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नक्सल प्रभावित गांव में पहली बार अधिकारियों का आगमन, अफीम की खेती नष्ट कर ग्रामीणों को दिखाई नयी राह

चतरा में अफीम की फसल को पुलिस ने नष्ट किया है. पहली बार नक्सल प्रभावित इलाके में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी पहुंचे. अफीम विनिष्टिकरण अभियान के तहत उन्होंने नक्सलियों के आर्थिक स्रोत और अफीम तस्करों पर चोट की है. इसके अलावा चतरा पुलिस की ओर से सामुदायिक पुलिसिंग कार्यक्रम के तहत ग्रामीणों के बीच जरूरत के सामानों का वितरण भी किया गया.

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चतरा में अफीम की फसल
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Published : Feb 6, 2022, 7:52 PM IST

Updated : Feb 6, 2022, 9:09 PM IST

चतरा: झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित राजपुर थाना क्षेत्र के जंगली और पहाड़ी इलाकों में सक्रिय अफीम तस्करों को नेस्तनाबूद कर नक्सलियों का आर्थिक कमर तोड़ने को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह कमर कस चुकी है. अमकुदर नरसंहार के साक्षी रहे नक्सल गढ़ माने जाने वाले गड़िया, अमकुदर, पथेल, धवैया और बेंगो समेत जंगली इलाकों में विशेष अभियान चलाकर जिला प्रशासन, पुलिस, सीआरपीएफ 190 बटालियन और वन विभाग की संयुक्त टीम के द्वारा कैंप लगाकर लगाए गए पोस्तो और अफीम की फसल को विनष्ट किया जा रहा है. तीन दिनों के भीतर करीब दो सौ एकड़ में फैले अफीम की खेती को नष्ट किया गया. सदर एसडीपीओ अविनाश कुमार के नेतृत्व में पुलिस, सीआरपीएफ और वन विभाग की टीम लगातार अभियान चला रही है.

इसे भी पढ़ें- जामताड़ा पुलिस ने 2 एकड़ खेत में लगे पोस्ता की फसल को किया नष्ट, एक किसान गिरफ्तार

चतरा में अफीम की फसल को पुलिस ने नष्ट किया है. डीसी अंजलि यादव और एसपी राकेश रंजन भी सीआरपीएफ कमांडेंट व डीएफओ समेत अधिकारियों और जवानों के साथ मिलकर अफीम विनिष्टिकरण अभियान की मॉनिटरिंग कर रहे हैं. सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाओं से महरूम नक्सल प्रभावित इलाके में पहली बार डीसी, एसपी, कमांडेंट व डीएफओ अधिकारियों संग बाइक से पहुंचे और अभियान की समीक्षा की. साथ ही विकास से महरूम गांवों को सरकारी योजनाओं से जोड़ते हुए जनकल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने की बात कही.

देखें वीडियो

इस मौके पर विकास योजनाओं से जुड़ने के बजाए अफीम उत्पादन को प्राथमिकता देने वाले ग्रामीणों को गैर-कानूनी कार्यों से तौबा कर पोस्ता की खेती नहीं करने की कसम खिलाई. इस मौके पर डीसी अंजली यादव ने कहा कि विकास से कोसों दूर जंगली पहाड़ों से इन गांवों में विकास की किरण जरूर पहुंचेगी. यहां जरूरी उपयोगी योजनाओं का चयन कर योजनाबद्ध तरीके से इन गांवों का विकास किया जाएगा. अफीम की खेती समेत अन्य गैरकानूनी कार्यो से जुड़े ग्रामीणों में जागरूकता के साथ-साथ विकास की उम्मीद जगाई जा सके. उन्होंने कहा कि अफीम विनष्टीकरण अभियान निरंतर जारी रहेगा, जब तक अफीम पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता तब तक अधिकारी व जवान कैंप करते रहेंगे.

चतरा एसपी ने कहा कि जिला में गैरकानूनी कार्यों से जुड़े लोगों के लिए कहीं जगह नहीं है. जागरुकता के अभाव में प्रलोभन का शिकार होकर अफीम तस्करों के बहकावे में मासूम ग्रामीण अफीम की खेती से जुड़ गए थे. जिससे इस इलाके की ना सिर्फ छवि धूमिल हुई है बल्कि अफीम जोन के रूप में भी प्रसिद्ध हो गया था. एसपी ने बताया कि चतरा में अफीम तस्कर नक्सलियों के संरक्षण में झारखंड बिहार की सीमा से सटे जंगली इलाकों में अफीम की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. जिससे काले धंधे से होने वाली काली कमाई से ना सिर्फ उनका आर्थिक स्रोत सुदृढ़ हो बल्कि नक्सली इन पैसों के बल पर हाईटेक हो सके. लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं ना सिर्फ इलाके से नक्सलियों के संरक्षण में पोस्ता की खेती से जुड़े तस्करों का सफाया होगा. बल्कि ग्रामीणों से बेहतर व प्रगाढ़ संबंध स्थापित करते हुए यहां विकास की गंगा भी बहाई जाएगी. अधिकारियों ने कहा कि इन इलाकों में अब निरंतर अधिकारियों का आवागमन होगा ताकि यहां संचालित होने वाले विकास योजनाओं को शत-प्रतिशत धरातल पर उतारा जा सके.

