रांचीः झारखंड की राजधानी रांची में घूमने और देखने लायक कई जगहें हैं. यदि आपको प्राकृतिक नजारे लुभाते हैं तो आप दशम, जोनहा और हुंडरू जलप्रपात देख सकते हैं. हुंडरू फॉल 320 फीट की ऊंचाई से गिरता है. रांची का रॉक गार्डन भी काफी मशहूर है. साहित्य से जुड़े लोगों के लिए टैगोर हिल का खास महत्व है. टैगोर हिल रवींद्रनाथ के बड़े भाई ज्योतिंद्रनाथ का आश्रम था. अल्बर्ट एक्का चौक से करीब तीन किमी दूर इस हिल से सूर्योदय और सूर्यास्त देखना अच्छा लगता है. इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए पहाड़ी मंदिर खास हैं. यूं तो पहाड़ी मंदिर भगवान शिव को समर्पित है लेकिन पहले इसे फांसी टोंगरी के नाम से जाना जाता था. आजादी के पहले यहां स्वतंत्रता सैनानियों को फांसी दी जाती थी.
बोकारोः लूगुबरु घंटाबाड़ी
बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड में संताली आदिवासियों का एक गांव है ललपनिया. तेनुघाट डैम के उत्तर में दामोदर और कातैल व सदबाहर पहाड़ी नदियों से घिरा ये गांव संतालियों का धार्मिक स्थल है. कार्तिक पूर्णिमा पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें देशभर के संताल आदिवासी जमा होते हैं और भगवान लुगू बाबा की पूजा करते हैं. माना जाता है कि लाखों वर्ष पहले इसी जगह पर लुगु बाबा ने संतालियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के रीति-रिवाज तय किए थे. अब यहां लगने वाले वार्षिक मेले को राजकीय महोत्सव का दर्जा मिल चुका है.
चतराः बौद्ध-जैन और हिंदू पुरात्तव
बिहार-झारखंड की सीमा पर स्थित चतरा जिला प्राचीन धार्मिक स्थलों और प्राकृतिक दृश्यों के लिए मशहूर है. इटखोरी प्रसिद्ध बौद्ध केंद्र है साथ ही यहां जैन धर्म के 10 वें तीर्थंकर शीतलनाथ के पैर के निशान होने की भी मान्यता है. यहां 9वीं शताब्दी का मां भद्रकाली मंदिर भी है और कहा जाता है कि यह स्थान ऋषि मतंग का आश्रम था.
देवघरः बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर
देवघर यानी देवों का घर, ये जिला भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के लिए मशहूर है. यहां सावन में महीने भर के लिए मेला लगता है, जिसमें देशभर से शिवभक्त मनोकामना लिंग के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. मंदिर परिसर में ही शक्तिपीठ भी है. माना जाता है कि सती का हृदय यहां गिरा था. जिले में बाबाधाम के अलावा त्रिकुट पहाड़ रोमांचक पर्यटन स्थलों के रूप में जाना जाता है. यहां ट्रेकिंग और रोपेवे जैसे एडवेंचर्स का आंनद लिया जा सकता है.
धनबादः झील और बांध
धनबाद जिले के पर्यटक स्थलों में मैथन डैम, पंचेत डैम, बिरसा मुंडा पार्क, तोपचांची झील और भटिंडा फॉल का नाम शुमार है. ये स्थल पिकनिक स्पॉट के रूप में जाने जाते हैं. खासकर नए साल के मौके पर यहां भारी भीड़ उमड़ पड़ती है. झारखंड के अलावा बिहार और पश्चिम बंगाल से भी सैलानी यहां पहुंचते हैं. मानसून के अंत में जब डैम का जलस्तर ऊंचा होता है और गेट खोल दिए जाते हैं तब यहां का नजारा देखने लायक होता है.
दुमका: मंदिरों का गांव मलूटी
दुमका जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर बाबा बासुकीनाथ मंदिर शिवभक्तों में खासा लोकप्रिय है. जो भक्त देवघर के बाबाधाम पूजा अर्चना करने आते हैं, उनकी यात्रा तभी पूर्ण मानी जाती है, जब वे बासुकीनाथ में आकर जलाभिषेक करते हैं. जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र में मंदिरों का गांव मलूटी है. यहां 17वीं और 18वीं सदी के एक दो नहीं बल्कि 72 मंदिर हैं. इसे गुप्तकाशी भी कहा जाता है. पहले यहां मंदिरों की संख्या 108 थी लेकिन रखरखाव के अभाव में इसका क्षरण होता गया. इन मंदिरों का निर्माण टेराकोटा पद्धति से हुआ है. प्राकृतिक सुंदरता देखने वालों के लिए मयूराक्षी नदी पर बना मसानजोर डैम सही चुनाव हो सकता है. इस डैम के निर्माण में कनाडा सरकार में वित्तीय सहयोग दिया था इसलिए इसे कनाडा डैम भी कहा जाता है. यह डैम भले ही झारखंड की धरती पर है लेकिन इसका स्वामित्व पश्चिम बंगाल सरकार के पास है.
