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एक गांव जहां एक ही घाट पर बुझती है इंसान और जानवरों की प्यास

humans and animals drink water at one ghat in chatra
एक घाट पर इंसान और जानवर
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Published : Nov 28, 2020, 3:26 PM IST

चतरा: झारखंड के कई ऐसे जिला हैं जो अति नक्सल प्रभावित है. उनमें चतरा जिला का नाम भी शामिल है. इस जिले में नक्सली के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं. लेकिन चतरा के कई गांव में आज भी विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

एक घाट पर इंसान और जानवर पीते हैं पानी

चतरा के विकास के लिए राज्य के मंत्री से लेकर आला अधिकारी लगातार दौरा करते हैं और कई दावे भी करते हैं. लेकिन जिला का नक्सल प्रभावित लावालौंग प्रखंड के सिकनी गांव के लोग उसी घाट से पीने का पानी भरते हैं, जहां मवेशी आकर पानी पीते हैं. यहां एक ही घाट पर जानवरों के पानी पीने और महिलाओं के पानी भरने की ईटीवी भारत की कैमरे में कैद हुई तस्वीरें विकास के दावों को मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं, यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक मयस्सर नहीं है. खासकर पानी का जुगाड़ करने में महिलाओं का घंटों समय बीत जा रहा है. जब घर के लोग की जिंदगी पानी की जद्दोजहद में ही गुजर जाती हो तो, फिर बच्चों की पढ़ाई लिखाई की कौन सोचे, सब भगवान भरोसे हैं.

इसे भी पढ़ें- चुड़ैल के डर से शाम ढलते ही घरों में कैद हो जाते हैं लोग, यहां जानिए इस गांव की पूरी कहानी


गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

अनुसूचित जनजाति बहुल इस गांव के लोग जल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं. स्थिति यह है कि यहां के लोग प्रशासनिक उपेक्षा के कारण जंगल से निकलने वाली नदी और नाले के दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीणों के अनुसार, गांव में दिखावे के लिए एक चापाकल है भी तो विगत कई सालों से क्षतिग्रस्त होकर खराब पड़ा है. बावजूद अबतक किसी भी सरकारी रहनुमाओं की नजर इस गांव पर नहीं पड़ी है. जिसकी वजह से रोजाना गांव के पास वाले नदी से निकलने वाले नाले का गंदा पानी ले जाने को यहां के ग्रामीण मजबूर हैं. इसी घाट पर आवारा कुत्ते, गाय और बकरियां भी इन ग्रामीणों के साथ अपनी प्यास बुझा रहे हैं. इस गांव में ना तो अधिकारियों और ना ही नेता पहुंचते हैं. हां चुनाव के समय वोट मांगते जरूर दिख जाते हैं. गांव की महिलाएं प्यास बुझाने के लिए लगभग एक किलोमीटर तय कर नदी नाले की पानी लाने जाती हैं, तब जाकर वो इस पानी को पीने और खाना बनाने में इस्तेमाल करती हैं. पंचायत की मुखिया और जनप्रतिनिधि भी इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं.

अधिकारी ने दिया जानकारी ना होने का हवाला

इस गांव की हालत देखने के बाद जब ईटीवी भारत की टीम ने जिले के उप विकास आयुक्त सुनील कुमार सिंह से कारण पूछा तो उन्होंने पहले तो जानकारी नहीं होने की बात कही. इसके बाद गांव में पेयजल की व्यवस्था जल्द करने का भरोसा दिया है.

चतरा: झारखंड के कई ऐसे जिला हैं जो अति नक्सल प्रभावित है. उनमें चतरा जिला का नाम भी शामिल है. इस जिले में नक्सली के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं. लेकिन चतरा के कई गांव में आज भी विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई है.

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एक घाट पर इंसान और जानवर पीते हैं पानी

चतरा के विकास के लिए राज्य के मंत्री से लेकर आला अधिकारी लगातार दौरा करते हैं और कई दावे भी करते हैं. लेकिन जिला का नक्सल प्रभावित लावालौंग प्रखंड के सिकनी गांव के लोग उसी घाट से पीने का पानी भरते हैं, जहां मवेशी आकर पानी पीते हैं. यहां एक ही घाट पर जानवरों के पानी पीने और महिलाओं के पानी भरने की ईटीवी भारत की कैमरे में कैद हुई तस्वीरें विकास के दावों को मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं, यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक मयस्सर नहीं है. खासकर पानी का जुगाड़ करने में महिलाओं का घंटों समय बीत जा रहा है. जब घर के लोग की जिंदगी पानी की जद्दोजहद में ही गुजर जाती हो तो, फिर बच्चों की पढ़ाई लिखाई की कौन सोचे, सब भगवान भरोसे हैं.

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गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

अनुसूचित जनजाति बहुल इस गांव के लोग जल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं. स्थिति यह है कि यहां के लोग प्रशासनिक उपेक्षा के कारण जंगल से निकलने वाली नदी और नाले के दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. ग्रामीणों के अनुसार, गांव में दिखावे के लिए एक चापाकल है भी तो विगत कई सालों से क्षतिग्रस्त होकर खराब पड़ा है. बावजूद अबतक किसी भी सरकारी रहनुमाओं की नजर इस गांव पर नहीं पड़ी है. जिसकी वजह से रोजाना गांव के पास वाले नदी से निकलने वाले नाले का गंदा पानी ले जाने को यहां के ग्रामीण मजबूर हैं. इसी घाट पर आवारा कुत्ते, गाय और बकरियां भी इन ग्रामीणों के साथ अपनी प्यास बुझा रहे हैं. इस गांव में ना तो अधिकारियों और ना ही नेता पहुंचते हैं. हां चुनाव के समय वोट मांगते जरूर दिख जाते हैं. गांव की महिलाएं प्यास बुझाने के लिए लगभग एक किलोमीटर तय कर नदी नाले की पानी लाने जाती हैं, तब जाकर वो इस पानी को पीने और खाना बनाने में इस्तेमाल करती हैं. पंचायत की मुखिया और जनप्रतिनिधि भी इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं.

अधिकारी ने दिया जानकारी ना होने का हवाला

इस गांव की हालत देखने के बाद जब ईटीवी भारत की टीम ने जिले के उप विकास आयुक्त सुनील कुमार सिंह से कारण पूछा तो उन्होंने पहले तो जानकारी नहीं होने की बात कही. इसके बाद गांव में पेयजल की व्यवस्था जल्द करने का भरोसा दिया है.

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