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संथाल सरना धर्म महासम्मेलनः लुगु बाबा की पूजा में शामिल हुए सीएम के ससुर और राष्ट्रपति के दामाद

बोकारो में लुगु बुरु पहाड़, संथाल समाज का तीर्थ स्थल है. हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संथाल सरना धर्म महासम्मेलन (Devotees at Sarna Dharma Mahasammelan in Bokaro) का आयोजन किया जाता है. इस मौके पर देश-विदेश संथाली समाज के लोग लुगु बाबा की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेने आते हैं. इस महासम्मेलन के पहले दिन सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दामाद, सीएम हेमंत सोरेन के ससुर और असम के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पृथ्वी मांझी यहां पहुंचे.

Devotees at Sarna Dharma Mahasammelan on Lugu Buru Pahar in Bokaro
बोकारो
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Published : Nov 8, 2022, 10:13 AM IST

बोकारोः संतालियों की संस्कृति व परंपरा का उद्गम स्थल लुगु बुरु है. लुगु बाबा की अध्यक्षता में संताली समाज के रीति-रिवाज बने. लुगु बुरु बोकारो जिला के ललपनिया में है. यहां लुगु बुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ संतालियों की धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी है. हर साल यहां कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर दो दिवसीय सरना धर्म महासम्मेलन का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से भक्त आते (Devotees at Sarna Dharma Mahasammelan in Bokaro) हैं.

इसे भी पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय संताल सरना धर्म महासम्मेलनः देश दुनिया से बोकारो के लुगूबुरू पहुंचेंगे श्रद्धालु

ललपनिया के लुगू बुरु घंटाबड़ी धोरेमगढ़ में आदिवासियों का दो दिवसीय धर्म सम्मेलन चल रहा (Sarna Dharma Mahasammelan on Lugu Buru Pahar) है. जहां लाखों की संख्या में देश विदेश से आदिवासी समाज के लोग लुगु बाबा के दर्शन करने पहुंच रहे हैं. इसमें कई दिग्गज और वीवीआईपी भी शामिल हैं. इस धर्म सम्मेलन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ससुर रिटायर्ड कैप्टन अमपुरण मांझी भी शिरकत करने ओड़िशा से यहां पहुंचे. इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों और परिजनों से पारंपरिक तरीके से गले मिले. इनका स्वागत करने के लिए गोमिया के पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद भी मौजूद रहे. मुख्यमंत्री के ससुर ने बताया कि 2006 में उन्होंने अपनी लड़की की शादी हेमंत सोरेन से की थी. 2007 से यहां धर्म सम्मेलन में भी आ रहे हैं.

देखें वीडियो


इस धर्म सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दामाद गणेश चंद्र हेंब्रम भी शिरकत करने पहुंचे. सोमवार देर रात वो धर्म स्थल पहुंचकर यहां बने टेंट सिटी में लोगों से मिलकर उनका हालचाल जाना. उन्होंने पहले से बेहतर व्यवस्था होने पर खुशी जताई. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वो यहां प्रत्येक वर्ष आते हैं, यहां आने से उनके समाज के एक दूसरे से मिलने का मौका मिलता है. उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए एक पवित्र धर्मस्थल है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति इस बार या नहीं आ सकीं, लेकिन यहां से वो उनके लिए आशीर्वाद लेकर जा रहे हैं.

असम के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पृथ्वी मांझी भी धर्मसम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए लुगु बुरु पहाड़ पहुंचे. पृथ्वी मांझी बतौर विशिष्ट अतिथि के रूप में 22वें धर्म सम्मेलन में शिरकत करने के लिए असम से यहां आए हुए हैं. उन्होंने बताया कि यह आदिवासियों का प्राचीन धर्म स्थल है, 4000 वर्ष से इसकी स्थापना की गई थी और ऐसी मान्यता है कि देवी देवता भी उस वक्त यहां आए थे. इस स्थल पर लुगू बाबा ने तपस्या की और संथाली समाज के लिए उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक के नियम कानून बनाए. उन्होंने कहा कि उनके बनाई हुई परंपरा को आज भी आदिवासी समाज मानते और इस पर अमल करते आ रहे हैं.

धर्म महासम्मेलन की शुरुआतः हजारों वर्ष से लुगु बुरु में संथालियों की गहरी आस्था है. लेकिन यहां धर्म महासम्मेलन की शुरुआत वर्ष 2001 से हुई थी. इसके लिए धर्म समिति की अगुवाई में उनके साथियों ने देश-विदेश के संथालियों को एकसूत्र में बांधने को लेकर खूब प्रचार किया. जिसके प्रतिफल में आज यह रहा कि झारखंड का राजकीय महोत्सव का दर्जा प्राप्त है. हर साल 10 लाख से अधिक श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दो दिवसीय सम्मेलन में यहां मत्था टेकने आते हैं. लुगु बुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में हर साल कार्तिक पूर्णिमा (सोहराय कुनामी) पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संथाल सरना धर्म महासम्मेलन (International Santhal Sarna Dharma Mahasammelan) आयोजित किया जाता है. जिसमें देश के विभिन्न प्रदेशों झारखंड, बिहार, बंगाल, ओड़िशा, असम, मणिपुर, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, भूटान व अन्य देशों से यहां श्रद्धालु आते हैं. महासम्मेलन में शामिल होकर अपने, धर्म, भाषा, लिपि व संस्कृति को उसके मूल रूप में संजोये रखने, प्रकृति की रक्षा पर चर्चा करते हैं, उसका संकल्प लेते हैं.


