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चतरा के बेरोजगार युवाओं ने पेश की मिसाल, इनके कढ़ाई और जरी के काम की हो रही वाहवाही

अपने काम के जरिए चतरा के बेरोजगार युवाओं ने पेश की मिसाल. इनके कढ़ाई और जरी के काम की वाहवाही हो रही है. इनके इस तरह के प्रयास को यदि मदद मिले तो यह लघु उद्योग के रूप में स्थापित हो सकता है.

जरी का काम करते कारीगर
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Published : Aug 28, 2019, 6:06 PM IST

चतरा: इन दिनों घोर नक्सल प्रभावित सिमरिया प्रखंड के फतहा गांव के बेरोजगार युवाओं ने पेश की मिसाल. यहां के युवा हुनर के बल पर बेरोजगारी को मुंह चिढ़ाते नजर आ रहे हैं और इनकी कढ़ाई और जरी के काम की तारीफ प्रदेश के कई जिलों में हो रही है. इनके बनाए सामानों की राज्य के कई जिलों में मांग हो रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी

यहां के बेरोजगार युवाओं ने मिसाल पेश करते हुए कढ़ाई और जरी का काम शुरू कर रोजगार को एक आयाम दिया है. ऐसे में अगर इन होनहार युवकों को सरकारी मदद मिल जाए तो इनका यह हुनर उद्योग का रूप धारण कर सकता है. क्योंकि यहां के करीब पांच दर्जन बेरोजगार युवक अपनी कारीगरी से रांची के बाजार की रौनक बढ़ाने में जुटे हैं. इन बेरोजगार युवकों को रांची के कपड़ा व्यवसाई साड़ी, सलवार, सूट, दुपट्टा और ब्लाउज बनाने का काम तो दे रहे हैं लेकिन मेहनत के अपेक्षा इन कारीगरों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है.

बावजूद ये पापी पेट के खातिर दिन-रात मेहनत कर आकर्षक और खूबसूरत कढ़ाई कर कपड़ों को रांची के मंडियों में भेजते हैं. ताकि इनके रोजगार का पहिया निरंतर प्रगतिशील रहे बल्कि इन्हें रांची की तरह अन्य जिलों और राज्यों से भी ऑर्डर मिल सके. सिमरिया के फतहा गांव के कारीगरों को हर दिन चार से पांच सौ रुपये तक की कमाई होती है. एक साड़ी में कढ़ाई का काम करने में एक कारीगर को पांच से छह दिन लगते हैं. इसके बदले उन्हें तीन से चार हजार रुपये मिलते हैं. इसी तरह एक दुपट्टा को तैयार करने में कारीगरों को तीन दिन लगते हैं. इसके बदले उन्हें पंद्रह सौ रुपए मिलते हैं. एक ब्लाउज में भी इन्हें एक से दो दिन का समय लग जाता है. जिसके बदले उन्हें आठ सौ रुपए तक की आमदनी होती है. पूर्व में भी इस गांव के कारीगर दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाकर अपनी कारीगरी का लोहा मनवा चुके हैं.

ये भी पढ़ें- धनबादः शोहदों में PINK PETROL पुलिस का खौफ, खुद को सुरक्षित महसूस कर रही लड़कियां

ये कारीगर वहां जाकर कढ़ाई और जरी का काम करते थे. बाद में कारीगरों ने इस काम गांव में ही करने का फैसला लिया. कारीगरों का उद्देश्य था कि गांव के अन्य बेरोजगारों को इस व्यवसाय से जोड़कर गांव को कढ़ाई और जरी के क्षेत्र में पहचान दिलाई जाए. ऐसे में कारीगरों को इस योजना को अमलीजामा पहनाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन उन्होंने इसका भी जुगाड़ निकाल लिया. दिल्ली मुंबई से लौटकर गांव पहुंचे कारीगरों को पहले तो आर्डर नहीं मिला लेकिन रांची में व्यवसायियों से संपर्क स्थापित करने के बाद उनकी इस समस्या का समाधान हो गया. रांची के व्यवसायियों ने उन पर विश्वास जताते हुए ना सिर्फ ऑर्डर दिया बल्कि पूंजी देकर भी उनकी मदद की. कारीगरों का कहना है कि रांची के व्यवसायियों की तरह कि अगर सरकार दरियादिली दिखा कर कारीगरों को थोड़ी मदद कर दे तो उनका यह व्यवसाय लघु उद्योग का रूप धारण कर सकता है.

ईटीवी भारत की टीम के द्वारा स्थानीय प्रखंड प्रशासन को कारीगरों की समस्या से अवगत कराने के बाद प्रखंड विकास पदाधिकारी ने भी बेरोजगार कारीगरों के नीतियों की सराहना की. उन्होंने आश्वस्त किया कि बड़े शहरों को छोड़कर अपने छोटे से गांव में जरी और कढ़ाई का काम शुरू करने वाले बेरोजगार कारीगरों को प्रशासन हर संभव मदद करेगा. वीडियो ने कहा है कि कारीगरों द्वारा निर्मित कपड़ों को प्रदेश और देश के कई जिलों का प्रदेशों में निर्यात करने की व्यवस्था की जाएगी. ताकि मेहनतकश कारीगरों को उचित मेहनत आना मिलने के साथ-साथ उनके काम को उचित सम्मान भी मिल सके.