गढ़वाः सोने के श्रीकृष्ण
गढ़वा जिले के वंशीधर नगर में भगवान श्रीकृष्ण और माता राधा की मूर्ति शुद्ध सोने से बनी है. इस मूर्ति का वजन लगभग 1280 किलोग्राम है. पहले इस जगह को नगर ऊंटारी के नाम से जाना जाता था लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के लिए मशहूर इस स्थल का नाम 2018 में वंशीधर नगर कर दिया गया. सरकार हर साल वंशीधर महोत्सव का भी आयोजन करती है. घोर नक्सली क्षेत्र होने के बावजूद बगैर किसी सुरक्षा के यह प्रतिमा लगभग 200 सालों से भक्तों के लिए अटूट श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है. साल 2014 में बीएचयू के पुरातात्विक विभाग की टीम इस मूर्ति की असलियत की पड़ताल करने आयी थी. टीम ने इसकी कीमत 2500 करोड़ रुपये आंकी थी.
गिरिडीहः पारसनाथ पर्वत और सम्मेद शिखर
जिले का पारसनाथ पर्वत जैन धर्म के साथ आदिवासियों के लिए भी पूजनीय है. आदिवासी इस पर्वत को मरांग बुरु के नाम से जानते हैं. इस पर्वत की तलहटी में मधुबन हैं जहां जैन धर्म के कई मंदिर हैं. जैन धर्म के 20वें तीर्थंकर ने इसी पवित्र भूमि पर मोक्ष प्राप्त किया था. यहीं पर जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था. इसके अलावा जिले के जमुआ प्रखंड में उसरी नदी के किनारे लंगटाबाबा का समाधिस्थल है.1870 में नागा साधुओं के जत्थे के साथ पहुंचे थे लंगटा बाबा और 1910 में समाधि ली थी. इसी प्रखंड में झारखंड धाम है, जिसका जिक्र शिव पुराण में है. कहा जाता है कि यहीं पर अर्जुन को भगवान शिव के दर्शन हुए थे और शिव ने अर्जुन को गांडीव दिया था. जिला मुख्यालय से 14 किमी दूर गिरिडीह-धनबाद मुख्यमार्ग के मार्ग के ठीक बगल में स्थित है उसरी जलप्रपात. राष्ट्र कवि रवींद्रनाथ टैगोर, प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ जगदीशचंद्र बसु, अरविंदो घोष, फिल्मकार सत्यजीत रे जैसे महान लोग भी इस रमणीक स्थल पर आते रहे थे.
गोड्डाः बुद्धकालीन धरोहर
गोड्डा जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर महगामा-बलबड्डा मार्ग पर बेलनीगढ़ एक ऐसी जगह है, जो न जाने अपने अतीत के गर्भ में कितनी कहानियां समेटे हुए है. खुदाई के दौरान यहां पुरातात्विक चीजें मिली हैं. पहाड़ की बड़ी-बड़ी चट्टानों में उकेरी गई अद्भुत कलाकृतियों को जानकार बुद्ध और विष्णु से जोड़ कर देखते हैं. एक अजीब से मान्यता है कि यहां गुजरने पर अगर चट्टान पर उकेरे चित्र पर पत्थर न मारा जाए तो राहगीर की तबीयत बिगड़ जाएगी. हालांकि इन चट्टानों के महत्व को समझते हुए अब लोग ऐसा नहीं करते. जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर पीरपैंती मार्ग पर स्थित माता योगिनी का मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है. मान्यताओं के अनुसार ये देवी सती का 52वां गुप्त शक्ति पीठ है.
