बोकारो: सखुआ का फल कसमार के अलावा जिला के अन्य प्रखंडों में जंगल से सटे गांव के लिए अर्थ उपार्जन का एक बड़ा जरिया बन चुका है. कसमार, नावाडीह, गोमिया, पेटरवार समेत अन्य प्रखंडों के दर्जनों गांव के हजारों परिवार सखुवा का फल बेचकर अपनी आर्थिक जीवन को बेहतर बनाने में जुटे हुए. एक गांव में लगभग 12 से 15 क्विंटल फल से सरई निकालकर प्रतिदिन बेचे जा रहे हैं. सिर्फ कसमार में डेढ़ करोड़ का व्यवसाय होता है.
सखुआ का फल खरीदने वाले व्यवसायी मोनू जायसवाल ने बताया कि पिछले चार पांच साल से ये व्यापार शुरू हुआ है. ग्रामीणों से फल खरीदते हैं. जिससे साबुन और अन्य चीजों के निर्माण में उपयोग होता है. उन्होंने बताया कि इस फल की कीमत पहले कोई समझ नहीं पाया था. अब गांव के लोगों के लिए ये पैसा कमाने का साधन हो गया है. अगर व्यवसायी गांव वालों से आकर खरीदारी करते है तो 12 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदते हैं. वहीं जब ग्रामीण उसे ले जाकर बेचते हैं तो 15 रुपये तक प्रति किलो मिलता है.
मई और जून माह में मिलने वाले सखुआ के फल को तोड़ना भी नहीं पड़ता है. वह हवा के झोंकों से हर दिन टूट टूट कर गिरते रहते है. ग्रामीण उसे चुनते है. फल की ऊपरी परत फूल जैसी होती है. उसे कुछ देर धूप में सुखाने के बाद उसे आग लगाकर जला दिया जाता है. उसके बाद केवल फल बच जाता है. फल को दो दिन तक सुखाने के बाद पीसकर उसके अंदर के दाने को निकाल दिया जाता है. उसे व्यापारियों को बेच दिया जाता है. इस कार्य में महिला भर के बच्चे अधिक की मदद ली जाती है.