रांची: जंगल, पहाड़, झरना और पठार झारखंड की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. लेकिन यही खूबसूरती कभी-कभी यहां के लोगों के लिए परेशानी का सबब भी बन जाती है. कुछ ऐसी ही कहानी है राजधानी रांची के नामकुम प्रखंड के खरसीदाग डिबराटोली की.
जंगल के बीच बसा है गांव
एक पठार पर बसे इस टोले में करीब 20 घर हैं. जहां के लोग वर्षों से पेयजल की जद्दोजहद से जूझते रहे हैं. साल 2017 से पहले तक जंगल के बीच बसे इस गांव के लोगों के दिन की शुरुआत पानी की खोज से शुरू होती थी. महिलाएं बर्तन लेकर जंगल जंगल जल स्रोत ढूंढती थी. इस काम में जंगली जानवरों का भी खतरा रहता था. लेकिन साल 2016-17 में लाल खटंगा पंचायत के मुखिया रितेश उरांव की पहल से इस गांव में जब बिजली पहुंची तो ग्रामीणों ने सबसे पहले अपने गांव तक पानी पहुंचाने के लिए उपाय तलाशना शुरू किया.
ग्रामीणों की कोशिश रंग लाई
ग्रामीण इस बात पर मंथन करने लगे कि टीले पर बसे अपने गांव से करीब 300 फीट नीचे स्थित प्राकृतिक जल स्रोत यानी डाड़ी को कैसे सुरक्षित किया जाए और कैसे यहां का पानी गांव तक पहुंचाया जाए. ग्रामीणों की इस कोशिश को सबसे पहले लाल खटंगा के मुखिया का समर्थन मिला और उनकी पहल से डाड़ी को कुएं की शक्ल दी गई.
300 फीट की ऊंचाई पर बसे गांव तक पहुंचाया पानी
कुआं बनने के बाद भी सबसे बड़ी चुनौती थी, वहां के पानी को 300 फीट की ऊंचाई पर बसे गांव तक पहुंचाना. इसके लिए ग्रामीणों ने चंदा किया और दो मोटर पंप खरीदे. एक पंप को कुएं के पास लगाया गया और दूसरे पंप को कुआं और गांव के बीच. दोनों पंप को पाइप से जोड़ा गया और गांव के एक छोर पर 3 टंकियां लगाई गई.
कम बारिश के बावजूद इस गांव में धान की रोपनी
फिर क्या था, दो मोटर पंप के सहारे कुएं का पानी ऊंचाई पर बसे गांव की टंकियों में पहुंचने लगा. खास बात है कि कम बारिश के बावजूद इस गांव में धान की रोपनी भी हो रही है. खेतों में पानी की भरपाई यहां के लोग इसी कुएं से कर रहे हैं. यही कुआं इस गांव की जिंदगी है.
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गांव बना मिसाल
यहां के ग्रामीण एक बूंद पानी भी बर्बाद होने नहीं देते. इस गांव में करीब 20 परिवार हैं. यहां के सभी बच्चे आसपास के स्कूलों में पढ़ने भी जाते हैं. यहां के ग्रामीणों की जागरूकता की वजह से इस गांव के हर घर में सरकारी शौचालय भी बन चुके हैं. जंगल क्षेत्र होने के कारण कई जगह कच्चे रास्ते इनके विकास में आड़े जरूर आते हैं, लेकिन यहां के लोगों को इसकी कोई परवाह नहीं. प्रकृति की गोद में बसा यह गांव वैसे गांवों के लिए मिसाल है जो हर काम के लिए सरकार के भरोसे बैठे रहते हैं.