गुमला: रामभक्त हनुमान की जन्मस्थली
गुमला में एक जगह है आंजन धाम. ऐसी मान्यता है कि माता अंजनी ने यहीं एक गुफा में हनुमान को जन्म दिया था. करीब डेढ़ हजार फीट लंबी इस गुफा का प्रवेश द्वार एक विशाल चट्टान से बंद था, जिसे हाल में खुदाई कर खोला गया है. जिले के सिसई प्रखंड मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर नागवंशी राजाओं की प्रसिद्ध राजधानी डोईसागढ़ या नवरत्नगढ़ स्थित है. यूनेस्को ने डोईसागढ़ के स्मारकों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है. जिले के घाघरा प्रखंड अंतर्गत घाघरा- लोहरदगा मार्ग पर गम्हरिया से पश्चिम में करीब एक किलोमीटर दूरी पर स्थित है हापामुनि गांव. यह गांव ऐतिहासिक मां महामाया मंदिर के लिए विख्यात है. इस मंदिर की स्थापना महाराजा गजघण्ट राय ने 908 ईo में की थी. मंदिर के अंदर मां महामाया की मूर्ति है किंतु उन्हें एक मंजूषा में बंद कर रखा गया है क्योंकि मां महामाया को कोई खुली आंखों से नहीं देख सकता है.
हजारीबाग: मेगालिथ और इसको गुफा
हजारीबाग में बड़कागांव के पंकरी बरवाडीह रोड के किनारे दो पत्थर जमीन में गड़े हुए नजर आते हैं. इसके चारों ओर गोलाकार आकार में भी कुछ पत्थर हैं. खगोलशास्त्री इसे मेगालिथ कहते हैं और ये प्राचीन वेधशाला है. सूर्योदय के अद्भुत नजारे को निहारने के लिए बड़ी संख्या में 21 मार्च और 23 दिसंबर को लोग जुटते हैं. इसी तरह इसको की गुफाओं में पड़े शैल चित्र कई मायनों में अद्भुत हैं. ऐतिहासिक शैल चित्रों के आधार पर यह माना जाता है कि कोहबर झारखंड के बड़कागांव से शुरू हुआ था.इतिहासकारों के अनुसार इसको गुफा के शैल चित्र सुमेर घाटी सभ्यता के समकक्ष माने जाते हैं. हजारीबाग नाम से ही स्पष्ट है हजार बागों का शहर. लिहाजा यहां प्राकृतिक नजारे भी हैं. शहर से करीब 3 किमी दूर कैनरी हिल अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है. कैनरी हिल के ऊपर वॉच टावर हजारीबाग का मुख्य आकर्षण केंद्र है, जहां से विहंगम नजारा लिया जा सकता है. बड़कागांव मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर झिकझोर जंगल में स्थित है पर्यटक स्थल बरसो पानी. इस स्थल की खासियत है कि आप जितना ताली बजाएंगे उतना ही जोरो से चट्टान के ऊपर से झमाझम बारिश होती है. दिलचस्प बात यह है कि चट्टान या पहाड़ के ऊपर किसी भी प्रकार का जलजमाव नहीं है.
पूर्वी सिंहभूमः जुबली पार्क
पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर शहर में स्थित जुबली पार्क पिकनिक स्पॉट के रूप में मशहूर है. करीब 500 एकड़ में बने इसे पार्क को देश के सबसे खूबसूरत पार्कों में गिना जाता है. पार्क के बीचोबीच जमशेदपुर के संस्थापक जमशेदजी टाटा की मूर्ति है और इसके चारों खूबसूरत प्राकृतिक नजारे हैं. नौकायन की चाहत रखने वालों के लिए डिमना-झील सही पर्यटन स्थल है. इसके साथ ही यहां दलमा वन्य जीवन अभयारण्य भी है. यहां हाथी, हिरण और दूसरे जानवर पाए जाते हैं.
पश्चिमी सिंहभूमः सारंडा की मनोरम वादियां
यूं तो पश्चिम सिंहभूम जिले में दर्जनों पिकनिक स्पॉट हैं लेकिन इनमें सारंडा खास है. पूरे एशिया में प्रसिद्ध सारंडा वन झारखंड-ओडिशा सीमा में फैला हुआ है. सारंडा की पहाड़ियों में किरीबुरू का सूर्योदय और सूर्यास्त का शानदार दृश्य देखने प्रतिदिन सैलानियों की भीड़ उमड़ती है. सारंडा की 700 पहाड़ियों में एक सबसे ऊंची पहाड़ी पर किरीबुरू मेघाहातुबुरू से से सूर्यास्त देखने का नजारा सुखद एहसास कराता है तो वहीं किरीबुरू स्थित हिलटॉप से सूर्योदय का नजारा भी देखने का अलग ही आनंद है. ऐसे ही जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर बंदगांव प्रखंड स्थित हिरनी जलप्रपात को देखने के लिए पर्यटक खींचे चले आते हैं. लगभग 300 फीट की ऊंचाई से गिरता झरने को देखने के लिए वॉच टावर भी बनाए गए हैं.
