ETV Bharat / state

बदहाली में जीने को मजबूर बिरहोर समुदाय, नहीं मिल रही मूलभूत सुविधाएं

चतरा जिले के बिरहोर समुदाय के स्थिति दयनीय है, उन्हें न तो सरकारी सुविधाएं मिल पा रही हैं और न ही उनका किसी तरह का कल्याण हो पा रहा है. मजबूरन ये लोग टूटे-फूटे घरों में रह रहे हैं और सरकार से मदद की आस में जाने को मजबूर हैं.

Bad condition of birhor
डिजाइन इमेज
author img

By

Published : Jan 1, 2020, 8:00 PM IST

चतरा: दुनिया 21 वीं सदी में पहुंच चुकी है लेकिन आदिम जनजातियों के जीवनस्तर में कोई सुधार नहीं दिख रहा है. उन्हें कई मौलिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं, चतरा के सिमरिया अनुमंडल के जंगलों के किनारे निवास करने वाले आदिम जनजाति बिरहोर परिवार इन दिनों बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं. उन्हें इस कड़ाके की ठंड में आवास की समस्या के साथ-साथ पेयजल की समस्या सता रही है.

देखें पूरी खबर

बदहाली के कगार पर बिरहोर समुदाय
आदिम जनजाति के अंतर्गत आनेवाले बिरहोर समुदाय के लिए केंद्र सरकार ने एक विशेष कानून बनाया था. उस कानून के तहत इन्हें संरक्षित और स्थाई निवास करने के लिए तथा खेती, कृषि की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इन्हें कल्याण विभाग की तरफ से मद उपलब्ध कराया जाता है. इसके बावजूद इन्हें ना गैस मिला है, ना राशन और ना ही आवास. बिरहोर परिवारों का कहना है कि रोजगार के उन्हें सरकार का सहयोग भी नहीं मिल रहा है. जिसके कारण बिरहोर परिवार बदहाली और कंगाली के कगार पर पहुंच गए हैं.

ये भी पढ़ें- पुरानी विधानसभा इमारत में पारी की शुरुआत करेगी हेमंत सरकार, 6 से 8 जनवरी तक विधानसभा सत्र

नहीं मिल रही मूलभूत सुविधा
सिमरिया अनुमंडल के बगरा और जबड़ा के बिरहोर कॉलोनी में एक जल मीनार भी लगाया गया था जो दो माह तक ही काम किया और आज तक बेकार पड़ा हुआ है. यही नहीं जबड़ा में बिरसा आवास बनाया जा रहा है जो कई वर्षों से अधूरा पड़ा हुआ है. जिससे बिरहोर परिवार के समुदाय झोपड़ी बनाकर और स्वयं के खर्चे से छत लगाकर इस कड़ाके की ठंड में निवास कर रहे हैं. सिमरिया अनुमंडल के सभी क्षेत्रों में यह समुदाय जंगलों के किनारे ही निवास करते हैं. इनका मुख्य पेशा जंगलों में शिकार करना, जंगली जड़ी बूटी कंदमूल बेचकर अपना गुजारा करना है.

समस्याएं दूर करने का आश्वासन
इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने जब सिमरिया प्रखंड विकास पदाधिकारी अमित मिश्रा से कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि कनीय अभियंता को इनकी वास्तविक स्थिति का अवलोकन करने और उन्हें मूलभूत सुविधाओं की जरूरत को पूरा करने के लिए आदेश दिया है. जैसे ही मुझे इनकी समस्या प्राप्त हो जाएगी मैं संबंधित कल्याण विभाग को पत्र सौंपकर इनकी समस्याओं को दूर करने का निर्देश दूंगा.

चतरा: दुनिया 21 वीं सदी में पहुंच चुकी है लेकिन आदिम जनजातियों के जीवनस्तर में कोई सुधार नहीं दिख रहा है. उन्हें कई मौलिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं, चतरा के सिमरिया अनुमंडल के जंगलों के किनारे निवास करने वाले आदिम जनजाति बिरहोर परिवार इन दिनों बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं. उन्हें इस कड़ाके की ठंड में आवास की समस्या के साथ-साथ पेयजल की समस्या सता रही है.

देखें पूरी खबर

बदहाली के कगार पर बिरहोर समुदाय
आदिम जनजाति के अंतर्गत आनेवाले बिरहोर समुदाय के लिए केंद्र सरकार ने एक विशेष कानून बनाया था. उस कानून के तहत इन्हें संरक्षित और स्थाई निवास करने के लिए तथा खेती, कृषि की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इन्हें कल्याण विभाग की तरफ से मद उपलब्ध कराया जाता है. इसके बावजूद इन्हें ना गैस मिला है, ना राशन और ना ही आवास. बिरहोर परिवारों का कहना है कि रोजगार के उन्हें सरकार का सहयोग भी नहीं मिल रहा है. जिसके कारण बिरहोर परिवार बदहाली और कंगाली के कगार पर पहुंच गए हैं.

