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कहीं नहीं देखा होगा ऐसा स्कूल, यहां 'ट्रेन' के अंदर चलती है क्लास

ये एजुकेशन एक्सप्रेस बोकारो से करीब 50 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर गांव में चलती है. इसमें हफ्ते के 6दिन 350 से ज्यादा बच्चे सफर करते हैं. ज्ञान, विकास और उन्नति इस एजुकेशन एक्सप्रेस के स्टेशन हैं. वहीं, शिक्षक इस एक्सप्रेस के इंजन के तौर पर हैं. हम बात कर रहे हैं रघुनाथपुर गांव के उत्क्रमित विद्यालय की, जिसे शिक्षकों ने ट्रेन का रूप दे दिया है.

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Published : Feb 1, 2019, 5:37 PM IST

जानकारी देते प्रधानाध्यापक।

बोकारो: ये एजुकेशन एक्सप्रेस बोकारो से करीब 50 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर गांव में चलती है. इसमें हफ्ते के 6दिन 350 से ज्यादा बच्चे सफर करते हैं. ज्ञान, विकास और उन्नति इस एजुकेशन एक्सप्रेस के स्टेशन हैं. वहीं, शिक्षक इस एक्सप्रेस के इंजन के तौर पर हैं. हम बात कर रहे हैं रघुनाथपुर गांव के उत्क्रमित विद्यालय की, जिसे शिक्षकों ने ट्रेन का रूप दे दिया है.

बोकारो के दुर्गा पहाड़ी के नीचे स्थित इस रेलनुमा स्कूल में आसपास के 5 गांव के बच्चे पढ़ने आते हैं. यह बच्चे गरीब और मजदूर परिवार के हैं. इनमें अधिकांश बच्चे ऐसे हैं, जो पढ़ाई के साथ ही मेहनत मजदूरी करते हैं. तब जाकर उन्हें 2 वक्त की रोटी नसीब होती है. ऐसे में स्कूल में मिलने वाला मिड डे मील इनके लिए अमृत के समान है. यहां पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे आदिवासी हैं, जिन्होंने कभी ट्रेन नहीं देखी.

स्कूल के प्रधानाध्यापक दिनेश नायक ने बच्चों को ट्रेन दिखाने और पढ़ाई से जोड़ने का अद्भुत आइडिया निकाला है. इस स्कूल में लड़कों से ज्यादा लड़कियां पढ़ती हैं. 350 स्टूडेंट्स में 190 लड़कियां हैं. यहां लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए कराटे भी सिखाए जाते हैं. स्कूल में कराटे सीखने के बाद लड़कियां आत्मविश्वास से लबरेज होकर किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं.

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जानकारी देते प्रधानाध्यापक।
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कहते हैं नीयत नेक और इरादे बुलंद हो तो संसाधन की कमी राहों का रोड़ा नहीं बन सकती. रघुनाथपुर के इस अदभुत स्कूल की इलाके में बेहद प्रशंसा होती है. लोग इसे रेलगाड़ी वाले स्कूल से जानते हैं. अगर ऐसे पढ़ेगा, तो जरूर आगे बढ़ेगा इंडिया.

बोकारो: ये एजुकेशन एक्सप्रेस बोकारो से करीब 50 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर गांव में चलती है. इसमें हफ्ते के 6दिन 350 से ज्यादा बच्चे सफर करते हैं. ज्ञान, विकास और उन्नति इस एजुकेशन एक्सप्रेस के स्टेशन हैं. वहीं, शिक्षक इस एक्सप्रेस के इंजन के तौर पर हैं. हम बात कर रहे हैं रघुनाथपुर गांव के उत्क्रमित विद्यालय की, जिसे शिक्षकों ने ट्रेन का रूप दे दिया है.

बोकारो के दुर्गा पहाड़ी के नीचे स्थित इस रेलनुमा स्कूल में आसपास के 5 गांव के बच्चे पढ़ने आते हैं. यह बच्चे गरीब और मजदूर परिवार के हैं. इनमें अधिकांश बच्चे ऐसे हैं, जो पढ़ाई के साथ ही मेहनत मजदूरी करते हैं. तब जाकर उन्हें 2 वक्त की रोटी नसीब होती है. ऐसे में स्कूल में मिलने वाला मिड डे मील इनके लिए अमृत के समान है. यहां पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे आदिवासी हैं, जिन्होंने कभी ट्रेन नहीं देखी.

स्कूल के प्रधानाध्यापक दिनेश नायक ने बच्चों को ट्रेन दिखाने और पढ़ाई से जोड़ने का अद्भुत आइडिया निकाला है. इस स्कूल में लड़कों से ज्यादा लड़कियां पढ़ती हैं. 350 स्टूडेंट्स में 190 लड़कियां हैं. यहां लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए कराटे भी सिखाए जाते हैं. स्कूल में कराटे सीखने के बाद लड़कियां आत्मविश्वास से लबरेज होकर किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं.

