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रघुवर राज में ट्राईबल स्टूडेंट्स की दशा, टॉयलेट में धो रहे हैं बर्तन, हथेली पर जान रख कर कर रहे हैं पढ़ाई

राजधानी के मोराहाबादी के ट्राईबल हॉस्टल का हाल बहुत बुरा है. इस हॉस्टल में कहीं खिड़की के दरवाजे टूटे हैं तो कहीं छत से रिसाव हो रहा है. वहीं, वहां रहने वाले छात्रों का कहना है कि उन्होंने हॉस्टल की दशा को लेकर कई बार गुहार लगाई गई, लेकिन अभी तक कुछ नहीं है.

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Published : Jun 26, 2019, 3:15 PM IST

ट्राईबल हॉस्टल का हाल-बेहाल

रांची: प्रदेश की सत्ताधारी बीजेपी सरकार ट्राईबल वेलफेयर के जितने भी दावे करे, लेकिन राजधानी के मोराहाबादी के ट्राईबल हॉस्टल की तस्वीर ही अलग है. पिछले 7 सालों से इस ट्राईबल हॉस्टल में ना तो सरकार के तरफ से एक कील लगाई गई है और न इमारत की रिपेयरिंग का काम किया गया है.

देखें पूरी खबर

लगभग 100 छात्रों की क्षमता वाले इस हॉस्टल में 24 से अधिक कमरे हैं, लेकिन सबकी स्थिति खस्ताहाल है. कहीं खिड़की के दरवाजे टूटे हैं तो कहीं छत से रिसाव हो रहा है. इतना ही नहीं कॉरीडोर में कई बार छत से पपड़ियां उखड़ के गिरी है, जिसमें छात्र चोटिल भी हुए हैं.

ये भी पढ़ें-ODF का ये है सच, बस स्टैंड पर शौचालय नहीं, यात्री खुले में शौच जाने को मजबूर

वैसे तो ट्राईबल हॉस्टल के इस बिल्डिंग में 16 टॉयलेट है, लेकिन उसमें से केवल 4 ही फिलहाल काम कर रहे हैं. यहां रह रहे छात्रों की तकलीफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां रहने वाले छात्र खाने का बर्तन टॉयलेट में साफ करते हैं. ग्राउंड फ्लोर के टॉयलेट की हालत यह है कि किसी भी दिन इमारत का वह हिस्सा जमींदोज हो सकता है.

वहां रहने वाले छात्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास एक बार वहां आए थे. उस हॉस्टल को स्मार्ट हॉस्टल बनाने की घोषणा कर गए, लेकिन उसके बाद ना तो वह आये और ना ही उनके कोई मंत्री आया.

वहां रहने वाले जॉनसन पथ पिंगुआ कहते हैं कि हॉस्टल की इस दशा को लेकर कई बार गुहार लगाई गई, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. वहीं, दूसरे छात्र अमन किशोर पूर्ति ने बताया कि 2011 के बाद यहां रिपेयरिंग का कोई काम तक नहीं हुआ है.

दरअसल, राज्य के अलग-अलग इलाकों में रहने वाले शेड्यूल्ड ट्राइब स्टूडेंट्स के रहने के लिए मोरहाबादी में आदिवासी छात्रावास बनाए गए हैं, जहां यूनिवर्सिटी मेन रोल स्टूडेंट्स आकर रहते हैं.

रांची: प्रदेश की सत्ताधारी बीजेपी सरकार ट्राईबल वेलफेयर के जितने भी दावे करे, लेकिन राजधानी के मोराहाबादी के ट्राईबल हॉस्टल की तस्वीर ही अलग है. पिछले 7 सालों से इस ट्राईबल हॉस्टल में ना तो सरकार के तरफ से एक कील लगाई गई है और न इमारत की रिपेयरिंग का काम किया गया है.

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लगभग 100 छात्रों की क्षमता वाले इस हॉस्टल में 24 से अधिक कमरे हैं, लेकिन सबकी स्थिति खस्ताहाल है. कहीं खिड़की के दरवाजे टूटे हैं तो कहीं छत से रिसाव हो रहा है. इतना ही नहीं कॉरीडोर में कई बार छत से पपड़ियां उखड़ के गिरी है, जिसमें छात्र चोटिल भी हुए हैं.

