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विस्थापन के दर्द को आंदोलन नहीं स्वरोजगार से जोड़ा, अब दास्ताने बनाकर आत्मनिर्भर हो रहीं महिलाएं

बोकारो में महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर हो (Women becoming self sufficient) रही हैं. ये महिलाएं दास्तानों का निर्माण कर अच्छी आमदनी कर स्वावलंबी (Women making gloves) हो रही हैं. ये महिलाएं 4 से 5 हजार रुपया प्रति महीना कमा रही हैं. ये कहानी है विस्थापित गांव महुआर की महिलाओं की.

Women becoming self sufficient by making gloves in Bokaro
बोकारो
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Published : Jul 19, 2022, 12:02 PM IST

Updated : Jul 19, 2022, 1:37 PM IST

बोकारोः जिला में स्वरोजगार से जुड़कर महिलाएं खुद को स्थापित कर रही हैं. दस्ताना बनाकर (Women making gloves) ये महिलाएं सफलता की नई दास्तां लिख रही हैं. इनके बनाए ग्लब्स की मांग ना सिर्फ बोकारो बल्कि आसपास के राज्यों में भी काफी है. जिससे ये महिलाएं अच्छी आमदनी कर रही हैं.

इसे भी पढ़ें- Mushroom Cultivation in Hazaribag: स्वरोजगार से महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

रोजगार के लिए विस्थापितों को आंदोलन करते अक्सर देखा जाता है. लेकिन एक विस्थापित समूह ऐसा भी है जो महिलाओं को रोजगार (Women becoming self sufficient) की राह पर ले जा रहा है. इसके साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना रहा है. बोकारो के सेक्टर 9 के पास बसा विस्थापित गांव महुआर की एमएससी पास सरोज महतो ने आसपास के कई विस्थापित गांव की सैकड़ों महिलाओं को स्वावलंबन से जोड़ा है. सरोज ने जीन्स के कपड़े से 2016 में दस्ताना बनाने का काम शुरू किया. आज उनके साथ कई महिलाएं शामिल हो गयी हैं.

देखें पूरी खबर

शुरुआत में कुछ महिलाएं उनसे जुड़ीं, वर्तमान समय में प्रतिदिन 12,000 से अधिक दस्ताना बनाया जा रहा है. महिलाएं 7 सेंटरों में ये काम चल रहा है. यहां के दस्ताने ओड़िशा, रामगढ़, बिहार, दुर्गापुर के अलावा बोकारो इस्पात संयंत्र में भेजा जा रहा है. स्वरोजगार से जुड़कर महिलाएं 4 से 5000 रुपये प्रति महीना कमा रही हैं. इन महिलाओं का कहना है कि अब हम अपने पति पर निर्भर नहीं रह गयी हैं. अपनी जरूरतों को अब वो खुद पूरा करने में सक्षम है और घर का खर्च चलाने में मदद मिलती है. वहीं सरोज महतो का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वरोजगार की बात कही थी जो आज की जरूरत बन गई है.

बोकारोः जिला में स्वरोजगार से जुड़कर महिलाएं खुद को स्थापित कर रही हैं. दस्ताना बनाकर (Women making gloves) ये महिलाएं सफलता की नई दास्तां लिख रही हैं. इनके बनाए ग्लब्स की मांग ना सिर्फ बोकारो बल्कि आसपास के राज्यों में भी काफी है. जिससे ये महिलाएं अच्छी आमदनी कर रही हैं.

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रोजगार के लिए विस्थापितों को आंदोलन करते अक्सर देखा जाता है. लेकिन एक विस्थापित समूह ऐसा भी है जो महिलाओं को रोजगार (Women becoming self sufficient) की राह पर ले जा रहा है. इसके साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना रहा है. बोकारो के सेक्टर 9 के पास बसा विस्थापित गांव महुआर की एमएससी पास सरोज महतो ने आसपास के कई विस्थापित गांव की सैकड़ों महिलाओं को स्वावलंबन से जोड़ा है. सरोज ने जीन्स के कपड़े से 2016 में दस्ताना बनाने का काम शुरू किया. आज उनके साथ कई महिलाएं शामिल हो गयी हैं.

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शुरुआत में कुछ महिलाएं उनसे जुड़ीं, वर्तमान समय में प्रतिदिन 12,000 से अधिक दस्ताना बनाया जा रहा है. महिलाएं 7 सेंटरों में ये काम चल रहा है. यहां के दस्ताने ओड़िशा, रामगढ़, बिहार, दुर्गापुर के अलावा बोकारो इस्पात संयंत्र में भेजा जा रहा है. स्वरोजगार से जुड़कर महिलाएं 4 से 5000 रुपये प्रति महीना कमा रही हैं. इन महिलाओं का कहना है कि अब हम अपने पति पर निर्भर नहीं रह गयी हैं. अपनी जरूरतों को अब वो खुद पूरा करने में सक्षम है और घर का खर्च चलाने में मदद मिलती है. वहीं सरोज महतो का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वरोजगार की बात कही थी जो आज की जरूरत बन गई है.

Last Updated : Jul 19, 2022, 1:37 PM IST
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