बोकारो: भविष्य का सुनहरा सपना संजोकर पलायन, काम के दौरान शोषण और फिर मौत यह झारखंड के बेरोजगारों की नियति बन गयी है. कह सकते हैं कि दुर्भाग्य ने इनका दामन थाम रखा है और यह अन्तहीन सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. झारखंड के किसी लाल के साथ घटी कोई दुर्भाग्यजनक घटना के बाद कुछ दिनों तक उसकी चर्चा चलती है और फिर यह चर्चा थमती ही नहीं इसके पहले फिर कोई दूसरी घटना सामने आ जाती है.
दरअसल पेट की आग और काम की तलाश ने झारखंड के बेरोजगारों को मजबूरी की मजदूरी करने के लिए पलायन करने को उकसाया हैं. ऐसी ही घटना में इस बार बोकारो जिले के 11 लाल अपनी जान गवां चुके हैं.
इनकी लाशों के उतर प्रदेश से आते ही गांव में कोहराम मच गया. गांवों के सन्नाटे को लोगों की चित्कार व क्रंदन ने चीर कर रख दिया. एक ऐसा दृश्य सामने आया कि पत्थर दिल इंसान का भी कलेजा पसीज जाए.
चारों ओर मातमी सन्नाटा
बोकारो जिले के पिंडराजोरा थाना इलाके के गोपालपुर, बाबूडीह व खीराबेडा में एक साथ जब 11 युवकों की लाशों के साथ एंबुलेंसों ने प्रवेश किया तो मातमी सन्नाटा टूटा और कई दिनों से अपने लाडलों के इंतजार कर रही आंखों ने जिन आसुंओं को थाम रखा था वे चित्कार के साथ बह निकले.
एक नहीं दो नहीं कुल ग्यारह लोगों की मौत ने लोगों को झकझोर कर रख दिया. उतर प्रदेश के औरेया में हुए हादसे में मारे गए 11 लोगों का न होना इन परिवारों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं.
इस हादसे में किसी ने अपने पिता को खो दिया तो किसी ने अपना पति तो किसी ने अपना लाडला खो दिया है. गोपालपुर, बाबूडीह व खीराबेडा में हादसे की जानकारी शनिवार को ही मिल गयी थी.
लोगों को सहसा विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन जैसे ही लाशों को लेकर गांव में सरकारी एंबुलेंस पहुंची लोगों के सब्र का बांध टूट गया. चित्कार, क्रंदन व लोगों की दहाड़ ने मजबूत कलेजा रखने वालों को भी दहला कर रख दिया.
नेताओं को मिला राजनीति चमकाने का मौका
हालांकि मजदूरों की मौत के बाद राजनीति करने वाले इसके लिए जिम्मेदारी थोपने में लगे रहे. विधायक व पूर्व मंत्री अमर वाउरी की मानें तो झारखंड सरकार प्रवासी मजदूरों के मामले में संवदेनशील नहीं है.
यही कारण है कि उनको साधन नहीं मिल रहा और मजदूर अपने पैरों के सहारे सही दूरी मापने निकल गये हैं. मजदूरो का यह खतरनाक फैसला उनकी जान पर भारी पड़ने लगा है.
कोरोना संकट में 12 फंसे मजदूरों की घर वापसी की हड़बड़ाहट पर राज्य सरकार के मंत्री न केवल आश्चर्य जाहिर करते हैं बल्कि यह भी कहते हैं कि झारखंड के कोई 8 से 10 लाख लोग बाहर मजूदरी कर रहे हैं. अब ये वापस आना चाहते हैं.
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वजह साफ है, वे जहां काम कर रहे थे वहां की राज्य सरकारों ने उनका ध्यान नहीं रखा और वे परेशान हो गये. अगर राज्य सरकारों ने उनका ध्यान रखा होता तो झारखंड के मजदूरों में वापसी की हड़बड़ी नहीं रहती और समस्या जिस तौर से गहराई है वैसी समस्या सामने नहीं आती. मंत्री कहते हैं कि जो मजदूर आ रहे हैं सरकार उनको काम देने पर विचार कर रही है ताकि उनके सामने संकट ना रहे.
झारखंड में शुरू से ही मजबूरी में मजदूरी और मजदूरी की मजबूरी रही है, जो पलायन की राह दिखाती रही है. पर राजनीति करने वालों के लिये यह विषय ज्यादा विचारणीय नहीं रहा है. इसलिये यहा राजनीति करने वालों ने पलायन को चुनावी मुद्दा बनाने के अलावा कभी भी समस्या का निदान तलाशने व ठोस उपाय करने का प्रयास नहीं किया.
नतीजतन मजदूरों का पलायन, बाहर जाकर हादसे में मौत का शिकार बनाना उसकी नियति बन कर रह गयी है. हर हादसे के बाद लगता है कि शायद अब सरकार इस इस विषय पर गंभीर होगी, लेकिन पलायन जारी है मौत भी हो रही है और सरकारों की ओर से मुआवजा का मरहम लगाने के अलावा कुछ भी नहीं हो रहा.