चतराः जिला फर्नीचर निर्माण को पुरुषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र माना जाता रहा है. अब महिलाएं भी फर्नीचर निर्माण में पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती देने लगी है. जिला के नक्सल प्रभावित सिमरिया प्रखंड के ईचाक-खुर्द गांव की महिलाएं पुरुषों के साथ लकड़ी के फर्नीचर बनाती दिख जाती हैं.
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गरीबी का दंश झेल रही महिलाओं ने ग्रामीण विकास विभाग झारखंड सरकार की तरफ से जेएसएलपीएस की मदद से अपनी जीविका संस्था से जुड़ीं. अब महिलाएं कभी लकड़ी पर रांदा चलाती दिख जाती हैं तो कभी छेनी और हथौड़े की मदद से लकड़ी पर तरह-तरह की डिजाइन बना रही हैं.
महिलाएं लकड़ी से पलंग, चौकी, अलमीरा, दरवाजा बना लेती हैं. गांव की सारदा देवी और बजिदा खातून ने बताया कि पहले घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, तब जीविका से जुड़ी. इसके बाद जीविका समूह से जुड़कर लोन लिया और बाहर से लकड़ी खरीद कर मंगवाया. इसके बाद टूटी फर्नीचर की मरम्मत का काम शुरू किया. धंधा चल निकला तो मैंने नए फर्नीचर बनाने का काम शुरू किया
इस काम में पति का बराबर हाथ बंटाती हूं. पहले उन्होंने मना किया कि यह काम महिलाओं का नहीं है. जब काम करने की जिद ठानी तो उन्होंने भी फर्नीचर बनाने में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. फर्नीचर का काम सीखने के बाद ग्रुप के सभी महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया. अब सभी महिलाएं यह काम मिलजुल कर करती हैं. फर्नीचर का जो आर्डर मिलता है, उसे समय से पूरा कर लेती हैं.
फर्नीचर के व्यवसाय से जीविका से लिया हुआ ऋण चुकता हो रहा है. साथ-साथ घर की आमदनी भी दोगुनी हो गई है. महिलाएं बताती हैं कि यह काम से बढ़ कर सोच बदलने का माध्यम है. अगर काम करने का जज्बा हो तो स्वरोजगार की कोई कमी नहीं है