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Exclusive: आर्थिक तंगी की मार झेल रही अंतरराष्ट्रीय जेवलिन थ्रोअर रही मारिया, सरकार से लगाई मदद की गुहार

जेवलिन थ्रो की अंतरराष्ट्रीय प्लेयर रह चुकी मारिया गोरती खलखो ने कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मेडल हासिल कर देश के साथ-साथ राज्य का नाम रोशन किया है, लेकिन आज वो आर्थिक तंगी की मार झेल रही हैं. अपनी बची जिंदगी जीने के लिए मारिया सरकार से लगातार आर्थिक मदद की गुहार लगा रही हैं.

former international player maria
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Published : Jan 23, 2021, 3:48 PM IST

Updated : Jan 23, 2021, 4:35 PM IST

रांची: झारखंड प्रतिभावान खिलाड़ियों का गढ़ माना जाता है. यहां हर क्षेत्र में प्रतिभा है और खिलाड़ियों के उत्थान को लेकर कई योजनाएं संचालित हो रही हैं. इसके बावजूद ऐसे कई वर्तमान और पूर्व खिलाड़ी हैं, जो आज आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. रांची में जेवलिन थ्रो की अंतरराष्ट्रीय प्लेयर रह चुकी मारिया गोरती खलखो ने राज्य के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया है, लेकिन वो फिलहाल गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश हैं. राष्ट्रीय स्तर के अलावा कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के मेडल इनके नाम हैं. इसके बावजूद आज बची हुए जिंदगी जीने के लिए सरकार से गुहार लगा रही हैं.

देखिए वीडिये

खेल और खिलाड़ियों के विकास को लेकर कई घोषणाएं होती रही हैं. झारखंड सरकार खेल नीति बनाकर खिलाड़ियों और खेल को संवारने की बात कह रही है, लेकिन यह सारे वादे, घोषणाएं और योजनाएं कोरी साबित हो रही हैं. ऐसे कई खिलाड़ी हैं जो आज भी सरकारी मदद को लेकर गुहार लगाने को मजबूर हैं. जेवलिन थ्रो की नेशनल प्लेयर रह चुकी और शानदार एथलेटिक्स कोच मारिया गोरती खलखो भी उन्हीं में से एक हैं. इन दिनों उनकी हालत काफी नाजुक है. उनकी सेहत भी काफी नासाज चल रही है, लेकिन इस ओर न तो सरकार का ध्यान है और न ही किसी संबंधित पदाधिकारी का.

साल 2019 में रिम्स में मारिया को इलाज के दौरान पता चला कि उनका एक लंग्स पूरी तरह खराब हो चुका है. उस दौरान खेल विभाग की ओर से निवर्तमान खेल निदेशक अनिल कुमार सिंह और खेल प्रशिक्षक प्रवीण कुमार की मदद से उनका इलाज रिम्स में संभव हो पाया. एक महीने से अधिक समय तक रिम्स में ही उनका इलाज चला. उस दौरान खेल विभाग ने रिम्स में एडमिट तक ही उनकी मदद की थी, लेकिन उसके बाद मारिया का हालचाल जानने भी उनके घर तक कोई नहीं पहुंचा. रांची से लगभग 20 किलोमीटर दूर नामकुम के आरा गेट के पास सीधा टोली ग्रामीण क्षेत्र में अपनी बहन के घर पर रहकर मारिया जिंदगी का अंतिम पड़ाव गुजार रही हैं और उन्हें सरकारी आर्थिक मदद की सख्त जरूरत है. मारिया सरकारी आर्थिक मदद के लिए गुहार लगा रही हैं.