जामताड़ाः लादना डैम में नौका विहार
जामताड़ा का लादना डैम नौका विहार और पहाड़ी नजारों के लिए सैलानियों को आकर्षित करता है. ये जिला पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर की कर्मस्थली भी रहा है. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण यही नंदनकानन में रहकर बिताए. ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद और समाज सुधारक रहे हैं.
कोडरमाः तिलैया डैम
बराकर नदी पर दामोदर घाटी निगम ने जो पहला बांध बनाया, उसका नाम तिलैया डैम है. यह डैम 1200 फीट लंबा और 99 फीट ऊंचा है. यहां का प्राकृतिक नजारा मनमोहक है. इसके साथ ही जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर सतगावां प्रखंड में घोड़सिमर धाम है. यहां करीब एक मीटर की गोलाई वाला चार फीट ऊंचा शिवलिंग है.
खूंटीः भगवान बिरसा मुंडा का गांव
धुर नक्सल प्रभावित जिले खूंटी में नक्सलवाद की जड़ें कमजोर होने के बाद यहां पर्यटन बढ़ने लगा है. यहां पंचघाघ जलप्रपात, पेंरवाघाघ, तजना डैम, बिरसा हिरण पार्क और आम्रेश्वर धाम में पर्यटन की संभावनाएं हैं. यहां फिलहाल आसपास के लोग घूमने आते हैं. आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा का जन्म खूंटी जिले के उलिहातु गांव में हुआ था. उनकी जन्मस्थली को आदिवासी पवित्र मानते हैं.
लातेहारः लोध जलप्रपात
झारखंड की रानी के रूप में प्रसिद्ध नेतरहाट जहां अपनी सुंदरता के लिए विख्यात है, वहीं नेतरहाट आवासीय विद्यालय बेहतरीन शिक्षण संस्थान के रूप में पूरे देश में जाना जाता है. नेतरहाट का मैगनोलिया पॉइंट पर्यटकों का मुख्य आकर्षण है. मैगनोलिया पॉइंट के बारे में यह कहा जाता है कि यहां से एक राजा की बेटी मैगनोलिया ने अपने घोड़े सहित कूदकर जान दे दी थी. मैगनोलिया पॉइंट सन सेट पॉइंट के रूप में भी विख्यात है. इस स्थान से सूर्यास्त का विहंगम नजारा दिखता है. इसके अलावा नेतरहाट का सनराइज भी विश्व प्रसिद्ध है. झारखंड के सबसे ऊंचे जलप्रपात के रूप में विख्यात लातेहार जिले का लोध फॉल प्रकृति का अनुपम उपहार है. सैकड़ों फीट ऊंची पहाड़ी से गिरने वाली झरनों की मौज पर्यटकों का मन मोह लेती है. हर साल यहां लगभग 5 लाख पर्यटक आते हैं.
लोहरदगा: पुरातत्व और प्रकृति का संगम
लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अखिलेश्वर शिव धाम को भगवान शिव की धरती कहा जाता है. यहां के गांवों में शिवलिंग बिखरे पड़े हैं. पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर का निर्माण ओडिशा कला से 11वीं सदी में किया गया था. खखपरता धाम शिव मंदिर में भी इतिहासकारों को प्रमाण मिले हैं कि ये इलाका सदियों पहले शिव आराधना का बड़ा केंद्र था. प्रकृति की सुंदरता की बात करें तो जिले के सेन्हा प्रखंड के नंदगांव की वादियां किसी को भी मोहित कर लेती हैं. दूर-दूर तक फैले जंगल, कोयल नदी का तट और प्रकृति की अनुपम सुंदरता को देखने पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं. कैरो और भंडरा प्रखंड के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित नंदिनी डैम की सुंदरता भी अद्वितीय है.
पाकुड़ः राजा की गुफा
झारखंड के अंतिम छोर पर बसे इस जिले में सैलानियों का मन मोहने के लिए वैसे तो कई स्थान हैं लेकिन प्रकृति की गोद में बसे प्रकृति बिहार पार्क का कहना ही क्या. बांसलोई नदी के किनारे बनाया गया यह पार्क सैलानियों को अपनी ओर मोह लेता है. जिल के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के कांचनगढ़ पहाड़ पर स्थित एक ऐसी गुफा है, जो पर्यटने के नक्शे से ओझल है. अकबर के शासन से पहले इसे पहाड़िया राजाओं ने बनाया था. इस गुफा में पहाड़िया राजा और ग्रामीण भगवान शिव-पार्वती की पूजा करते थे. ग्रीक यात्री मेगास्थनीज ने अपने भ्रमण के क्रम में अपने लेख में इसका उल्लेख किया है.
