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चतरा: 7 सालों से दर्द से तड़प रहा मोहन, इलाज के अभाव में खाट पर कट रही जिंदगी - चतरा में 7 साल से बीमार है शख्स

चतरा में सात वर्ष पूर्व मोहन के ऊपर मशीन गिर जाने के कारण उसकी कमर टूट गई थी, जिसके बाद में वह खटिया पर पड़े-पड़े अपनी मौत का इंतजार कर रहा है. मामला संज्ञान में आने के बाद विधायक ने सरकारी खर्चे से समुचित इलाज कराने का आश्वसन दिया है.

man is suffering from pain last 7 years
खाट पर बेबस जिंदगी
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Published : Sep 21, 2020, 12:01 PM IST

चतराः जिले के सिमरिया प्रखंड के डाड़ी गांव निवासी मोहन महतो पिछले सात वर्षों से चारपाई पर अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं. दुर्घटना के शिकार मोहन पैसे के अभाव में उचित इलाज नहीं होने के कारण खटिये पर ही सिमट कर रह गए हैं. उनकी जिंदगी नासूर हो गई है कि वह अब तिल-तिलकर मरने को विवश है. उसके दर्द को समझने के लिए अब किसी फरिश्ते का इंतजार है, जो उसका इलाज करा सके.

देखें पूरी खबर

बुरी जिंदगी जीने को विवश
मोहन का जीवन अभिशाप बनकर रह गया. आलम ये है कि घर के बाहर पड़े खटिया पर वह न सिर्फ अपनी जिंदगी को कोस रहा है, बल्कि भगवान से भी दिन-रात यही मिन्नत कर रहा है कि उसे इस कष्ट भरी जिंदगी से छुटकारा मिल जाए. ऐसे में टूटी कमर के दर्द ने उसे मौत से भी बुरी जिंदगी जीने को विवश कर रखा है.

सात वर्ष पूर्व हुआ था हादसा
करीब सात वर्ष पूर्व 45 वर्षीय मोहन महतो काम कर रहे थे. इस दौरान उनके ऊपर मशीन गिर जाने के कारण उनकी कमर टूट गई थी, जिसके बाद आर्थिक तंगी से जूझ रहे मोहन के बेटे ने स्थानीय स्तर पर उसका इलाज कराने का प्रयास भी किया, लेकिन कमर की स्थिति को देखते हुए स्थानीय चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे बेहतर इलाज के लिए रांची के रिम्स रेफर कर दिया.

इसे भी पढ़ें- कृषि सुधार बिल लोकसभा और राज्यसभा से पारित, प्रदेश महामंत्री प्रदीप वर्मा ने कहा- अन्नदाता होंगे सशक्त

खटिया पर पड़े-पड़े मौत का इंतजार
वहीं, आर्थिक तंगी से जूझ रहे दिहाड़ी मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले उसके बेटे ने उसे रांची ले जाने में असमर्थता जताई और उपचार कराने के बजाए उसे उसी हालत में घर ले आया. जिसके बाद से मोहन खटिया पर पड़े-पड़े अपनी मौत का इंतजार कर रहा है. मोहन की स्थिति ऐसी है कि उसे सरकारी अनाज तो मिलता है, लेकिन उसकी मात्रा इतनी नहीं है कि वह महीने भर चल सके. उसे सरकार द्वारा कोई लाभ भी नहीं मिला है.

विधायक ने दिया आश्वासन
हालांकि ईटीवी भारत की टीम ने जब मोहन के दर्द से स्थानीय विधायक किशुन दास को अवगत कराया तो उन्होंने सरकारी खर्चे पर उसका इलाज कराने का आश्वासन जरूर दिया. विधायक ने कहा है कि वे प्रयास कर रहे हैं कि मोहन का सरकारी खर्च पर समुचित इलाज हो जाए, ताकि न सिर्फ उसे दर्द भरी जिंदगी से छुटकारा मिल जाए, बल्कि वह एक आम जिंदगी भी जी सके.

चतराः जिले के सिमरिया प्रखंड के डाड़ी गांव निवासी मोहन महतो पिछले सात वर्षों से चारपाई पर अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं. दुर्घटना के शिकार मोहन पैसे के अभाव में उचित इलाज नहीं होने के कारण खटिये पर ही सिमट कर रह गए हैं. उनकी जिंदगी नासूर हो गई है कि वह अब तिल-तिलकर मरने को विवश है. उसके दर्द को समझने के लिए अब किसी फरिश्ते का इंतजार है, जो उसका इलाज करा सके.

देखें पूरी खबर

बुरी जिंदगी जीने को विवश
मोहन का जीवन अभिशाप बनकर रह गया. आलम ये है कि घर के बाहर पड़े खटिया पर वह न सिर्फ अपनी जिंदगी को कोस रहा है, बल्कि भगवान से भी दिन-रात यही मिन्नत कर रहा है कि उसे इस कष्ट भरी जिंदगी से छुटकारा मिल जाए. ऐसे में टूटी कमर के दर्द ने उसे मौत से भी बुरी जिंदगी जीने को विवश कर रखा है.

सात वर्ष पूर्व हुआ था हादसा
करीब सात वर्ष पूर्व 45 वर्षीय मोहन महतो काम कर रहे थे. इस दौरान उनके ऊपर मशीन गिर जाने के कारण उनकी कमर टूट गई थी, जिसके बाद आर्थिक तंगी से जूझ रहे मोहन के बेटे ने स्थानीय स्तर पर उसका इलाज कराने का प्रयास भी किया, लेकिन कमर की स्थिति को देखते हुए स्थानीय चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे बेहतर इलाज के लिए रांची के रिम्स रेफर कर दिया.

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खटिया पर पड़े-पड़े मौत का इंतजार
वहीं, आर्थिक तंगी से जूझ रहे दिहाड़ी मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले उसके बेटे ने उसे रांची ले जाने में असमर्थता जताई और उपचार कराने के बजाए उसे उसी हालत में घर ले आया. जिसके बाद से मोहन खटिया पर पड़े-पड़े अपनी मौत का इंतजार कर रहा है. मोहन की स्थिति ऐसी है कि उसे सरकारी अनाज तो मिलता है, लेकिन उसकी मात्रा इतनी नहीं है कि वह महीने भर चल सके. उसे सरकार द्वारा कोई लाभ भी नहीं मिला है.

विधायक ने दिया आश्वासन
हालांकि ईटीवी भारत की टीम ने जब मोहन के दर्द से स्थानीय विधायक किशुन दास को अवगत कराया तो उन्होंने सरकारी खर्चे पर उसका इलाज कराने का आश्वासन जरूर दिया. विधायक ने कहा है कि वे प्रयास कर रहे हैं कि मोहन का सरकारी खर्च पर समुचित इलाज हो जाए, ताकि न सिर्फ उसे दर्द भरी जिंदगी से छुटकारा मिल जाए, बल्कि वह एक आम जिंदगी भी जी सके.

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