संथाली संविधान की रचनाः ऐसी मान्यता है कि हजारों-लाखों वर्ष पूर्व इसी स्थान पर लुगु बाबा की अध्यक्षता में संतालियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के रीति-रिवाज यानी संथाली संविधान की रचना हुई. इस वजह से लुगुबुरु घांटाबाड़ी देश-विदेश में निवास कर रहे हर संथाली के लिए आस्था का केंद्र है. ऐसा माना जाता है कि लाखों वर्ष पूर्व दरबार चट्टानी में लुगु बुरु की अध्यक्षता में संथालियों की 12 साल तक बैठक हुई थी. संथाली लोकगीत में गेलबार सिइंया, गेलबार इंदा यानी 12 दिन, 12 रात का भी जिक्र आता है. इतने लंबे समय तक हुई बैठक में संथालियों ने इसी स्थान पर फसल उगायी और धान कूटने के लिए चट्टानों का प्रयोग किया. इसके चिह्न आज भी आधा दर्जन उखल (उखुड़ कांडी) के स्वरूप में यहां मौजूद हैं. इस दरबार चट्टानी स्थित पुनाय थान (मंदिर) में सात देवी-देवताओं की पूजा होती है. जिसमें सबसे पहले मरांग बुरु और फिर लुगु बुरु, लुगु आयो, घांटाबाड़ी गो बाबा, कुड़ीकीन बुरु, कपसा बाबा, बीरा गोसाईं की पूजा की जाती है.

संस्कृति को मूल रूप में संजोए रखने पर चर्चाः लुगु बुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में कार्तिक पूर्णिमा की रात में संथाली समाज के लोग अपने धर्म, भाषा व संस्कृति को मूल रूप में संजोए रखने पर चर्चा करते हैं. विभिन्न परगनाओं से आए धर्मगुरु संथालियों को बताते हैं कि वो प्रकृति के उपासक हैं, करोड़ों वर्षों से प्रकृति पर ही उनका संविधान आधारित है. प्रकृति व संथाली एक-दूसरे के पूरक होते हैं. प्रकृति के बीच ही उनका जन्म हुआ, भाषा बनी और संथाली धर्म ही प्रकृति पर आधारित है. ऐसे में अपने मूल निवास स्थान प्रकृति की सुरक्षा के प्रति सदैव सजग रहना चाहिए.

बोकारोः संतालियों की संस्कृति व परंपरा का उद्गम स्थल लुगु बुरु है. लुगु बाबा की अध्यक्षता में संताली समाज के रीति-रिवाज बने. लुगु बुरु बोकारो जिला के ललपनिया में है. यहां लुगु बुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ संतालियों की धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी है. हर साल यहां कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर दो दिवसीय सरना धर्म महासम्मेलन का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से भक्त आते (Devotees at Sarna Dharma Mahasammelan in Bokaro) हैं.

इसे भी पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय संताल सरना धर्म महासम्मेलनः देश दुनिया से बोकारो के लुगूबुरू पहुंचेंगे श्रद्धालु

ललपनिया के लुगू बुरु घंटाबड़ी धोरेमगढ़ में आदिवासियों का दो दिवसीय धर्म सम्मेलन चल रहा (Sarna Dharma Mahasammelan on Lugu Buru Pahar) है. जहां लाखों की संख्या में देश विदेश से आदिवासी समाज के लोग लुगु बाबा के दर्शन करने पहुंच रहे हैं. इसमें कई दिग्गज और वीवीआईपी भी शामिल हैं. इस धर्म सम्मेलन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ससुर रिटायर्ड कैप्टन अमपुरण मांझी भी शिरकत करने ओड़िशा से यहां पहुंचे. इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों और परिजनों से पारंपरिक तरीके से गले मिले. इनका स्वागत करने के लिए गोमिया के पूर्व विधायक योगेंद्र प्रसाद भी मौजूद रहे. मुख्यमंत्री के ससुर ने बताया कि 2006 में उन्होंने अपनी लड़की की शादी हेमंत सोरेन से की थी. 2007 से यहां धर्म सम्मेलन में भी आ रहे हैं.

