बोकारो: रिमांड और जमानत न्याय शास्त्र के प्रमुख मुद्दे पर बोकारो स्टील के एचआरडी सेंटर के सभागार में क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. जिसका उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा के अलावा हाई कोर्ट के अन्य जजों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. न्यायिक अकादमी झारखंड के सहयोग से बोकारो जजशिप और जिला प्रशासन के ओर से इस क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था. सम्मेलन में धनबाद, गिरिडीह और बोकारो के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, न्यायिक पदाधिकारी, मजिस्ट्रेट, सीआईडी के डीजी अनुराग गुप्ता, बोकारो के एसपी कुलदीप चौधरी आदि मौजूद थे.
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पुलिस और मजिस्ट्रेट करें सुरक्षा उपायों का पालनः इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी के तरीके पर लगातार आदेश जारी किया है. बाद के निर्णयों में इन सुरक्षा उपायों का अनुपालन सुनिश्चित करने में मजिस्ट्रेट के कर्तव्य का उल्लेख किया गया है. बार-बार सुरक्षा उपाय निर्धारित किए गए हैं. जिनका पुलिस और मजिस्ट्रेटों को पालन करना चाहिए. क्योंकि यह सुरक्षा न केवल स्वतंत्रता का सार है, बल्कि गिरफ्तारी के कारण होने वाले अपमान और कलंक को रोकने के लिए भी आवश्यक है. इस प्रकार गिरफ्तारी की कठोर शक्ति का सहारा लेने से पहले पुलिस को अत्यधिक सावधानी बरतनी होगी. धारा 437 के तहत मजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार है कि सात साल से कम की अवधि की सजा में वह जमानत दे सकता है. भले ही आरोपी ने इसके लिए आवेदन किया है या नहीं. उन्होंने कहा कि आपको तथ्यों और नियमों के अनुसार आरोपियों को जमानत देने का अधिकार है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आपकी प्रोटेक्शन करता है. जमानत तथ्यों पर आधारित और नियम संगत होने चाहिए.
मजिस्ट्रेट धार 41 को ध्यान में रख कर निर्णय लेंः वहीं इस मौके पर झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय मिश्रा ने कहा कि यदि पुलिस अधिकारी द्वारा की गई गिरफ्तारी संहिता की धारा 41 की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है, तो मजिस्ट्रेट उसकी आगे की हिरासत को अधिकृत नहीं करने और आरोपी को रिहा करने के लिए बाध्य है. दूसरे शब्दों में जब किसी आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है, तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी के लिए तथ्य, कारण और उसके निष्कर्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है. साथ ही मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी के लिए पूर्ववर्ती शर्तों से संतुष्ट होना पड़ता है. धारा 41 के तहत संतुष्ट होने पर ही किसी आरोपी की हिरासत को अधिकृत किया जा सकता है.
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धारा 41 की शर्तें पूरी नहीं होने पर आरोपी को रिहा करें मजिस्ट्रेटः जब किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को पहली बार मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि धारा 41 की पूर्व शर्तें यदि पूरी नहीं होती हैं तो आरोपी को रिहा करना. इसके अलावा, मजिस्ट्रेट को स्वतंत्र रूप से कारकों का आकलन करना होता है, न कि पुलिस अधिकारी के दावों पर भरोसा करना होता है. इसी तरह, एक जांच अधिकारी का दावा है कि 41ए नोटिस का अनुपालन नहीं किया गया है (सात साल या उससे कम की सजा वाले मामले में) मजिस्ट्रेट के लिए इसे सुसमाचार के रूप में स्वीकार करने के लिए पर्याप्त नहीं है. उसे गिरफ्तारी और रिमांड की आवश्यकता का स्वतंत्र रूप से आकलन करना होगा. उन्होंने कहा कि बहुत सारे ऐसे केस में निचली अदालतों से जमानत नहीं मिलने पर लोग हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं. ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इसलिए अदालतों को अपने अधिकार तथ्यों और नियम कानून के अनुसार जमानत देने का अधिकार है और उन्हें जमानत देनी चाहिए.