इसे भी पढ़ें- Video: गुमला में नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सोशल पुलिसिंग

यहां बता दें कि राजपुर थाना क्षेत्र का गड़िया, अमकुदर, पथेल और धवैया समेत इससे सटे अन्य गांव को सबसे सुदूरवर्ती और नक्सल प्रभावित इलाके के रूप में जाना जाता है. जो बिहार राज्य के गया जिला के बाराचट्टी से सटा है. इस लिहाज से यहां पुलिस और प्रशासन की गतिविधि सुरक्षा कारणों से ना के बराबर होती थी. जिसके कारण यह इलाका नक्सलियों का सेफ जोन बन गया था और यहां शासन के बजाय नक्सलियों की हुकूमत अबतक चलती आ रही थी. बाराचट्टी घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, इस परिस्थिति में गड़िया, अमकुदर में नक्सलियों की आवाजाही हमेशा बनी रहती है.

नक्सली अपना आर्थिक उपार्जन के लिए गडि़या, अमकुदर में ग्रामीणों से अफीम की खेती करवाते हैं. यहां उत्पन्न परिस्थितियों का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि गांव की पगडंडियों के दोनों और सिर्फ और सिर्फ अफीम की फसल लहलहा रहे हैं. लेकिन एक सप्ताह से जारी अफीम विनिष्टिकरण अभियान ने नक्सलियों के आर्थिक स्रोत की कमर को पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया है. इस अभियान के दौरान जिस तरह अधिकारियों ने ग्रामीणों को पोस्ता की खेती नहीं करने की कसम खिलाई, उसी तरह ग्रामीणों ने भी अधिकारियों से निरंतर गांव का भ्रमण करने की अपील की है. नक्सल प्रभावित गांव में पहली बार अधिकारियों के आगमन से ना सिर्फ ग्रामीणों में उत्साह था, बल्कि उनकी नजरों में विकास के उम्मीद की किरण भी साफ दिखाई दे रही थी. यह पहला मौका था जब नक्सलियों के गढ़ में जिला के वरीय अधिकारियों ने पहली बार कदम रखने की हिम्मत जुटाई थी.

चतरा: झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित राजपुर थाना क्षेत्र के जंगली और पहाड़ी इलाकों में सक्रिय अफीम तस्करों को नेस्तनाबूद कर नक्सलियों का आर्थिक कमर तोड़ने को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह कमर कस चुकी है. अमकुदर नरसंहार के साक्षी रहे नक्सल गढ़ माने जाने वाले गड़िया, अमकुदर, पथेल, धवैया और बेंगो समेत जंगली इलाकों में विशेष अभियान चलाकर जिला प्रशासन, पुलिस, सीआरपीएफ 190 बटालियन और वन विभाग की संयुक्त टीम के द्वारा कैंप लगाकर लगाए गए पोस्तो और अफीम की फसल को विनष्ट किया जा रहा है. तीन दिनों के भीतर करीब दो सौ एकड़ में फैले अफीम की खेती को नष्ट किया गया. सदर एसडीपीओ अविनाश कुमार के नेतृत्व में पुलिस, सीआरपीएफ और वन विभाग की टीम लगातार अभियान चला रही है.

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चतरा में अफीम की फसल को पुलिस ने नष्ट किया है. डीसी अंजलि यादव और एसपी राकेश रंजन भी सीआरपीएफ कमांडेंट व डीएफओ समेत अधिकारियों और जवानों के साथ मिलकर अफीम विनिष्टिकरण अभियान की मॉनिटरिंग कर रहे हैं. सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाओं से महरूम नक्सल प्रभावित इलाके में पहली बार डीसी, एसपी, कमांडेंट व डीएफओ अधिकारियों संग बाइक से पहुंचे और अभियान की समीक्षा की. साथ ही विकास से महरूम गांवों को सरकारी योजनाओं से जोड़ते हुए जनकल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने की बात कही.