सरकार ने एक लाख रुपये की आर्थिक मदद का किया था वादा

इलाज के दौरान ही राज्य सरकार और खेल विभाग की ओर से मारिया को एक लाख रुपये की आर्थिक मदद देने का वादा किया गया था, लेकिन इस वादे को सरकार शायद भूल गई है. मारिया को हर महीने लगभग 4000 रुपये की दवा की जरूरत पड़ती है, लेकिन इस ओर भी किसी का ध्यान नहीं है और आज भी वह आर्थिक मदद के लिए सरकार के पास हाथ फैलाए खड़ी हैं. जबकि एथलेटिक्स में जब उनका परचम लहरा रहा था. उस दौरान उनके आगे पीछे मीडिया के कैमरे के साथ-साथ कई पदाधिकारी और मंत्री चक्कर काटते थे और आज उम्र के साथ सबकुछ बेगाना हो गया है.

एथलेटिक्स कोच के तौर पर मारिया खलखो ने लातेहार में 1988 में योगदान दिया. अगस्त 2018 में संविदा पर रहते रिटायर्ड भी हो गईं. 30 सालों में उनका मानदेय 1000 से 31 हजार तक पहुंचा और अंतिम समय में एथलेटिक्स बालिका सेंटर में उन्होंने अपना योगदान दिया. रिटायरमेंट के बाद से ही मारिया के हाथ खाली हो गए और वह एक एक रुपए के लिए मोहताज होने लगी. संविदा में योगदान देने के कारण ना तो उनको सरकार की ओर से कोई सहायता दी गई और ना ही खिलाड़ी कल्याण से ही उनको कुछ मिला.

झारखंड के सैकड़ों एथलीट को दिया प्रशिक्षण

मारिया के मुताबिक उन्होंने झारखंड में ऐसे कई एथलीट को अपने हाथ से गढ़ा और उन्हें अपने मुकाम तक पहुंचाया, लेकिन इन सब प्रयासों के बाद भी उनके पास खुद की जिंदगी के लिए कोई सहारा नहीं बचा है, जबकि खेल विभाग में खिलाड़ी कल्याण कोष ने खिलाड़ियों को मदद किए जाने का प्रावधान है. इसके लिए रुपयों की भी कोई लिमिट नहीं है. इसके बावजूद मारिया को मदद नहीं मिल पा रही है. मारिया अपने बहन के खेत पर समय बिताती हैं और मायूस चेहरा लिए सरकारी मदद के बाट जोह रही हैं. आस-पड़ोस के बच्चों को मारिया अभी भी खेल के गुर सिखाती हैं.

मारिया का शानदार सफर

1974 में जब मारिया आठवीं क्लास के विद्यार्थी थी उसी समय जेवलिन मीट में फर्स्ट लाकर गोल्ड मेडल हासिल किया था. मरिया ने ऑल इंडिया रूरल समिट में भी जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल हासिल किया. वहीं 1975 में स्कूल नेशनल मणिपुर में गोल्ड मेडल हासिल किया. फिर 1975 -76 में जालंधर में अंतरराष्ट्रीय जेवलिन मीट प्रतियोगिता में फर्स्ट आकर नया रिकॉर्ड बनाया. मारिया ने 1976-77 के दौर में बनारस में जेवलिन में गोल्ड मेडल हासिल किया. उनकी कोचिंग का सफर 30 साल तक रहा. 1980 से 2018 तक अपना समय प्रशिक्षक के रूप में उन्होंने बेहतरीन काम किया. आज मारिया से प्रशिक्षण लिए कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परचम लहरा रहे हैं.

मारिया के दिए गए प्रशिक्षण से कई पदक हुए हासिल

  • मेरी इरेसा तिर्की ने ऑल इंडिया स्कूल नेशनल में स्वर्ण पदक मारिया के प्रशिक्षण से प्राप्त किया
  • प्रतिमा खलखो ने रूरल नेशनल शॉटपुट में गोल्ड मेडल हासिल किया
  • यासीन कुजूर ने हाई जंप स्कूल नेशनल में गोल्ड मेडल हासिल किया
  • एवन कुजूर ने 400 मीटर स्कूल नेशनल में स्वर्ण पदक प्राप्त किया
  • प्रतिमा खलखो ने शॉटपुट नेशनल में स्वर्ण पदक जीता
  • रीमा लड़का ने 3000 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल और 800 मीटर में सिल्वर मेडल प्राप्त किया है
  • संगीता एक्का ने 800 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल स्कूल नेशनल में प्राप्त किया
  • एयरबोर्न कुजूर ने 400 मीटर दौड़ में स्कूल नेशनल में स्वर्ण पदक जीता
  • दीपा माला ने 800 मीटर दौड़ में स्कूल नेशनल में सिल्वर मेडल प्राप्त किया

