रमिकों और कामगारों को रोजगार मुहैया कराने का प्रयास जारी है. स्थानीय कारीगरों की स्किल मैपिंग कर उन्हें रोजगार से जोड़ा जाएगा.

दूसरी ओर 30 जून तक झारखंड में धार्मिक स्थल न खोलने के सरकार के निर्णय से इन लोगों की इंतजार की घड़ियां और लंबी खिंच गयी हैं. सरकार और जिला प्रशासन ग्रामीण कारीगरों की समस्या पर गंभीरता से पहल करे तो इन कारीगरों की समस्या का समाधान हो सकता है.

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