ये भी पढ़ें- पुरानी विधानसभा इमारत में पारी की शुरुआत करेगी हेमंत सरकार, 6 से 8 जनवरी तक विधानसभा सत्र

नहीं मिल रही मूलभूत सुविधा
सिमरिया अनुमंडल के बगरा और जबड़ा के बिरहोर कॉलोनी में एक जल मीनार भी लगाया गया था जो दो माह तक ही काम किया और आज तक बेकार पड़ा हुआ है. यही नहीं जबड़ा में बिरसा आवास बनाया जा रहा है जो कई वर्षों से अधूरा पड़ा हुआ है. जिससे बिरहोर परिवार के समुदाय झोपड़ी बनाकर और स्वयं के खर्चे से छत लगाकर इस कड़ाके की ठंड में निवास कर रहे हैं. सिमरिया अनुमंडल के सभी क्षेत्रों में यह समुदाय जंगलों के किनारे ही निवास करते हैं. इनका मुख्य पेशा जंगलों में शिकार करना, जंगली जड़ी बूटी कंदमूल बेचकर अपना गुजारा करना है.

समस्याएं दूर करने का आश्वासन
इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने जब सिमरिया प्रखंड विकास पदाधिकारी अमित मिश्रा से कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि कनीय अभियंता को इनकी वास्तविक स्थिति का अवलोकन करने और उन्हें मूलभूत सुविधाओं की जरूरत को पूरा करने के लिए आदेश दिया है. जैसे ही मुझे इनकी समस्या प्राप्त हो जाएगी मैं संबंधित कल्याण विभाग को पत्र सौंपकर इनकी समस्याओं को दूर करने का निर्देश दूंगा.

Intro:चतरा: सरकार जरा यहां भी ध्यान दो, बदहाली के हाल में जीने को विवश हैं बिरहोर समुदाय

चतरा: दुनिया भले ही 21 वीं सदी में पहुंच गई हो लेकिन आदिम जनजातियों के लिए जीवन अब भी काफी कष्टकर है। उन्हें कई मौलिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। यह सच है चतरा जिले के सिमरिया अनुमंडल के जंगलों के किनारे निवास करने वाले आदिम जनजाति बिरहोर परिवार इन दिनों बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं। उनके समक्ष इस कड़ाके की ठंड में आवास की समस्या के साथ-साथ पेयजल की समस्या सता रही है। आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लिए केंद्र सरकार ने एक विशेष कानून बनाया था। उस कानून के तहत इन्हें संरक्षित और स्थाई निवास करने के लिए तथा खेती कृषि की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इन्हें कल्याण विभाग द्वारा मद उपलब्ध कराया जाता है। उक्त राशि इनके उत्थान में ही खर्च करनी थी। यह राशि कल्याण विभाग को प्रत्येक वर्ष प्राप्त होती है। लेकिन इसके बावजूद इन्हें ना गैस मिला है, ना राशन और ना ही आवास। बिरहोर परिवारों का कहना है कि रोजगार के उन्हें सरकार का सहयोग भी नहीं मिल रहा है। जिसके कारण बिरहोर परिवार बदहाली और कंगाली के कगार पर पहुंच गए हैं।

1. बाईट: बिरहोर महिला, देवंती देवी
2. बाईट: बिरहोर महिला, कुंती देवी
3. बाईट: प्रखंड विकास, पदाधिकारी अमित मिश्राBody:सिमरिया अनुमंडल के बगरा और जबड़ा के बिरहोर कॉलोनी में एक जल मीनार भी लगाया गया था जो दो माह तक ही काम किया और आज तक बेकार पड़ा हुआ है। यही नहीं जबड़ा में विरसा आवास बनाया जा रहा था जो कई वर्षों से आधा अधूरा पड़ा हुआ है। जिससे बिरहोर परिवार के समुदाय झोपड़ी बनाकर व स्वयं के खर्चे से छत लगाकर इस कड़ाके की ठंड में निवास कर रहे हैं। सिमरिया अनुमंडल के सभी क्षेत्रों में यह समुदाय जंगलों के किनारे ही निवास करते हैं। इनका मुख्य पेशा जंगलों में शिकार करना, जंगली जड़ी बूटी कंदमूल बेचकर अपना गुजारा करना है। किन्ही चिन्हित क्षेत्रों में तो यह लुप्तप्राय जैसे दिखते हैं। समाज के सबसे निचले स्तर पर जीवन जीने को विवश बिरहोर परिवार स्वभाव से ईमानदार और मेहनती होते हैं। अशिक्षित होने के कारण यह अन्य समुदायों से काफी पिछड़े हैं। इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने जब सिमरिया प्रखंड विकास पदाधिकारी अमित मिश्रा से कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि कनीय अभियंता को इनकी वास्तविक स्थिति का अवलोकन करने और उन्हें मूलभूत सुविधाओं की जरूरत को पूरा करने के लिए आदेश दिया है। जैसे ही मुझे इनकी समस्या प्राप्त हो जाएगी मैं संबंधित कल्याण विभाग को पत्र सौंपकर इनकी समस्याओं को दूर करने का निर्देश दूंगा। Conclusion:अब सवाल यह है कि विश्व स्तर के इस आमद जनजाति बिरहोर को हम संभाल कर नही रख पा रहे है जो हमारे पूर्वजों को धरोहर है। सरकार भी बिरहोरों को सम्यता के मुख्य धारा से जोड़ने में नाकाम रहे है। सरकारी फाइलों में मानवीय मूल्यों के साथ अपनी टिप्पणी लिखने वाले पदाधिकारियों व राजनेताओं ने कभी भी इस विलुप्त होती आदिम जनजाति के विकास के लिए ईमानदारी पूर्वक पहल नही की। यही वजह है कि आज झारखंड के सुदूर इलाकों में रहने वाले बिरहोरों की स्थिति दयनीय बनी हुई है।

मोहम्मद अरबाज ईटीवी भारत चतरा
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.