पलामू: 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते वक्त शहीद हुए झारखंड के पलामू निवासी शहीद प्रबोध महतो का जज्बा समाज के लिए एक मिसाल है. शहीद की पत्नी पुष्पम देवी का कहना है कि प्रबोध महतो ने जाते वक्त सख्त तेवर में कहा था कि पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जवाब देकर जल्द ही लौट आऊंगा. हालांकि वो कभी वापस नहीं आए और देश के लिए शहीद हो गए.
आज शहीद प्रबोध महतो की शहादत को 20 साल हो गए हैं. शहीद के साथ बिताए पलों के सहारे उनकी पत्नी ने ये एक लंबा अरसा गुजारा है. प्रबोध महतो की शहादत को याद करते हुए उनकी पत्नी पुष्पम देवी की आंखें नम हो जाती है, लेकिन उन आंखों में फक्र भी साफ तौर पर देखा जा सकता है. 6 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए कश्मीर के डोडा में प्रबोध महतो शहीद हो गए. उनकी पत्नी का कहना है कि विजय दिवस पर सभी युवा देश की सेवा के लिए आगे आएं. कारगिल की लड़ाई में पलामू के दो बेटों प्रबोध महतो और युगम्बर दीक्षित ने बलिदान दिया है.
शहीद प्रबोध महतो के ससुर सुबेदार मेजर चंद्रदेव पाल खुद सेना से रिटायर अधिकारी हैं और उन्होंने 1962, 65 और 71 की लड़ाई में भाग लिया है. सेना में बेहतर सेवा के लिए उन्हें राष्ट्रपति तक पुरस्कृत कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि प्रबोध महतो पर सभी को गर्व है. हालांकि वो इस बात से दुखी हैं कि प्रबोध महतो की पत्नी को जमीन देने में सरकार को 17 साल लग गए. वो बताते हैं कि उस वक्त वो भी पठानकोट में ही थे. शहीद के शव का कश्मीर में ही दाह संस्कार किया गया था.