ETV Bharat / state

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर झारखंड के नेताओं ने अपनी भाषा में दिया संदेश, कहा- भाषा का आदर जरुरी

आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है. इस दिन कई कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है. इस पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने मातृभाषा दिवस के बारे में बताया. उन्कहोंने हा हमें हर किसी की भाषा का आदर करना चाहिए.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
author img

By

Published : Feb 21, 2019, 12:03 PM IST

रांची: साल 2000 से 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर वर्ष इसे मनाया जाता है. हमारे देश की मुख्य विशेषता यह है कि यहां विभिन्नता में एकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है. झारखंड में भी कई भाषाएं प्रचलन में है.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा ने इसकी अहमियत अपनी मातृभाषा मुंडारी में बताया. उन्होंने कहा बच्चे के जन्म के बाद सबसे प्रिय भाषा मां की सुनाई देती है. इसलिए हर भाषा का आदर बेहद जरूरी है.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
रांची के जनजातीय शोध संस्थान में जमशेदपुर से पेंटिंग करने आए सोनाराम ने भी अपनी मातृभाषा संथाली में युवाओं को संदेश दिया. उनका कहना है ऐसा करने से अपनापन महसूस होता है और इससे अपनी संस्कृति को मजबूती मिलती है.इधर, भाजपा प्रवक्ता प्रतुल नाथ शाहदेव ने अपनी मातृभाषा नागपुरिया में इस भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा ऐसा करने से अपनापन महसूस होता है.

इन भाषाओं का झारखंड में है खास महत्व
संताली- संताली मुंडा भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है. यह असम, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में बोली जाती है. संथाली, हो और मुंडारी भाषाएँ आस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार में मुंडा शाखा में आती है. संताल भारत, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में लगभग 60 लाख लोगों से बोली जाती है. इसकी अपनी पुरानी लिपि का नाम 'ओल चिकी' है, उत्तर झारखण्ड के कुछ हिस्सोँ मे संथाली लिखने के लिये ओल चिकी लिपि का प्रयोग होता है.
मुंडारी- मुंडा लोगों द्वारा बोली ऑस्ट्रोसीएटिक भाषा परिवार की एक मुंडा भाषा है, और बारीकी से संथाली भाषा से संबंधित है. मुंडारी मुख्य रूप में पूर्व भारत, बांग्लादेश, नेपाल और मुंडा आदिवासी लोगों द्वारा बोली जाती है. "मुंडारी बानी" एक स्क्रिप्ट लिखने के लिए मुंडारी भाषा रोहिदास सिंह नाग द्वारा आविष्कार किया गया था.
नागपुरी- झारखंड के साथ कुछ अन्य राज्यों में भी बोली जाती है. यह एक हिन्द-आर्य भाषा है, इसे सादान या नागपुरी समुदाय बोलता है. जिस कारणवश इसे सादानी भाषा भी कहते हैं. नागजाति या नागवंश के शासन स्थापित होने पर यह भाषा सर्वमान्य हुई. बता दें कि तीनों भाषाओं को झारखंड में द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है.

undefined

रांची: साल 2000 से 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर वर्ष इसे मनाया जाता है. हमारे देश की मुख्य विशेषता यह है कि यहां विभिन्नता में एकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है. झारखंड में भी कई भाषाएं प्रचलन में है.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा ने इसकी अहमियत अपनी मातृभाषा मुंडारी में बताया. उन्होंने कहा बच्चे के जन्म के बाद सबसे प्रिय भाषा मां की सुनाई देती है. इसलिए हर भाषा का आदर बेहद जरूरी है.

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
रांची के जनजातीय शोध संस्थान में जमशेदपुर से पेंटिंग करने आए सोनाराम ने भी अपनी मातृभाषा संथाली में युवाओं को संदेश दिया. उनका कहना है ऐसा करने से अपनापन महसूस होता है और इससे अपनी संस्कृति को मजबूती मिलती है.इधर, भाजपा प्रवक्ता प्रतुल नाथ शाहदेव ने अपनी मातृभाषा नागपुरिया में इस भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा ऐसा करने से अपनापन महसूस होता है.