चतरा: इन दिनों घोर नक्सल प्रभावित सिमरिया प्रखंड के फतहा गांव के बेरोजगार युवाओं ने पेश की मिसाल. यहां के युवा हुनर के बल पर बेरोजगारी को मुंह चिढ़ाते नजर आ रहे हैं और इनकी कढ़ाई और जरी के काम की तारीफ प्रदेश के कई जिलों में हो रही है. इनके बनाए सामानों की राज्य के कई जिलों में मांग हो रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी

यहां के बेरोजगार युवाओं ने मिसाल पेश करते हुए कढ़ाई और जरी का काम शुरू कर रोजगार को एक आयाम दिया है. ऐसे में अगर इन होनहार युवकों को सरकारी मदद मिल जाए तो इनका यह हुनर उद्योग का रूप धारण कर सकता है. क्योंकि यहां के करीब पांच दर्जन बेरोजगार युवक अपनी कारीगरी से रांची के बाजार की रौनक बढ़ाने में जुटे हैं. इन बेरोजगार युवकों को रांची के कपड़ा व्यवसाई साड़ी, सलवार, सूट, दुपट्टा और ब्लाउज बनाने का काम तो दे रहे हैं लेकिन मेहनत के अपेक्षा इन कारीगरों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है.

बावजूद ये पापी पेट के खातिर दिन-रात मेहनत कर आकर्षक और खूबसूरत कढ़ाई कर कपड़ों को रांची के मंडियों में भेजते हैं. ताकि इनके रोजगार का पहिया निरंतर प्रगतिशील रहे बल्कि इन्हें रांची की तरह अन्य जिलों और राज्यों से भी ऑर्डर मिल सके. सिमरिया के फतहा गांव के कारीगरों को हर दिन चार से पांच सौ रुपये तक की कमाई होती है. एक साड़ी में कढ़ाई का काम करने में एक कारीगर को पांच से छह दिन लगते हैं. इसके बदले उन्हें तीन से चार हजार रुपये मिलते हैं. इसी तरह एक दुपट्टा को तैयार करने में कारीगरों को तीन दिन लगते हैं. इसके बदले उन्हें पंद्रह सौ रुपए मिलते हैं. एक ब्लाउज में भी इन्हें एक से दो दिन का समय लग जाता है. जिसके बदले उन्हें आठ सौ रुपए तक की आमदनी होती है. पूर्व में भी इस गांव के कारीगर दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाकर अपनी कारीगरी का लोहा मनवा चुके हैं.

ये भी पढ़ें- धनबादः शोहदों में PINK PETROL पुलिस का खौफ, खुद को सुरक्षित महसूस कर रही लड़कियां

ये कारीगर वहां जाकर कढ़ाई और जरी का काम करते थे. बाद में कारीगरों ने इस काम गांव में ही करने का फैसला लिया. कारीगरों का उद्देश्य था कि गांव के अन्य बेरोजगारों को इस व्यवसाय से जोड़कर गांव को कढ़ाई और जरी के क्षेत्र में पहचान दिलाई जाए. ऐसे में कारीगरों को इस योजना को अमलीजामा पहनाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन उन्होंने इसका भी जुगाड़ निकाल लिया. दिल्ली मुंबई से लौटकर गांव पहुंचे कारीगरों को पहले तो आर्डर नहीं मिला लेकिन रांची में व्यवसायियों से संपर्क स्थापित करने के बाद उनकी इस समस्या का समाधान हो गया. रांची के व्यवसायियों ने उन पर विश्वास जताते हुए ना सिर्फ ऑर्डर दिया बल्कि पूंजी देकर भी उनकी मदद की. कारीगरों का कहना है कि रांची के व्यवसायियों की तरह कि अगर सरकार दरियादिली दिखा कर कारीगरों को थोड़ी मदद कर दे तो उनका यह व्यवसाय लघु उद्योग का रूप धारण कर सकता है.

ईटीवी भारत की टीम के द्वारा स्थानीय प्रखंड प्रशासन को कारीगरों की समस्या से अवगत कराने के बाद प्रखंड विकास पदाधिकारी ने भी बेरोजगार कारीगरों के नीतियों की सराहना की. उन्होंने आश्वस्त किया कि बड़े शहरों को छोड़कर अपने छोटे से गांव में जरी और कढ़ाई का काम शुरू करने वाले बेरोजगार कारीगरों को प्रशासन हर संभव मदद करेगा. वीडियो ने कहा है कि कारीगरों द्वारा निर्मित कपड़ों को प्रदेश और देश के कई जिलों का प्रदेशों में निर्यात करने की व्यवस्था की जाएगी. ताकि मेहनतकश कारीगरों को उचित मेहनत आना मिलने के साथ-साथ उनके काम को उचित सम्मान भी मिल सके.