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कहते हैं नीयत नेक और इरादे बुलंद हो तो संसाधन की कमी राहों का रोड़ा नहीं बन सकती. रघुनाथपुर के इस अदभुत स्कूल की इलाके में बेहद प्रशंसा होती है. लोग इसे रेलगाड़ी वाले स्कूल से जानते हैं. अगर ऐसे पढ़ेगा, तो जरूर आगे बढ़ेगा इंडिया.

Intro:यह एजुकेशन एक्सप्रेस है यह एजुकेशन एक्सप्रेस बोकारो से फ्री 50 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर गांव में चलती है और हर रोज इस एजुकेशन एक्सप्रेस में 350 से ज्यादा बच्चे सफर करते हैं इस एजुकेशन एक्सप्रेस के स्टेशन है ज्ञान विकास और उन्नति और और इस एक्सप्रेस के डब्बे हैं शिक्षक इसके इंजन है हेड मास्टर जी हम बात कर रहे हैं रघुनाथपुर गांव उत्क्रमित विद्यालय की जिसे यहां की शिक्षक ने ट्रेन का रूप दे दिया। दुर्गा पहाड़ी के नीचे वैसे इस गांव के स्कूल में आसपास के 5 गांव के बच्चे पढ़ने आते हैं। यह बच्चे गरीब और मजदूर परिवार के हैं।इनमें से अधिकांश बच्चे भी पढ़ाई के साथ साथ मेहनत मजदूरी करते हैं। दातुन बेचते हैं।लकड़ी बिनते हैं। तब जाकर इन्हें 2 जून का खाना नसीब होता है।ऐसे में स्कूल में मिलने वाला मिड डे मील इनके लिए अमृत के समान है। आपको बता दें कि यहां पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे आदिवासी हैं। और यह वह बच्चे हैं जिन्होंने कभी ट्रेन नहीं देखी है। जी हां आपको सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा कि 21वीं सदी में देश का कोई ऐसा गांव होगा जहां के बच्चों ने ट्रेन नहीं देखी होग। लेकिन यह सच है यहां के ज्यादातर बच्चों ने ट्रेन नहीं देखी है। इन्हें ट्रेन दिखाने का और पढ़ाई से जोड़ने का अद्भुत आइडिया है यहां के प्रधानाध्यापक दिनेश नायक का। जिन्होंने अपने स्कूल को एक अलग रंग दिया है। पहले तो स्कूल के दीवारों पर इन्होंने रेलगाड़ी बनवाया तो दूसरी तरफ स्कूल में शिक्षकों की सहायता से फाउंटेन भी लगवाया। बच्चों को साफ सफाई के प्रति जागरूक किया। जिसके बाद स्कूल में हर ओर साफ सफाई है। फूल की क्यारियां है। साफ-सुथरे बाथरूम है। हैंड वॉस यूनिट है। आपको देखने से यह स्कूल सरकारी स्कूल नहीं बल्कि एक प्राइवेट स्कूल जैसा दिखता है।

बाईट छात्र, प्रधानाध्यापक
इस स्कूल की जो सबसे बड़ी खासियत है वह यह है कि यहां लड़कों से ज्यादा लड़कियां पढ़ती है। यहां पढ़ने वाले 350 स्टूडेंट्स में से 190 लड़कियां हैं और यह तब है जब जब पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक मजदूर हैं। ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है। इसके बावजूद वो अपनी बच्चीयों को बेटों के समान पढ़ाते हैं। तो ये परिवर्तन आया है दिनेश नायक की वजह से जो बच्चीयों को स्कूल घर से, खेत से बुला कर लाते हैं।इनके मां बाप को शिक्षा का महत्व बताते हैं। की और बेटा बेटी में कोई अंतर नहीं है। बेटी बेटों से किसी मामले में कम नहीं है। यह समझाया जिसका परिणाम यह है स्कूल में लड़कों से ज्यादा लड़कियां है। यहां लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए कराटे भी सिखाए जाते हैं। स्कूल में कराटे सीखने के बाद लड़कियां आत्मविश्वास से भर गई है। और किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार है। इनसब के बीच स्कूल की एक बड़ी समस्या है। यहां मुख्य सड़क से स्कूल तक आने के लिए कोई रास्ता नहीं है।जिसके बाद छात्रों को खेत की मेड पर चल कर आना पड़ता है। बारिश के दिनों में तो यह समस्या काफी गंभीर हो जाती है। कई बार बच्चों का पैर फिसल जाता है।और वह खेत में गिर जाते हैं। दिनेश नायक की इस अदभुत स्कूल की प्रशंसा इलाके में खूब होती है। लोग इसे रेल गाड़ी वाला स्कूल से जानते हैं। स्कूल के बारे में स्थानीय जनप्रतिनिधि प्रखंड प्रमुख विजय गौतम कहते हैं यह एक शानदार पहल है बच्चों को पढ़ाने का। वो जल्द ही स्कूल तक रास्ता बनाने के लिए काम करेंगे
बाईट
प्रखंड प्रमुख
कहते हैं नियत नेक हो और इरादे बुलंद तो संसाधन की कमी राह का रोड़ा नहीं बन सकता है। कठिनाइयां जरूर होती है पर सफलता जरूर मिलती है।
ptc आलोक रंजन सिंह


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