गिरिडीह: झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित खुखरा की पहचान कुछ साल पहले तक लाल आतंक के गढ़ के रूप में थी. रात तो छोड़िए दिन में भी लोग यहां जाने से कतराते थे. विकास के 'वॉर' से सरकार ने इस गांव की तकदीर बदल दी है. अब लोगों की जिंदगी पटरी पर लौट आई है.
गिरिडीह के खुखरा में आन जाने के लिए चकाचक पक्की सड़के हैं. बेटियां साइकिल पर सवार होकर अपने सपनों को उड़ान दे रही हैं. चाय की दुकान पर अब गांव वालों की बैठकी लगती है. ये उस गांव की तस्वीर है, जहां कुछ साल पहले दिन के उजाले में भी घर के दरवाजे नहीं खुलते थे.
गिरिडीह जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर खुखरा गांव की हालत ऐसी ही थी. पारसनाथ पर्वत की तराई में बसे इस गांव में लाल आतंक का बोलबाला था. इंसानियत के दुश्मन नक्सली विकास की रफ्तार पर ब्रेक लगाए बैठे थे. बच्चों के भविष्य गढ़ने वाले स्कूल भवन को उड़ाकर ताला लगा दिया था. खौफ ऐसा कि जिसने भी इनके नापाक मंसूबों के खिलाफ आवाज उठाई, उसे जिंदगी गंवानी पड़ी.
14 अप्रैल 1991 को नक्सलियों से मुठभेड़ में रक्तपात हुआ. 29 अप्रैल 2006 को गांव में पुलिस पिकेट को ही नक्सलियों ने उड़ा दिया. इसके बाद 20 अप्रैल 2009 को बच्चों के लिए बने स्कूल को भी उड़ा दिया. खौफजदा गांववाले घर छोड़कर पलायन करने लगे. लेकिन कुछ गांववाले लाल आतंक के आगे हार नहीं माने. नक्सलियों से लड़ने के लिए खुखरा के लोगों ने सनलाइट सेना का गठन किया.
लाल आतंक के खात्मे के लिए पुलिस भी लगातार प्रयास कर रही थी. पांच साल पहले इस गांव में पुलिस स्टेशन बना. तब इलाके में विकास की बयार बहने लगी और नक्सलियों की कमर टूट गई. खुखरा में आए बदलाव के बाद जिले के एसपी कहते हैं कि अब गांव के लोगों के रोजगार से जोड़ने की कवायद चल रही है. पुराने दिनों को भूलकर लोग नए सपने देख रहे हैं.
जिस खुखरा की जमीन कभी खून से रक्तरंजित रहती थी. वहां के खेतों में अब फसलें लहलहा रही हैं. सड़कों पर सरपट गाड़ियां दौड़ रही हैं. गांव के लोगों के लौटने से वीरान गलियां अब गुलजार हो गई हैं.