इन भाषाओं का झारखंड में है खास महत्व
संताली- संताली मुंडा भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है. यह असम, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में बोली जाती है. संथाली, हो और मुंडारी भाषाएँ आस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार में मुंडा शाखा में आती है. संताल भारत, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में लगभग 60 लाख लोगों से बोली जाती है. इसकी अपनी पुरानी लिपि का नाम 'ओल चिकी' है, उत्तर झारखण्ड के कुछ हिस्सोँ मे संथाली लिखने के लिये ओल चिकी लिपि का प्रयोग होता है.
मुंडारी- मुंडा लोगों द्वारा बोली ऑस्ट्रोसीएटिक भाषा परिवार की एक मुंडा भाषा है, और बारीकी से संथाली भाषा से संबंधित है. मुंडारी मुख्य रूप में पूर्व भारत, बांग्लादेश, नेपाल और मुंडा आदिवासी लोगों द्वारा बोली जाती है. "मुंडारी बानी" एक स्क्रिप्ट लिखने के लिए मुंडारी भाषा रोहिदास सिंह नाग द्वारा आविष्कार किया गया था.
नागपुरी- झारखंड के साथ कुछ अन्य राज्यों में भी बोली जाती है. यह एक हिन्द-आर्य भाषा है, इसे सादान या नागपुरी समुदाय बोलता है. जिस कारणवश इसे सादानी भाषा भी कहते हैं. नागजाति या नागवंश के शासन स्थापित होने पर यह भाषा सर्वमान्य हुई. बता दें कि तीनों भाषाओं को झारखंड में द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है.

undefined
Intro:
अर्जुन मुंडा - पूर्व मुख्यमंत्री , झारखंड

मुंडारी भाषा

21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा से किसकी अहमियत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपनी मातृभाषा मुंडारी में इसका जवाब दिया। अर्जुन मुंडा ने क्या कुछ कहा इसका हिंदी अनुवाद भी आप देख सकते हैं।

अनुवाद

बच्चे के जन्म के बाद जो सबसे प्रिय भाषा मां की सुनाई देती है वही मातृभाषा है और उस भाषा को सुनते हुए ही मैंने जो कुछ भी सीखा है और समाज के लिए और राष्ट्र के लिए काम कर रहे हैं यह हमारे लिए सबसे बड़ी संपत्ति है धन है। इसी तरीके से दुनिया में मां की भाषा का सम्मान करते हुए आगे बढ़े यह सब की चाहत है। लोग आगे बढें।

सोनाराम - संथाली भाषा

रांची स्थित जनजातीय शोध संस्थान में जमशेदपुर से पेंटिंग करने आए सोनाराम ने अपनी मातृभाषा संथाली में आज के युवाओं के लिए संदेश दिया।


अनुवाद

आज के युवा अपनी मातृभाषा को बोलने में हिचकते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। अगर आप की मातृभाषा संथाली है और आपको संथाली समाज के किसी शख्स से बात करनी हो तो उससे मातृभाषा में ही बात करना चाहिए। ऐसा करने से अपनापन महसूस होता है और इससे अपनी संस्कृति को मजबूती मिलती है।

प्रतुल नाथ शाहदेव - प्रवक्ता, झारखंड भाजपा

भाजपा प्रवक्ता प्रतुल नाथ शाहदेव ने अपनी मातृभाषा नागपुरिया में इस भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला।

अनुवाद

अपनी मातृभाषा की मिठास ही कुछ अलग होती है हम अपने घर में नागपुरिया भाषा में ही बात करते हैं बच्चे भी नागपुरिया भाषा में ही बात करते हैं । इससे एक दूसरे से तुरंत लगा हो जाता है। झारखंड में आदिवासी समाज के बीच नागपुरिया भाषा लिंक लैंग्वेज के रूप में काम करती है। मुंडारी या उरांव भाषा बोलने वालों के साथ भी नागपुरिया भाषा में संवाद आसानी से किया जा सकता है इसमें अपनापन महसूस होता है। सब को चाहिए कि वह अपनी भाषा को ना भूलें इसे बढ़ावा दें । इससे संस्कृति मजबूत होती है , तभी लगाव बढ़ता है।







Body:na


Conclusion:na
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.