देवघर: सावन महीने में बाबा नगरी बोल बम के नारों से गूंज रही है. भक्त बाबा पर जलाभिषेक करने के लिए दूरदराज से आ रहे हैं. बाबा धाम की छटा पूरी तरह अलौकिक हो रखी है. बाबा धाम में भगवान शंकर को मनाने के लिए तरह-तरह के श्रृंगार भी किए जा रहे हैं. इसी को लेकर अब बेलपत्र प्रदर्शनी की भी शुरुआत हो रही है.
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बता दें कि बाबा मंदिर में चली आ रही पौराणिक परंपरा के अनुसार, बेलपत्र प्रदर्शनी और बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा है. यह परंपरा लगभग 152 वर्षो से चली आ रही है. बंगला श्रावण में 17 जुलाई सोमवार कर्क संक्रांति से सभी समाजों के द्वारा बाबा भोलेनाथ पर बिल्वपत्र अर्पित किया जाएगा. जो 17 जुलाई, 24 जुलाई, 31 जुलाई, 7 अगस्त और 14 अगस्त को श्रावणी सोमवारी के मौके पर चढ़ाया और प्रदर्शित किया जाता है.
विभिन्न समाज की ओर से लगायी जाती है प्रदर्शनी: इसके साथ ही 17 जुलाई सोमवार और 17 अगस्त गुरुवार को संक्रांति के अवसर पर विभिन्न समाज की ओर से आकर्षक प्रदर्शनी लगायी जायेगी. इसमें काली मंदिर में जनरेल समाज और देवकृपा वन सम्राट बेलपत्र समाज, तारा मंदिर में बरनेल समाज, लक्ष्मी नारायण मंदिर में मसानी दल एक और मसानी दल दो, शांति अखाड़ा समाज, राम मंदिर में राजाराम बेलपत्र समाज, आनंद भैरव मंदिर में पंडित मनोकामना राधे श्याम बेलपत्र समाज के दो दलों द्वारा आकर्षक और बाबा की त्रिनेत्र के समान अनोखे पहाड़ी बिल्वपत्र की प्रदर्शनी लगाई जाती है.
परंपरा के अनुसार, सभी दल के सदस्य शाम लगभग पांच बजे अपने बिल्वपत्र को चांदी के बर्तनों में सजाकर शहर भ्रमण को निकलते हैं. इसके बाद वह अपने बिल्वपत्र को अपनी गद्दी पर जाकर प्रदर्शित करते हैं.
बमबम बाबा ने शुरू की थी परंपरा: वहीं तीर्थपुरोहित पप्पू फलारी ने बताया कि बाबा धाम में बेलपत्र की परंपरा को सबसे पहले बमबम बाबा ने शुरू की थी. आज भी बाबा मंदिर में यह परंपरा निभाई जा रही है. उन्होंने आगे बताया कि 1826 से त्रिकूट पहाड़ के जंगलों से बेलपत्र तोड़कर बाबा पर अर्पित करते थे. जिसके बाद 1856 में दल बना कर बेलपत्र तोड़ा जाने लगा. आज लोग पैदल यात्रा कर बाबा धाम पहुंचते हैं. जिसकी शुरूवात बमबम बाबा के द्वारा ही की गई थी. क्योंकि बीच में यह प्रथा बिल्कुल पूरी तरह से लुफ्त हो गयी थी. साथ ही उन्होंने कहा कि बेलपत्र भोलेनाथ को अतिप्रिय है, जिसको अर्पित करने के बाद और कुछ अर्पित करने की जरूरत नहीं पड़ती है.
बाबा धाम की महत्ता अलौकिक है. यहां पर भगवान श्री कृष्ण और श्रीराम के भी जलाभिषेक करने के प्रमाण मिलते हैं. यहां पर दूर दराज से बेलपत्र लाए जाते हैं. पहले त्रिकूट पर्वत से बेलपत्र लाया जाता था हालांकि अब हजारीबाग और हिमाचल से भी बेलपत्र लाए जाते हैं जो बाबा को चढ़ाए जाते हैं.