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इस मौके पर विकास योजनाओं से जुड़ने के बजाए अफीम उत्पादन को प्राथमिकता देने वाले ग्रामीणों को गैर-कानूनी कार्यों से तौबा कर पोस्ता की खेती नहीं करने की कसम खिलाई. इस मौके पर डीसी अंजली यादव ने कहा कि विकास से कोसों दूर जंगली पहाड़ों से इन गांवों में विकास की किरण जरूर पहुंचेगी. यहां जरूरी उपयोगी योजनाओं का चयन कर योजनाबद्ध तरीके से इन गांवों का विकास किया जाएगा. अफीम की खेती समेत अन्य गैरकानूनी कार्यो से जुड़े ग्रामीणों में जागरूकता के साथ-साथ विकास की उम्मीद जगाई जा सके. उन्होंने कहा कि अफीम विनष्टीकरण अभियान निरंतर जारी रहेगा, जब तक अफीम पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता तब तक अधिकारी व जवान कैंप करते रहेंगे.

चतरा एसपी ने कहा कि जिला में गैरकानूनी कार्यों से जुड़े लोगों के लिए कहीं जगह नहीं है. जागरुकता के अभाव में प्रलोभन का शिकार होकर अफीम तस्करों के बहकावे में मासूम ग्रामीण अफीम की खेती से जुड़ गए थे. जिससे इस इलाके की ना सिर्फ छवि धूमिल हुई है बल्कि अफीम जोन के रूप में भी प्रसिद्ध हो गया था. एसपी ने बताया कि चतरा में अफीम तस्कर नक्सलियों के संरक्षण में झारखंड बिहार की सीमा से सटे जंगली इलाकों में अफीम की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. जिससे काले धंधे से होने वाली काली कमाई से ना सिर्फ उनका आर्थिक स्रोत सुदृढ़ हो बल्कि नक्सली इन पैसों के बल पर हाईटेक हो सके. लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं ना सिर्फ इलाके से नक्सलियों के संरक्षण में पोस्ता की खेती से जुड़े तस्करों का सफाया होगा. बल्कि ग्रामीणों से बेहतर व प्रगाढ़ संबंध स्थापित करते हुए यहां विकास की गंगा भी बहाई जाएगी. अधिकारियों ने कहा कि इन इलाकों में अब निरंतर अधिकारियों का आवागमन होगा ताकि यहां संचालित होने वाले विकास योजनाओं को शत-प्रतिशत धरातल पर उतारा जा सके.

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यहां बता दें कि राजपुर थाना क्षेत्र का गड़िया, अमकुदर, पथेल और धवैया समेत इससे सटे अन्य गांव को सबसे सुदूरवर्ती और नक्सल प्रभावित इलाके के रूप में जाना जाता है. जो बिहार राज्य के गया जिला के बाराचट्टी से सटा है. इस लिहाज से यहां पुलिस और प्रशासन की गतिविधि सुरक्षा कारणों से ना के बराबर होती थी. जिसके कारण यह इलाका नक्सलियों का सेफ जोन बन गया था और यहां शासन के बजाय नक्सलियों की हुकूमत अबतक चलती आ रही थी. बाराचट्टी घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, इस परिस्थिति में गड़िया, अमकुदर में नक्सलियों की आवाजाही हमेशा बनी रहती है.

नक्सली अपना आर्थिक उपार्जन के लिए गडि़या, अमकुदर में ग्रामीणों से अफीम की खेती करवाते हैं. यहां उत्पन्न परिस्थितियों का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि गांव की पगडंडियों के दोनों और सिर्फ और सिर्फ अफीम की फसल लहलहा रहे हैं. लेकिन एक सप्ताह से जारी अफीम विनिष्टिकरण अभियान ने नक्सलियों के आर्थिक स्रोत की कमर को पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया है. इस अभियान के दौरान जिस तरह अधिकारियों ने ग्रामीणों को पोस्ता की खेती नहीं करने की कसम खिलाई, उसी तरह ग्रामीणों ने भी अधिकारियों से निरंतर गांव का भ्रमण करने की अपील की है. नक्सल प्रभावित गांव में पहली बार अधिकारियों के आगमन से ना सिर्फ ग्रामीणों में उत्साह था, बल्कि उनकी नजरों में विकास के उम्मीद की किरण भी साफ दिखाई दे रही थी. यह पहला मौका था जब नक्सलियों के गढ़ में जिला के वरीय अधिकारियों ने पहली बार कदम रखने की हिम्मत जुटाई थी.

Last Updated : Feb 6, 2022, 9:09 PM IST
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