रांची: झारखंड प्रतिभावान खिलाड़ियों का गढ़ माना जाता है. यहां हर क्षेत्र में प्रतिभा है और खिलाड़ियों के उत्थान को लेकर कई योजनाएं संचालित हो रही हैं. इसके बावजूद ऐसे कई वर्तमान और पूर्व खिलाड़ी हैं, जो आज आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. रांची में जेवलिन थ्रो की अंतरराष्ट्रीय प्लेयर रह चुकी मारिया गोरती खलखो ने राज्य के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया है, लेकिन वो फिलहाल गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश हैं. राष्ट्रीय स्तर के अलावा कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के मेडल इनके नाम हैं. इसके बावजूद आज बची हुए जिंदगी जीने के लिए सरकार से गुहार लगा रही हैं.

देखिए वीडिये

खेल और खिलाड़ियों के विकास को लेकर कई घोषणाएं होती रही हैं. झारखंड सरकार खेल नीति बनाकर खिलाड़ियों और खेल को संवारने की बात कह रही है, लेकिन यह सारे वादे, घोषणाएं और योजनाएं कोरी साबित हो रही हैं. ऐसे कई खिलाड़ी हैं जो आज भी सरकारी मदद को लेकर गुहार लगाने को मजबूर हैं. जेवलिन थ्रो की नेशनल प्लेयर रह चुकी और शानदार एथलेटिक्स कोच मारिया गोरती खलखो भी उन्हीं में से एक हैं. इन दिनों उनकी हालत काफी नाजुक है. उनकी सेहत भी काफी नासाज चल रही है, लेकिन इस ओर न तो सरकार का ध्यान है और न ही किसी संबंधित पदाधिकारी का.

साल 2019 में रिम्स में मारिया को इलाज के दौरान पता चला कि उनका एक लंग्स पूरी तरह खराब हो चुका है. उस दौरान खेल विभाग की ओर से निवर्तमान खेल निदेशक अनिल कुमार सिंह और खेल प्रशिक्षक प्रवीण कुमार की मदद से उनका इलाज रिम्स में संभव हो पाया. एक महीने से अधिक समय तक रिम्स में ही उनका इलाज चला. उस दौरान खेल विभाग ने रिम्स में एडमिट तक ही उनकी मदद की थी, लेकिन उसके बाद मारिया का हालचाल जानने भी उनके घर तक कोई नहीं पहुंचा. रांची से लगभग 20 किलोमीटर दूर नामकुम के आरा गेट के पास सीधा टोली ग्रामीण क्षेत्र में अपनी बहन के घर पर रहकर मारिया जिंदगी का अंतिम पड़ाव गुजार रही हैं और उन्हें सरकारी आर्थिक मदद की सख्त जरूरत है. मारिया सरकारी आर्थिक मदद के लिए गुहार लगा रही हैं.

सरकार ने एक लाख रुपये की आर्थिक मदद का किया था वादा

इलाज के दौरान ही राज्य सरकार और खेल विभाग की ओर से मारिया को एक लाख रुपये की आर्थिक मदद देने का वादा किया गया था, लेकिन इस वादे को सरकार शायद भूल गई है. मारिया को हर महीने लगभग 4000 रुपये की दवा की जरूरत पड़ती है, लेकिन इस ओर भी किसी का ध्यान नहीं है और आज भी वह आर्थिक मदद के लिए सरकार के पास हाथ फैलाए खड़ी हैं. जबकि एथलेटिक्स में जब उनका परचम लहरा रहा था. उस दौरान उनके आगे पीछे मीडिया के कैमरे के साथ-साथ कई पदाधिकारी और मंत्री चक्कर काटते थे और आज उम्र के साथ सबकुछ बेगाना हो गया है.

