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राज्य के कोने-कोने से आई तस्वीरें दिल को देती हैं सुकून, बयां करती हैं लोकतंत्र की मजबूती

लाल आतंक से बेपरवाह ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाई और मतदान कर अपने विकास का रास्ता चुन लिया. मतदान की जिम्मेदारी दिव्यांगों को भी पोलिंग बूथों तक ले आई. ट्राईसाइकिल और व्हीलचेयर की सुविधा ने दिव्यांगों को सहारा दिया तो उन्होंने भी तमाम दिक्कतों को दरकिनार कर वोट डाला.

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Published : May 6, 2019, 9:42 PM IST

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रांची/हैदराबादः झारखंड में लोकतंत्र के महापर्व में अनेक रंग देखने को मिले. हाई प्रोफाइल राजधानी रांची, हजारीबाग और कोडरमा सहित धुर नक्सल प्रभावित खूंटी में मतदान शांतिपूर्ण रहा. इस दौरान ऐसी कई तस्वीरें दिखी, जिसने कभी रोमांचित किया तो कोई तस्वीर प्रेरणा और लोकतंत्र पर भरोसे का प्रतीक बन गई.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

मतदान यानी लोकतंत्र का महादान, किसी के लिए देश के प्रति सबसे बड़ी जिम्मेदारी, तो किसी के लिए भविष्य की खातिर अपने हक का इस्तेमाल.. कारण कई हो सकते हैं लेकिन ध्येय सिर्फ एक... और वो है.. अगले पांच सालों के लिए केंद्र की कमान किसी जिम्मेदार के हाथ सौंपना. लोकसभा चुनाव के इस महोत्सव में मतदाताओं को न तो तपती गर्मी रोक पाई और न ही नक्सलियों का खौफ. खूंटी संसदीय क्षेत्र में खरसावां से सटे घोर नक्सल प्रभावित कुचाई के बीहड़ में भी लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया.

लाल आतंक से बेपरवाह ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाई और मतदान कर अपने विकास का रास्ता चुन लिया. मतदान की जिम्मेदारी दिव्यांगों को भी पोलिंग बूथों तक ले आई. ट्राईसाइकिल और व्हीलचेयर की सुविधा ने दिव्यांगों को सहारा दिया तो उन्होंने भी तमाम दिक्कतों को दरकिनार कर वोट डाला. आधी आबादी भी कंधे से कंधा मिलाकर जनादेश में अपनी भूमिका निभाते दिखीं. खासकर पिंक बूथों पर इसकी निराली तस्वीर देखने को मिली.

हजारीबाग में 105 साल की बुजुर्ग महिला अपने बेटे के कंधे पर बैठ कर मतदान केंद्र पहुंची और मतदान किया. शरीर से लाचार उसमा सबरी ने पूरे देश को संदेश दिया कि मतदान कितना जरूरी है. वहीं रांची में एक जोड़ा शादी के मंडप से उठकर मतदान करने पहुंचा. पहले मतदान फिर कन्यादान के नारे को सफल करते हुए दूल्हा दुल्हन ने शादी से पहले देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई.

जोश ऐसा कि रांची के रिजवान आलम ने 2 किलोमीटर पैदल चलकर और डेढ़ घंटे लाइन में खड़े रहकर लगातार तीसरी बार पहले मतदाता होने का गौरव प्राप्त किया. बहरहाल, जो लोग वोट नहीं करने के लिए बहाने ढूंढ़ते हैं, उन लोगों के लिए ये तस्वीरें आंखें खोलने वाली हो सकती हैं.

रांची/हैदराबादः झारखंड में लोकतंत्र के महापर्व में अनेक रंग देखने को मिले. हाई प्रोफाइल राजधानी रांची, हजारीबाग और कोडरमा सहित धुर नक्सल प्रभावित खूंटी में मतदान शांतिपूर्ण रहा. इस दौरान ऐसी कई तस्वीरें दिखी, जिसने कभी रोमांचित किया तो कोई तस्वीर प्रेरणा और लोकतंत्र पर भरोसे का प्रतीक बन गई.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

मतदान यानी लोकतंत्र का महादान, किसी के लिए देश के प्रति सबसे बड़ी जिम्मेदारी, तो किसी के लिए भविष्य की खातिर अपने हक का इस्तेमाल.. कारण कई हो सकते हैं लेकिन ध्येय सिर्फ एक... और वो है.. अगले पांच सालों के लिए केंद्र की कमान किसी जिम्मेदार के हाथ सौंपना. लोकसभा चुनाव के इस महोत्सव में मतदाताओं को न तो तपती गर्मी रोक पाई और न ही नक्सलियों का खौफ. खूंटी संसदीय क्षेत्र में खरसावां से सटे घोर नक्सल प्रभावित कुचाई के बीहड़ में भी लोगों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया.

लाल आतंक से बेपरवाह ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाई और मतदान कर अपने विकास का रास्ता चुन लिया. मतदान की जिम्मेदारी दिव्यांगों को भी पोलिंग बूथों तक ले आई. ट्राईसाइकिल और व्हीलचेयर की सुविधा ने दिव्यांगों को सहारा दिया तो उन्होंने भी तमाम दिक्कतों को दरकिनार कर वोट डाला. आधी आबादी भी कंधे से कंधा मिलाकर जनादेश में अपनी भूमिका निभाते दिखीं. खासकर पिंक बूथों पर इसकी निराली तस्वीर देखने को मिली.

हजारीबाग में 105 साल की बुजुर्ग महिला अपने बेटे के कंधे पर बैठ कर मतदान केंद्र पहुंची और मतदान किया. शरीर से लाचार उसमा सबरी ने पूरे देश को संदेश दिया कि मतदान कितना जरूरी है. वहीं रांची में एक जोड़ा शादी के मंडप से उठकर मतदान करने पहुंचा. पहले मतदान फिर कन्यादान के नारे को सफल करते हुए दूल्हा दुल्हन ने शादी से पहले देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई.

जोश ऐसा कि रांची के रिजवान आलम ने 2 किलोमीटर पैदल चलकर और डेढ़ घंटे लाइन में खड़े रहकर लगातार तीसरी बार पहले मतदाता होने का गौरव प्राप्त किया. बहरहाल, जो लोग वोट नहीं करने के लिए बहाने ढूंढ़ते हैं, उन लोगों के लिए ये तस्वीरें आंखें खोलने वाली हो सकती हैं.

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good pictures of jharkhand election




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