रांची: प्रदेश की सत्ताधारी बीजेपी सरकार ट्राईबल वेलफेयर के जितने भी दावे करे, लेकिन राजधानी के मोराहाबादी के ट्राईबल हॉस्टल की तस्वीर ही अलग है. पिछले 7 सालों से इस ट्राईबल हॉस्टल में ना तो सरकार के तरफ से एक कील लगाई गई है और न इमारत की रिपेयरिंग का काम किया गया है.
लगभग 100 छात्रों की क्षमता वाले इस हॉस्टल में 24 से अधिक कमरे हैं, लेकिन सबकी स्थिति खस्ताहाल है. कहीं खिड़की के दरवाजे टूटे हैं तो कहीं छत से रिसाव हो रहा है. इतना ही नहीं कॉरीडोर में कई बार छत से पपड़ियां उखड़ के गिरी है, जिसमें छात्र चोटिल भी हुए हैं.
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वैसे तो ट्राईबल हॉस्टल के इस बिल्डिंग में 16 टॉयलेट है, लेकिन उसमें से केवल 4 ही फिलहाल काम कर रहे हैं. यहां रह रहे छात्रों की तकलीफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां रहने वाले छात्र खाने का बर्तन टॉयलेट में साफ करते हैं. ग्राउंड फ्लोर के टॉयलेट की हालत यह है कि किसी भी दिन इमारत का वह हिस्सा जमींदोज हो सकता है.
वहां रहने वाले छात्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास एक बार वहां आए थे. उस हॉस्टल को स्मार्ट हॉस्टल बनाने की घोषणा कर गए, लेकिन उसके बाद ना तो वह आये और ना ही उनके कोई मंत्री आया.
वहां रहने वाले जॉनसन पथ पिंगुआ कहते हैं कि हॉस्टल की इस दशा को लेकर कई बार गुहार लगाई गई, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. वहीं, दूसरे छात्र अमन किशोर पूर्ति ने बताया कि 2011 के बाद यहां रिपेयरिंग का कोई काम तक नहीं हुआ है.
दरअसल, राज्य के अलग-अलग इलाकों में रहने वाले शेड्यूल्ड ट्राइब स्टूडेंट्स के रहने के लिए मोरहाबादी में आदिवासी छात्रावास बनाए गए हैं, जहां यूनिवर्सिटी मेन रोल स्टूडेंट्स आकर रहते हैं.