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वैसे तो ट्राईबल हॉस्टल के इस बिल्डिंग में 16 टॉयलेट है, लेकिन उसमें से केवल 4 ही फिलहाल काम कर रहे हैं. यहां रह रहे छात्रों की तकलीफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां रहने वाले छात्र खाने का बर्तन टॉयलेट में साफ करते हैं. ग्राउंड फ्लोर के टॉयलेट की हालत यह है कि किसी भी दिन इमारत का वह हिस्सा जमींदोज हो सकता है.

वहां रहने वाले छात्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास एक बार वहां आए थे. उस हॉस्टल को स्मार्ट हॉस्टल बनाने की घोषणा कर गए, लेकिन उसके बाद ना तो वह आये और ना ही उनके कोई मंत्री आया.

वहां रहने वाले जॉनसन पथ पिंगुआ कहते हैं कि हॉस्टल की इस दशा को लेकर कई बार गुहार लगाई गई, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. वहीं, दूसरे छात्र अमन किशोर पूर्ति ने बताया कि 2011 के बाद यहां रिपेयरिंग का कोई काम तक नहीं हुआ है.

दरअसल, राज्य के अलग-अलग इलाकों में रहने वाले शेड्यूल्ड ट्राइब स्टूडेंट्स के रहने के लिए मोरहाबादी में आदिवासी छात्रावास बनाए गए हैं, जहां यूनिवर्सिटी मेन रोल स्टूडेंट्स आकर रहते हैं.

Intro:रांची। प्रदेश की सत्ताधारी बीजेपी सरकार ट्राईबल वेलफेयर के जितने भी दावे करें लेकिन हकीकत इससे की इतर है। इस की असली तस्वीर देखनी हो तो राजधानी के मोराहाबादी के ट्राईबल हॉस्टल आना होगा। पिछले 7 सालों से इस ट्राईबल हॉस्टल में ना तो सरकार के तरफ से एक कील लगाई गई है और न इमारत की रिपेयरिंग का काम किया गया है। लगभग 100 छात्रों की क्षमता वाले इस हॉस्टल में 24 से अधिक कमरे हैं, लेकिन सबकी स्थिति खस्ताहाल है। कहीं खिड़की के दरवाजे टूटे हैं तो कहीं छत से रिसाव हो रहा है। इतना ही नहीं कॉरीडोर में कई बार छत से पपड़ियां उखड़ के गिरी है जिसमें छात्र चोटिल भी हुए हैं।


Body:वैसे तो ट्राईबल हॉस्टल के इस बिल्डिंग में 16 टॉयलेट है।लेकिन उसमें से केवल 4 ही फिलहाल काम कर रहे हैं। यहां रह रहे छात्रों की तकलीफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां रहने वाले छात्र खाने का बर्तन टॉयलेट में साफ करते हैं। ग्राउंड फ्लोर के टॉयलेट की हालत यह है कि किसी भी दिन इमारत का वह हिस्सा जमींदोज हो सकता है।

वहां रहने वाले छात्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास एक बार वहां आए थे। उस हॉस्टल को स्मार्ट हॉस्टल बनाने की घोषणा कर गए लेकिन उसके बाद ना तो वह आये और ना ही उनके कोई मंत्री आया।
वहां रहने वाले जॉनसन पथ पिंगुआ कहते हैं कि हॉस्टल की इस दशा को लेकर कई बार गुहार लगाई गई लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।


Conclusion:वही दूसरे छात्र अमन किशोर पूर्ति ने बताया कि 2011 के बाद यहां रिपेयरिंग का कोई काम तक नहीं हुआ है।
दरअसल राज्य के अलग-अलग इलाकों में रहने वाले शेड्यूल्ड ट्राइब स्टूडेंट्स के रहने के लिए मोरहाबादी में आदिवासी छात्रावास बनाए गए हैं जहां यूनिवर्सिटी मेन रोल स्टूडेंट्स आकर रहते हैं।
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