हैदराबाद : एक तरफ जब पूरी दुनिया का ध्यान चीन में पैदा हुए कोरोना वायरस से लड़ने पर है, वहीं दबसरी ओर चीन ने अपने क्षेत्रीय अतिक्रमण की लड़ाई फिर से शुरू कर दी है. इस बार चीन ने अरुणाचल के भारतीय क्षेत्र या दक्षिण चीन सागर में कुछ द्वीपों पर नहीं, बल्की दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर दावा किया है.
विवाद तब भड़क गया जब चीन सरकार के टेलीविजन सीजीटीएन ने माउंट एवरेस्ट को अपने स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र में होने का दावा करते हुए एक ट्वीट किया.
इस ट्वीट की भारत और नेपाल दोनों देशों के इंटरनेट पर एक्टिव रहने वाले लोगों (नेटिजेन्स) ने बहुत आलोचना की.
माउंट एवरेस्ट पर विवाद के बारे में संक्षिप्त जानकारी
1954 में प्रकाशित एक मानचित्र में जब चीनियों ने माउंट एवरेस्ट को अपने क्षेत्र में दिखाया तो विवाद पैदा हो गया, लेकिन 1960 में सीमा समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद माउंट एवरेस्ट को दो हिस्सों में विभाजित किया गया. दक्षिणी ढलान में जो नेपाल की सीमा में थी और उत्तरी ढलान से स्वायत्त तिब्बत के हिस्से में गया, जिस पर चीन अपना दावा करता है.
नेपाल का यह भी दावा है कि माउंट एवरेस्ट पर विवाद तब तय हुआ था, जब चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने काठमांडू का दौरा किया था और 28.04.1960 को प्रेस मीट में कहा था कि माउंट एवरेस्ट नेपाल का है.
माउंट एवरेस्ट पर अधिकांश पर्यटन और अभियान नेपाल से किए जाते हैं.
2002 के समाचार पत्र में चीनी दैनिक ने अंग्रेजी में माउंट एवरेस्ट के उपयोग के खिलाफ एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि माउंटेन को आधिकारिक स्थानीय तिब्बती नाम के आधार पर माउंट 'कोमोलंग्मा' के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिए.
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2002 के समाचार पत्र में चीनी दैनिक ने अंग्रेजी में माउंट एवरेस्ट के उपयोग के खिलाफ एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि माउंटेन को आधिकारिक स्थानीय तिब्बती नाम के आधार पर माउंट कोमोलंग्मा के रूप में पहचाना जाना चाहिए.
हाल ही हुए परिवर्तन
हाल ही में चीन ने एवरेस्ट की ढलान पर किनारे 5जी टावर लगा रखा है. यह एक विवादास्पद कदम है, क्योंकि वह हिमालय पर्वतमाला के माध्यम से बीम कर सकते हैं.
5G नेटवर्क में सैन्य घटक है, जो समुद्र तल से 8000 मीटर ऊपर है. इससे चीनी भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में स्कूप कर सकते हैं.