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इस धर्म सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दामाद गणेश चंद्र हेंब्रम भी शिरकत करने पहुंचे. सोमवार देर रात वो धर्म स्थल पहुंचकर यहां बने टेंट सिटी में लोगों से मिलकर उनका हालचाल जाना. उन्होंने पहले से बेहतर व्यवस्था होने पर खुशी जताई. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वो यहां प्रत्येक वर्ष आते हैं, यहां आने से उनके समाज के एक दूसरे से मिलने का मौका मिलता है. उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए एक पवित्र धर्मस्थल है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति इस बार या नहीं आ सकीं, लेकिन यहां से वो उनके लिए आशीर्वाद लेकर जा रहे हैं.

असम के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पृथ्वी मांझी भी धर्मसम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए लुगु बुरु पहाड़ पहुंचे. पृथ्वी मांझी बतौर विशिष्ट अतिथि के रूप में 22वें धर्म सम्मेलन में शिरकत करने के लिए असम से यहां आए हुए हैं. उन्होंने बताया कि यह आदिवासियों का प्राचीन धर्म स्थल है, 4000 वर्ष से इसकी स्थापना की गई थी और ऐसी मान्यता है कि देवी देवता भी उस वक्त यहां आए थे. इस स्थल पर लुगू बाबा ने तपस्या की और संथाली समाज के लिए उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक के नियम कानून बनाए. उन्होंने कहा कि उनके बनाई हुई परंपरा को आज भी आदिवासी समाज मानते और इस पर अमल करते आ रहे हैं.

धर्म महासम्मेलन की शुरुआतः हजारों वर्ष से लुगु बुरु में संथालियों की गहरी आस्था है. लेकिन यहां धर्म महासम्मेलन की शुरुआत वर्ष 2001 से हुई थी. इसके लिए धर्म समिति की अगुवाई में उनके साथियों ने देश-विदेश के संथालियों को एकसूत्र में बांधने को लेकर खूब प्रचार किया. जिसके प्रतिफल में आज यह रहा कि झारखंड का राजकीय महोत्सव का दर्जा प्राप्त है. हर साल 10 लाख से अधिक श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दो दिवसीय सम्मेलन में यहां मत्था टेकने आते हैं. लुगु बुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में हर साल कार्तिक पूर्णिमा (सोहराय कुनामी) पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संथाल सरना धर्म महासम्मेलन (International Santhal Sarna Dharma Mahasammelan) आयोजित किया जाता है. जिसमें देश के विभिन्न प्रदेशों झारखंड, बिहार, बंगाल, ओड़िशा, असम, मणिपुर, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, भूटान व अन्य देशों से यहां श्रद्धालु आते हैं. महासम्मेलन में शामिल होकर अपने, धर्म, भाषा, लिपि व संस्कृति को उसके मूल रूप में संजोये रखने, प्रकृति की रक्षा पर चर्चा करते हैं, उसका संकल्प लेते हैं.


संथाली संविधान की रचनाः ऐसी मान्यता है कि हजारों-लाखों वर्ष पूर्व इसी स्थान पर लुगु बाबा की अध्यक्षता में संतालियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के रीति-रिवाज यानी संथाली संविधान की रचना हुई. इस वजह से लुगुबुरु घांटाबाड़ी देश-विदेश में निवास कर रहे हर संथाली के लिए आस्था का केंद्र है. ऐसा माना जाता है कि लाखों वर्ष पूर्व दरबार चट्टानी में लुगु बुरु की अध्यक्षता में संथालियों की 12 साल तक बैठक हुई थी. संथाली लोकगीत में गेलबार सिइंया, गेलबार इंदा यानी 12 दिन, 12 रात का भी जिक्र आता है. इतने लंबे समय तक हुई बैठक में संथालियों ने इसी स्थान पर फसल उगायी और धान कूटने के लिए चट्टानों का प्रयोग किया. इसके चिह्न आज भी आधा दर्जन उखल (उखुड़ कांडी) के स्वरूप में यहां मौजूद हैं. इस दरबार चट्टानी स्थित पुनाय थान (मंदिर) में सात देवी-देवताओं की पूजा होती है. जिसमें सबसे पहले मरांग बुरु और फिर लुगु बुरु, लुगु आयो, घांटाबाड़ी गो बाबा, कुड़ीकीन बुरु, कपसा बाबा, बीरा गोसाईं की पूजा की जाती है.

संस्कृति को मूल रूप में संजोए रखने पर चर्चाः लुगु बुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में कार्तिक पूर्णिमा की रात में संथाली समाज के लोग अपने धर्म, भाषा व संस्कृति को मूल रूप में संजोए रखने पर चर्चा करते हैं. विभिन्न परगनाओं से आए धर्मगुरु संथालियों को बताते हैं कि वो प्रकृति के उपासक हैं, करोड़ों वर्षों से प्रकृति पर ही उनका संविधान आधारित है. प्रकृति व संथाली एक-दूसरे के पूरक होते हैं. प्रकृति के बीच ही उनका जन्म हुआ, भाषा बनी और संथाली धर्म ही प्रकृति पर आधारित है. ऐसे में अपने मूल निवास स्थान प्रकृति की सुरक्षा के प्रति सदैव सजग रहना चाहिए.

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