बोकारोः राज्य में महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंकने वाले जननायक और वर्तमान में जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन इन दिनों कोरोना संक्रमित हैं. उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. उनको बेहतर इलाज के लिए गुरुग्राम भेजा गया है.
गुरूजी के दीर्घायु की कामना
शिबू सोरेन की स्वास्थ्य की जानकारी जब बोकारो जरीडीह प्रखंड के चिलगड्डा गांव के पानी टोला निवासी रामा मांझी को मिली तो वो उनसे मिलने और उनका हाल जानने के लिए व्याकुल हो गए. उनसे बात की जाने लगी तो उनके आंसू मानो रूकने का ही नाम नहीं ले रहे हैं. राम मांझी ने कहा कि टीवी से उनके बीमार होने की सूचना मिली है. रामा मांझी कहते हैं कि उनके पास ना तो कोई साधन है और ना कोई ऐसी व्यवस्था जिससे वो शिबू सोरेन के पास जाकर उनका हाल जान पाएं. वहीं, रामा मांझी की पत्नी ने भी शिबू सोरेन के दीर्घायु होने की कामना की और कहा कि 'शिबू सोरेन ठीक रहेंगे तो हम लोगों के बाल बच्चों को वह देखेंगे नहीं तो हम लोगों को देखने वाला भी कोई नहीं होगा'. एक अन्य साथी ने चिलगड्डा गांव के टोला उबराडीह के हृदय मांझी ने बताया कि शिबू सोरेन से वे 5 साल छोटे हैं. लेकिन वह उनसे मिलना चाहते हैं, पैसे की कमी और संसाधन के अभाव में उनसे मिलने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने कहा कि 'हम हेमंत सोरेन से मांग करते हैं कि हम लोगों को उनसे एक बार जरूर मिला दें और हम चाहते हैं कि वह दीर्घायु हो ताकि इस राज्य में उनका आशीर्वाद सदा बने रहे.'
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पूराने दिनों की बात से छलका दर्द
राम मांझी कहते हैं कि उन्होंने शिबू सोरेन के साथ 41 वर्षों तक साथ रहे और 15 वर्षों तक झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में उनका सहयोग करते रहे. रामा मांझी कहते हैं कि 'हमको जमीन के रूप में पट्टा मिला था. जिस जमीन को कब्जा करने दबंग और महाजन लोग नहीं दे रहे थे. इसी दौरान शिबू सोरेन के साथ मिलकर डुगडुगी बजाते हुए जमीन पर कब्जा किया, बाद में महाजनों ने घर में आग भी लगा दी. हम लोगों ने शिबू सोरेन के साथ मिलकर झारखंड अलग राज्य आंदोलन के लिए जंगलों में घूम-घूमकर आंदोलन किया और इसी का नतीजा है कि झारखंड राज्य अलग हो गया.' उन्होंने कहा कि 'हम लोगों का घर जब महाजनों ने जला दिया था तो शिबू सोरेन ने हम लोगों का घर बनवाया, पैसा और अनाज दिया. यही वजह है कि हम लोग इस गांव में टिक पाए थे.' शिबू सोरेन के आंदोलन के दिनों के एक अन्य साथी ने चिलगड्डा गांव के टोला उबराडीह के हृदय मांझी ने बताया कि शिबू सोरेन से वो 5 साल छोटे हैं. उन्होंने कहा कि 'महाजनी प्रथा के खिलाफ इस लड़ाई की अगुवाई शिबू सोरेन ने की. उस लड़ाई में हमने उनके साथ कदम से कदम मिलाकर पूरे राज्य में घूम-घूमकर लोगों को जगाने का काम किया था.' ह्रदय मांझी कहते हैं कि 'शिबू सोरेन को इस आंदोलन के समय अपनों पर भी विश्वास नहीं था. जब कभी हम लोग आंदोलन के दौरान किसी गांव में रात बिताते थे तो जब सुबह नींद खुलती थी तो उन्हें हम लोग पेड़ के ऊपर सोता हुआ पाते थे.' उस दौरान शिबू सोरेन कहते थे कि हमको अपने लोग ही मार देंगे, इस कारण वे इस तरह अपनी सुरक्षा का ख्याल रखते थे. उन्होंने कहा कि उनके साथ में टुंडी के उन जंगलों में भी घूमने का काम किया, जहां महाजनों का आतंक था और उस आतंक को इस लड़ाई से भगाने का काम हम लोगों ने किया था.