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विजय दिवस: कारगिल लड़ाई में झारखंड के पलामू से ये 2 वीर हुए थे शहीद, कश्मीर में ही हुआ दाह संस्कार - पलामू न्यूज

शहीद प्रबोध महतो की शहादत को 20 साल हो गए हैं. 6 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए कश्मीर के डोडा में प्रबोध महतो शहीद हो गए. उनकी पत्नी का कहना है कि विजय दिवस पर सभी युवा देश की सेवा के लिए आगे आएं.

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Published : Jul 25, 2019, 6:28 PM IST

पलामू: 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते वक्त शहीद हुए झारखंड के पलामू निवासी शहीद प्रबोध महतो का जज्बा समाज के लिए एक मिसाल है. शहीद की पत्नी पुष्पम देवी का कहना है कि प्रबोध महतो ने जाते वक्त सख्त तेवर में कहा था कि पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जवाब देकर जल्द ही लौट आऊंगा. हालांकि वो कभी वापस नहीं आए और देश के लिए शहीद हो गए.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

आज शहीद प्रबोध महतो की शहादत को 20 साल हो गए हैं. शहीद के साथ बिताए पलों के सहारे उनकी पत्नी ने ये एक लंबा अरसा गुजारा है. प्रबोध महतो की शहादत को याद करते हुए उनकी पत्नी पुष्पम देवी की आंखें नम हो जाती है, लेकिन उन आंखों में फक्र भी साफ तौर पर देखा जा सकता है. 6 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए कश्मीर के डोडा में प्रबोध महतो शहीद हो गए. उनकी पत्नी का कहना है कि विजय दिवस पर सभी युवा देश की सेवा के लिए आगे आएं. कारगिल की लड़ाई में पलामू के दो बेटों प्रबोध महतो और युगम्बर दीक्षित ने बलिदान दिया है.

शहीद प्रबोध महतो के ससुर सुबेदार मेजर चंद्रदेव पाल खुद सेना से रिटायर अधिकारी हैं और उन्होंने 1962, 65 और 71 की लड़ाई में भाग लिया है. सेना में बेहतर सेवा के लिए उन्हें राष्ट्रपति तक पुरस्कृत कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि प्रबोध महतो पर सभी को गर्व है. हालांकि वो इस बात से दुखी हैं कि प्रबोध महतो की पत्नी को जमीन देने में सरकार को 17 साल लग गए. वो बताते हैं कि उस वक्त वो भी पठानकोट में ही थे. शहीद के शव का कश्मीर में ही दाह संस्कार किया गया था.

पलामू: 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते वक्त शहीद हुए झारखंड के पलामू निवासी शहीद प्रबोध महतो का जज्बा समाज के लिए एक मिसाल है. शहीद की पत्नी पुष्पम देवी का कहना है कि प्रबोध महतो ने जाते वक्त सख्त तेवर में कहा था कि पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जवाब देकर जल्द ही लौट आऊंगा. हालांकि वो कभी वापस नहीं आए और देश के लिए शहीद हो गए.

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आज शहीद प्रबोध महतो की शहादत को 20 साल हो गए हैं. शहीद के साथ बिताए पलों के सहारे उनकी पत्नी ने ये एक लंबा अरसा गुजारा है. प्रबोध महतो की शहादत को याद करते हुए उनकी पत्नी पुष्पम देवी की आंखें नम हो जाती है, लेकिन उन आंखों में फक्र भी साफ तौर पर देखा जा सकता है. 6 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए कश्मीर के डोडा में प्रबोध महतो शहीद हो गए. उनकी पत्नी का कहना है कि विजय दिवस पर सभी युवा देश की सेवा के लिए आगे आएं. कारगिल की लड़ाई में पलामू के दो बेटों प्रबोध महतो और युगम्बर दीक्षित ने बलिदान दिया है.

शहीद प्रबोध महतो के ससुर सुबेदार मेजर चंद्रदेव पाल खुद सेना से रिटायर अधिकारी हैं और उन्होंने 1962, 65 और 71 की लड़ाई में भाग लिया है. सेना में बेहतर सेवा के लिए उन्हें राष्ट्रपति तक पुरस्कृत कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि प्रबोध महतो पर सभी को गर्व है. हालांकि वो इस बात से दुखी हैं कि प्रबोध महतो की पत्नी को जमीन देने में सरकार को 17 साल लग गए. वो बताते हैं कि उस वक्त वो भी पठानकोट में ही थे. शहीद के शव का कश्मीर में ही दाह संस्कार किया गया था.

Intro:कारगिल विजय दिवस- सपना अधूरी रह गई लेकिन देश का सपना पूरा हुआ सपना मेरी अधूरी रह गई वो बोले थे 15 दिनों में लौट आएंगे लेकिन वे नही लौटे, उनका सपना पूरा नही हुआ लेकिन देश का सपना पूरा हो गया। यह बातें कारगिल शाहिद प्रबोध महतो की पत्नी पुष्मम देवी कहती है। यह बातें बोलते हुए पुष्पम देवी की आंखे नम हो जाती है और बोलती हैं कि जीना है तो देश के लिए जियो। 06 जुलाई 1999 को कश्मीर के डोडा में प्रबोध महतो शहीद हो गए थे। प्रबोध कुमार पठानकोट में तैनात थे और उस दौरान पत्नी और बच्चे भी उनके साथ थे। कारगिल की लड़ाई शुरू होने के साथ ही प्रबोध कुमार की तैनाती कश्मीर के डोडा सेक्टर में हुई थी। उस वक्त को याद करते हुए पुष्मम देवी ने कहती है उनकी सारी बातें उनकी आत्मा में रह गई, वे बहुत सारी बातें बताना चाहती थी । लेकिन आज उन्हें खुशी है की उनके बच्चों ने मुकाम हासिल किया है।


Body:शहीद प्रबोध की पत्नी कहती है विजय दिवस पर सभी युवा देश के सेवा के लिए आगे आएं। वे कहती है युवा पढ़े लिखे और आगे बढ़े लेकिन देश की सेवा जरूर करें। कारगिल की लड़ाई में पलामू के दो बेटों ने बलिदान दिया है। प्रबोध महतो और युगम्बर दीक्षित कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए थे। जिस वक्त प्रबोध महतो शाहिद हुए थे उनके चार छोटे छोटे बच्चे थे। पुष्पम देवी ने अपनी मेहनत के बदौलत चारो बच्चो को मुकाम दिया। बेटा अमेरिका में एक मल्टीनेशनल कंपनी में अधिकारी है जबकि एक बेटी डॉक्टर है। एक बेटी शिक्षक है।


Conclusion:शहीद प्रबोध महतो के ससुर खुद सेना से रिटायर अधिकारी है और उन्होंने 1962, 65 और 71 की लड़ाई में भाग लिया है। सेना में बेहतर सेवा के लिए उन्हें राष्ट्रपति तक पुरस्कृत कर चुके है। वे बोलते है कि प्रबोध महतो पर सभी को गर्व है। लेकिन वे इस बात से दुखी है कि प्रबोध महतो की पत्नी को जमीन देने में सरकार को 17 वर्ष लग गए। वे बताते है कि उस वक्त वे भी पठानकोट में ही थे। शहीद के शव को कश्मीर में ही दाह संस्कार किया गया था।
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