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हेमंत सरकार के 100 दिन, भूखल की मौत ने छोड़े कई सवाल

झारखंड में महागठबंधन की सरकार ने सौ दिन पूरे कर लिए. इस दौरान कई अच्छी योजनाओं की भी शुरूआत हुई तो वहीं कोरोना वायरस पर सरकार का एक्शन भी अच्छा रहा, लेकिन कुछ घटनाएं हेमंत सरकार पर दाग लगा गई. इसमें बोकारो में भूखल घासी की भूख से मौत ने सरकार और प्रशासन पर कई सवाल खड़े किए.

Hunger died in Bokaro during the tenure of Hemant goverment
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Published : Apr 7, 2020, 4:26 PM IST

बोकारो: हेमंत सरकार अपने 100 दिन पूरे कर रही है, जाहिर है सरकार अपनी उपलब्धियां भी गिनाएगी. 100 दिन के अल्पकाल में भी जरूर कुछ अच्छे काम हुए होंगे. लेकिन भूखल की मौत एक बड़ा सवाल जरूर है. जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर है कसमार प्रखंड के सिंहपुर पंचायत का करमा गांव, जहां का भूखल घासी निवासी था, लेकिन 70 साल बाद भी सरकार और आम लोगों के बीच की ये 50 किलोमीटर की दूरी पट नहीं पाई.

देखिए पूरी खबर

गांव वाले बताते हैं कभी भूखल भी आम लोगों की तरह था. बेंगलुरु में मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था, लेकिन अपने मां की देहांत के बाद वह घर आया था. मां की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि पिता भी 3 दिनों के अंदर चल बसे. मां-बाप के श्राद्ध कर्मकांड में वह इतना कमजोर हो गया कि उसे कई बीमारियों ने घेर लिया, जिसके बाद वह दोबारा मेहनत मजदूरी करने के लायक नहीं रहा.

जून 2019 में भूखल ने राशन कार्ड के लिए आवेदन किया था, लेकिन सरकारी सिस्टम ने उसे एक अदद राशन कार्ड भी मुहैया नहीं कराया. लगातार बीमार रहने, भूखे रहने की वजह से वह इस दुनिया से विदा हो गया. भूखल की पत्नी रेखा घासी बताती है कि उसकी मौत से 4 दिन पहले तक घर में चूल्हा नहीं जला था.

ये भी पढ़ें: गिरिडीह: कोरोना आपदा के बीच रामराज्य पूजनोत्सव प्रारंभ, सोशल डिस्टेंसिंग का होगा पालन

अब मौत के बाद प्रशासन जागी है. समाज भी साथ है. 20 हजार नकद, 50 किलो चावल से दिन गुजर रहे हैं. राशन कार्ड बन गया है. जल्द ही पैंशन भी शुरू हो जाएगा. भूखल की पत्नी बच्चों के लिए रोजगार मांग रही है. शायद वो भी मिल जाए, लेकिन ये सब एक व्यक्ति की जान की कीमत पर. सौ दिन की सरकार सोचिएगा जरूर.

बोकारो: हेमंत सरकार अपने 100 दिन पूरे कर रही है, जाहिर है सरकार अपनी उपलब्धियां भी गिनाएगी. 100 दिन के अल्पकाल में भी जरूर कुछ अच्छे काम हुए होंगे. लेकिन भूखल की मौत एक बड़ा सवाल जरूर है. जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर है कसमार प्रखंड के सिंहपुर पंचायत का करमा गांव, जहां का भूखल घासी निवासी था, लेकिन 70 साल बाद भी सरकार और आम लोगों के बीच की ये 50 किलोमीटर की दूरी पट नहीं पाई.

देखिए पूरी खबर

गांव वाले बताते हैं कभी भूखल भी आम लोगों की तरह था. बेंगलुरु में मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था, लेकिन अपने मां की देहांत के बाद वह घर आया था. मां की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि पिता भी 3 दिनों के अंदर चल बसे. मां-बाप के श्राद्ध कर्मकांड में वह इतना कमजोर हो गया कि उसे कई बीमारियों ने घेर लिया, जिसके बाद वह दोबारा मेहनत मजदूरी करने के लायक नहीं रहा.

जून 2019 में भूखल ने राशन कार्ड के लिए आवेदन किया था, लेकिन सरकारी सिस्टम ने उसे एक अदद राशन कार्ड भी मुहैया नहीं कराया. लगातार बीमार रहने, भूखे रहने की वजह से वह इस दुनिया से विदा हो गया. भूखल की पत्नी रेखा घासी बताती है कि उसकी मौत से 4 दिन पहले तक घर में चूल्हा नहीं जला था.

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अब मौत के बाद प्रशासन जागी है. समाज भी साथ है. 20 हजार नकद, 50 किलो चावल से दिन गुजर रहे हैं. राशन कार्ड बन गया है. जल्द ही पैंशन भी शुरू हो जाएगा. भूखल की पत्नी बच्चों के लिए रोजगार मांग रही है. शायद वो भी मिल जाए, लेकिन ये सब एक व्यक्ति की जान की कीमत पर. सौ दिन की सरकार सोचिएगा जरूर.

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