एथलेटिक्स कोच के तौर पर मारिया खलखो ने लातेहार में 1988 में योगदान दिया. अगस्त 2018 में संविदा पर रहते रिटायर्ड भी हो गईं. 30 सालों में उनका मानदेय 1000 से 31 हजार तक पहुंचा और अंतिम समय में एथलेटिक्स बालिका सेंटर में उन्होंने अपना योगदान दिया. रिटायरमेंट के बाद से ही मारिया के हाथ खाली हो गए और वह एक एक रुपए के लिए मोहताज होने लगी. संविदा में योगदान देने के कारण ना तो उनको सरकार की ओर से कोई सहायता दी गई और ना ही खिलाड़ी कल्याण से ही उनको कुछ मिला.

झारखंड के सैकड़ों एथलीट को दिया प्रशिक्षण

मारिया के मुताबिक उन्होंने झारखंड में ऐसे कई एथलीट को अपने हाथ से गढ़ा और उन्हें अपने मुकाम तक पहुंचाया, लेकिन इन सब प्रयासों के बाद भी उनके पास खुद की जिंदगी के लिए कोई सहारा नहीं बचा है, जबकि खेल विभाग में खिलाड़ी कल्याण कोष ने खिलाड़ियों को मदद किए जाने का प्रावधान है. इसके लिए रुपयों की भी कोई लिमिट नहीं है. इसके बावजूद मारिया को मदद नहीं मिल पा रही है. मारिया अपने बहन के खेत पर समय बिताती हैं और मायूस चेहरा लिए सरकारी मदद के बाट जोह रही हैं. आस-पड़ोस के बच्चों को मारिया अभी भी खेल के गुर सिखाती हैं.

मारिया का शानदार सफर

1974 में जब मारिया आठवीं क्लास के विद्यार्थी थी उसी समय जेवलिन मीट में फर्स्ट लाकर गोल्ड मेडल हासिल किया था. मरिया ने ऑल इंडिया रूरल समिट में भी जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल हासिल किया. वहीं 1975 में स्कूल नेशनल मणिपुर में गोल्ड मेडल हासिल किया. फिर 1975 -76 में जालंधर में अंतरराष्ट्रीय जेवलिन मीट प्रतियोगिता में फर्स्ट आकर नया रिकॉर्ड बनाया. मारिया ने 1976-77 के दौर में बनारस में जेवलिन में गोल्ड मेडल हासिल किया. उनकी कोचिंग का सफर 30 साल तक रहा. 1980 से 2018 तक अपना समय प्रशिक्षक के रूप में उन्होंने बेहतरीन काम किया. आज मारिया से प्रशिक्षण लिए कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परचम लहरा रहे हैं.

मारिया के दिए गए प्रशिक्षण से कई पदक हुए हासिल

  • मेरी इरेसा तिर्की ने ऑल इंडिया स्कूल नेशनल में स्वर्ण पदक मारिया के प्रशिक्षण से प्राप्त किया
  • प्रतिमा खलखो ने रूरल नेशनल शॉटपुट में गोल्ड मेडल हासिल किया
  • यासीन कुजूर ने हाई जंप स्कूल नेशनल में गोल्ड मेडल हासिल किया
  • एवन कुजूर ने 400 मीटर स्कूल नेशनल में स्वर्ण पदक प्राप्त किया
  • प्रतिमा खलखो ने शॉटपुट नेशनल में स्वर्ण पदक जीता
  • रीमा लड़का ने 3000 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल और 800 मीटर में सिल्वर मेडल प्राप्त किया है
  • संगीता एक्का ने 800 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल स्कूल नेशनल में प्राप्त किया
  • एयरबोर्न कुजूर ने 400 मीटर दौड़ में स्कूल नेशनल में स्वर्ण पदक जीता
  • दीपा माला ने 800 मीटर दौड़ में स्कूल नेशनल में सिल्वर मेडल प्राप्त किया
Last Updated : Jan 23, 2021, 4:35 PM IST
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