देवघरः एक समय था जब जिले में श्रावणी मेले (Shravani fair in deoghar) के दौरान पूजा प्रसाद सामग्रियों के अलावा सिक्कों का बाजार (Coins market) गुलजार होता था, लेकिन इस बार बाजार से रौनक गायब रही. नोटों की चमक ने सिक्कों की खनक को फीका कर दिया. नोटों के बदले सिक्का लेने का कारोबार घाटे का सौदा साबित हुआ.
पारंपरिक रूप से हम प्रचलित मुद्राओं की खरीद बिक्री करते हैं खास कर स्वर्ण मुद्रा ओर चांदी के सिक्कों का इस्तेमाल उपहार के तौर पर होता है. आज भी धनतेरस ओर अक्षय तृतीया के मौके पर सोने और चांदी के सिक्कों की खरीद बिक्री हो रही है. अब तो करेंसी नोट भी बहुमूल्य धातुओ के बनने लगे हैं. जिनका इस्तेमाल शादी और मांगलिक कार्यो में उपहार के तौर पर किया जा रहा है.
वहीं श्रावणी मेले के (Shravani fair in deoghar) दौरान देवघर में भी सिक्कों का बाजार (Coins market) लगने की पुरानी परम्परा रही है. जहां कम मूल्य वाले सिक्कों की सैकड़ों दुकान हाल तक सजती रही है. इस साल दुकानें सजी हुई हैं. बिहार और झारखंड की सीमा पर दुम्मा से लेकर बाबा नगरी के प्रवेश द्वार तक लंबा गलियारा जिसे कांवरिया पथ के नाम से भी जाना जाता है, इस रास्ते में आपको छोटे बड़े टेबल पर सजे एक ओर दो रुपये के सिक्के नजर आएंगे. दरअसल इन सिक्कों का खरीदार और कोई नहीं बल्कि बाबाधाम पहुंचने वाले श्रद्धालु हैं. नोट के बदले में ये श्रद्धालु इन दुकानदारों से सिक्के लेते हैं. इन सिक्कों का इस्तेमाल वे रास्ते मे बैठे भिखारियों को देने में और साथ ही बाबा मंदिर पहुंचने पर अलग अलग मंदिरों में चढ़ाने और दानपात्रों में डालने के लिए करते हैं.
लेकिन ऐसा नहीं है कि नोट को सिक्कों से अदला बदली करने का काम बगैर मूल्य चुकाए होता है. नोट देने वाले को बदले में कम मूल्य के बराबर सिक्के मिलते हैं. फिलहाल 10 रुपये के बदले पाने वाले को 9 रुपये के बराबर सिक्के ही मिलते हैं. उधर दुकानदारों को जहां से ये सिक्के मिलते हैं वहां 10 रुपये ज्यादा मिलते हैं. यानी कि 100 रुपये बदले में 110 रुपये मूल्य के सिक्के मिलते हैं. लेकिन इस साल ये बाजार मंद पड़ा है. एक तरफ जहां कम की संख्या में दुकानें सजी हुई हैं. वहीं दूसरी ओर खरीदार ना के बराबर हैं. विक्रेता दुकानदार जोगिंदर बताते है कि बमुश्किल ही कमाई हो रही है. उनकी माने तो इस बार सिक्कों की दुकान से दैनिक मजदूरी भी नहीं निकल रही है. वहीं दूसरे दुकानदार ब्रह्मदेव ठाकुर की माने तो 10 रुपये के बदले 1रुपये के 9 सिक्के ले भी लेता है. लेकिन 2 रुपये के सिक्कों की कोई कमाई नहीं हुई है. उधर कांवरियों की माने तो अब न मंदिरों के पुरोहित ओर न ही भिखारी 1ओर 2 के सिक्के लेने में दिलचस्पी दिखाते हैं. यानी कि इस बार सिक्कों का बाजार नरम है.