चतरा: दुनिया 21 वीं सदी में पहुंच चुकी है लेकिन आदिम जनजातियों के जीवनस्तर में कोई सुधार नहीं दिख रहा है. उन्हें कई मौलिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं, चतरा के सिमरिया अनुमंडल के जंगलों के किनारे निवास करने वाले आदिम जनजाति बिरहोर परिवार इन दिनों बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं. उन्हें इस कड़ाके की ठंड में आवास की समस्या के साथ-साथ पेयजल की समस्या सता रही है.
बदहाली के कगार पर बिरहोर समुदाय
आदिम जनजाति के अंतर्गत आनेवाले बिरहोर समुदाय के लिए केंद्र सरकार ने एक विशेष कानून बनाया था. उस कानून के तहत इन्हें संरक्षित और स्थाई निवास करने के लिए तथा खेती, कृषि की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इन्हें कल्याण विभाग की तरफ से मद उपलब्ध कराया जाता है. इसके बावजूद इन्हें ना गैस मिला है, ना राशन और ना ही आवास. बिरहोर परिवारों का कहना है कि रोजगार के उन्हें सरकार का सहयोग भी नहीं मिल रहा है. जिसके कारण बिरहोर परिवार बदहाली और कंगाली के कगार पर पहुंच गए हैं.
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नहीं मिल रही मूलभूत सुविधा
सिमरिया अनुमंडल के बगरा और जबड़ा के बिरहोर कॉलोनी में एक जल मीनार भी लगाया गया था जो दो माह तक ही काम किया और आज तक बेकार पड़ा हुआ है. यही नहीं जबड़ा में बिरसा आवास बनाया जा रहा है जो कई वर्षों से अधूरा पड़ा हुआ है. जिससे बिरहोर परिवार के समुदाय झोपड़ी बनाकर और स्वयं के खर्चे से छत लगाकर इस कड़ाके की ठंड में निवास कर रहे हैं. सिमरिया अनुमंडल के सभी क्षेत्रों में यह समुदाय जंगलों के किनारे ही निवास करते हैं. इनका मुख्य पेशा जंगलों में शिकार करना, जंगली जड़ी बूटी कंदमूल बेचकर अपना गुजारा करना है.
समस्याएं दूर करने का आश्वासन
इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने जब सिमरिया प्रखंड विकास पदाधिकारी अमित मिश्रा से कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि कनीय अभियंता को इनकी वास्तविक स्थिति का अवलोकन करने और उन्हें मूलभूत सुविधाओं की जरूरत को पूरा करने के लिए आदेश दिया है. जैसे ही मुझे इनकी समस्या प्राप्त हो जाएगी मैं संबंधित कल्याण विभाग को पत्र सौंपकर इनकी समस्याओं को दूर करने का निर्देश दूंगा.