पलामू: भीम चूल्हा
पलामू के हुसैनाबाद में कोयल नदी के तट पर मौजूद है भीम चूल्हा. इतिहासकार इसे महाभारत काल से जुड़ा बताते हैं. कहा जाता है कि जब पांडव अज्ञातवास में निकले थे तो यहां रुके थे और खाना बनाने के लिए विशाल पत्थरों का चूल्हा बनाया था. भीम चूल्हा के बगल में में उत्तर कोयल नहर परियोजना का मोहम्मदगंज बराज है. सैलानी एक साथ दोनों जगहों का आनंद ले सकते हैं. यहां प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के मौके पर मेला भी लगता है. पलामू टाइगर रिजर्व झारखंड का इकलौता टाइगर रिजर्व है. 1,014 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस रिजर्व को 1973 में स्थापित किया गया था. बेतला राष्ट्रीय उद्यान की वनस्पतियां और जैव विविधता फोटोग्राफी के शौकीन लोगों के शानदार जगह साबित होती है.
रामगढ़ः रजरप्पा का मां छिन्मस्तिका मंदिर
रामगढ़ जिला मुख्यालय से महज 30 किमी दूरी पर पतरातू डैम रिजॉर्ट है. इस डैम का आकर्षक नजारा पर्यटकों को बार-बार आने के लिए विवश करती हैं. जिले के रजरप्पा स्थित मां छिन्मस्तिका मंदिर का विशेष महत्व है. रजरप्पा में दामोदर नद में भैरवी नदी का संगम हुआ है. छिन्मस्तिका मंदिर सिद्ध शक्तिपीठों में गिना जाता है. रामगढ़-रांची रोड स्थित टूटी झरना मंदिर का भी खास महत्व है. 1925 में अंग्रेज रेल लाइन बिछाने के लिए खुदाई कर रहे थे, इसी दौरान मंदिर का पता चला. शिवलिंग के ठीक ऊपर मां गंगा की प्रतिमा है, जिससे आपरूपी जल निकलता रहता है.
साहिबगंज: उधवा पक्षी अभयारण्य
झारखंड के एक मात्र पक्षी अभयारण्य उधवा के पतौड़ा झील में हर साल प्रवासी पक्षी आते हैं. यह झील लगभग 4 एकड़ में फैला हुआ है. जिले के राजमहल की पहाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है. यहां करोड़ों साल पुराने फॉसिल्स हैं. इस पर शोध करने के लिए विदेशों से भी जूलोजिस्ट और जियोलोजिस्ट आते रहते हैं. प्रकृति की गोद में बसा मोती झरना भी अपने आप में सुंदरता का अद्भुत नजारा है.
सिमडेगाः रामरेखा धाम
सिमडेगा जिला मुख्यालय से 26 किमी दूर रामरेखा धाम एक पवित्र स्थल है. मान्यता है कि14 साल के वनवास के दौरान भगवान राम कुछ समय के लिए यहां रुके थे. कार्तिक पूर्णिमा पर यहां हर साल मेला लगता है. सिमडेगा के फुलवा टांगर गांव में स्थित भैरव बाबा पहाड़ी एक गुफा है, जो देखने में किसी मानव चेहरे जैसा प्रतीत होता है. वहीं जिले के बानो ब्लॉक में केतुंगा धाम को बौद्ध काल से जोड़कर देखा जाता है. यहां भगवान बुद्ध की कई मूर्तियां मिली हैं.
सरायकेलाः चांडिल बांध
सरायकेला-खरसावां जिला प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है. स्वर्णरेखा नदी पर बने चांडिल डैम को देखने लोग बड़ी संख्या में आते हैं. पर्यटक यहां नौका विहार का भी आनंद ले सकते हैं. यहीं चांडिल ब्लॉक स्थित दलमा टॉप भी मनोरम है. समुद्र तल से करीब 3000 फीट ऊंचाई पर यह एक रमणीय पर्यटन स्थल है.
इन प्रमुख पर्यटन स्थलों के अलावा भी झारखंड रिति-रिवाजों और खान-पान के लिए मशहूर हैं. चाहे आप भक्ति रस में यकीन रखते हैं या रोमांचक अनुभव पाना चाहते हों, झारखंड का पर्यटन आपको ताउम्र याद रहेगा.