Intro:चतरा : कहते हैं कि हुनर हो तो बेरोजगारी विकास में कभी बाधक नहीं बन सकती। इसी कहावत को इन दिनों चतरा के घोर नक्सल प्रभावित सिमरिया प्रखंड के फतहा गांव के बेरोजगार युवक चरितार्थ करने में जुटे हैं। पढ़ लिख कर बेरोजगारी का दंश झेल रहे यहां के युवक अपने हुनर के बल पर न सिर्फ बेरोजगारी को मुंह चिढ़ाते नजर आ रहे हैं बल्कि इनके हुनर और कारीगरी का डंका प्रदेश के विभिन्न जिलों में खूब बज रहा है। यहां के बेरोजगार युवकों ने कढ़ाई और जरी का काम शुरू कर रोजगार को एक आयाम दिया है। ऐसे में अगर इन होनहार युवकों को तनिक भी सरकारी मदद मिल जाए तो इनकी यह हुनर उद्योग का रूप धारण कर सकता है। क्योंकि यहां के करीब पांच दर्जन बेरोजगार युवक अपनी कारीगरी से रांची के बाजार की रौनक बढ़ाने में जुटे हैं। इन बेरोजगार युवकों को रांची के कपड़ा व्यवसाई साड़ी, सलवार, सूट, दुपट्टा व ब्लाउज बनाने का काम तो दे रहे हैं लेकिन मेहनत के अपेक्षा इन कारीगरों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। बावजूद ये पापी पेट के खातिर दिनरात मेहनत कर आकर्षक व खूबसूरत कढ़ाई कर कपड़ों को रांची के मंडियों में भेजते हैं। ताकि इनकी न सिर्फ रोजगार की पहिया निरंतर प्रगतिशील रहे बल्कि इन्हें रांची की तरह अन्य जिलों व राज्यों से भी ऑर्डर मिल सके।

बाईट : मो. मेराज अंसारी, कारीगर।
बाईट : अमित मिश्रा, प्रखंड विकास पदाधिकारी।


Body:जानकारी के अनुसार सिमरिया के फतहा गांव के कारीगरों को हर दिन चार से पांच सौ रुपये तक की कमाई होती है। एक साड़ी में कढ़ाई का काम करने में एक कारीगर को पांच से छह दिन लगते हैं। इसके बदले उन्हें तीन से चार हजार रुपये मिलते हैं। इसी तरह एक दुपट्टा को तैयार करने में कारीगर को तीन दिन लगते हैं। इसके बदले उन्हें पंद्रह सौ रुपए मिलते हैं। एक ब्लाउज में भी इन्हें एक से दो दिन का समय लग जाता है। जिसके बदले उन्हें आठ सौ रुपए तक की आमदनी होती है। पूर्व में भी इस गांव के कारीगर दिल्ली व मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाकर अपनी कारीगरी का लोहा मनवा चुके हैं। ये कारीगर वहां जाकर कढ़ाई व जरी का काम करते थे। बाद में कारीगरों ने इस काम गांव में ही करने का फैसला लिया। कारीगरों का उद्देश्य था कि गांव के अन्य बेरोजगारों को इस व्यवसाय से जोड़कर गांव को कढ़ाई और जरी के क्षेत्र में जिला ही नहीं बल्कि राज्य व देश के विभिन्न प्रदेशों में पहचान दिलाई जाए। ऐसे में कारीगरों को इस योजना को अमलीजामा पहनाने में थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन उन्होंने इसका भी जुगाड़ निकाल लिया। दिल्ली मुंबई से लौटकर गांव पहुंचे कारीगरों को पहले तो आर्डर नहीं मिला लेकिन रांची में व्यवसायियों से संपर्क स्थापित करने के बाद उनकी इस समस्या का समाधान हो गया। रांची के व्यवसायियों ने उन पर विश्वास जताते हुए ना सिर्फ ऑर्डर दिया बल्कि पूंजी भी देकर उनकी मदद की। कारीगरों का कहना है कि रांची के व्यवसायियों की तरह कि अगर सरकार दरियादिली दिखा कर कारीगरों को थोड़ी मदद कर दे तो उनका यह व्यवसाय लघु उद्योग का रूप धारण कर सकता है।


Conclusion:इधर ईटीवी भारत की टीम के द्वारा स्थानीय प्रखंड प्रशासन को कारीगरों की समस्या से अवगत कराने के बाद प्रखंड विकास पदाधिकारी ने भी बेरोजगार कारीगरों के नीतियों की सराहना की। उन्होंने आश्वस्त किया कि बड़े शहरों को छोड़कर अपने छोटे से गांव में जड़ी और करहाई का काम शुरू करने वाले बेरोजगार कारीगरों को प्रशासन हर संभव मदद करेगा। वीडियो ने कहा है कि कारीगरों द्वारा निर्मित कपड़ों को प्रदेश व देश के विभिन्न जिलों का प्रदेशों में निर्यात करने की व्यवस्था की जाएगी। ताकि मेहनतकश कारीगरों को उचित मेहनत आना मिलने के साथ-साथ उनके काम को उचित सम्मान भी मिल सके।
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