रांची: साल 2000 से 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर वर्ष इसे मनाया जाता है. हमारे देश की मुख्य विशेषता यह है कि यहां विभिन्नता में एकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है. झारखंड में भी कई भाषाएं प्रचलन में है.
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा ने इसकी अहमियत अपनी मातृभाषा मुंडारी में बताया. उन्होंने कहा बच्चे के जन्म के बाद सबसे प्रिय भाषा मां की सुनाई देती है. इसलिए हर भाषा का आदर बेहद जरूरी है.
इन भाषाओं का झारखंड में है खास महत्व
संताली- संताली मुंडा भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है. यह असम, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में बोली जाती है. संथाली, हो और मुंडारी भाषाएँ आस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार में मुंडा शाखा में आती है. संताल भारत, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में लगभग 60 लाख लोगों से बोली जाती है. इसकी अपनी पुरानी लिपि का नाम 'ओल चिकी' है, उत्तर झारखण्ड के कुछ हिस्सोँ मे संथाली लिखने के लिये ओल चिकी लिपि का प्रयोग होता है.
मुंडारी- मुंडा लोगों द्वारा बोली ऑस्ट्रोसीएटिक भाषा परिवार की एक मुंडा भाषा है, और बारीकी से संथाली भाषा से संबंधित है. मुंडारी मुख्य रूप में पूर्व भारत, बांग्लादेश, नेपाल और मुंडा आदिवासी लोगों द्वारा बोली जाती है. "मुंडारी बानी" एक स्क्रिप्ट लिखने के लिए मुंडारी भाषा रोहिदास सिंह नाग द्वारा आविष्कार किया गया था.
नागपुरी- झारखंड के साथ कुछ अन्य राज्यों में भी बोली जाती है. यह एक हिन्द-आर्य भाषा है, इसे सादान या नागपुरी समुदाय बोलता है. जिस कारणवश इसे सादानी भाषा भी कहते हैं. नागजाति या नागवंश के शासन स्थापित होने पर यह भाषा सर्वमान्य हुई. बता दें कि तीनों भाषाओं को झारखंड में द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है.