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रांची: तीन दिवसीय अंतराराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का हुआ समापन, अर्जुन मुंडा ने कहा- आदिवासियों का जीवन ही उनका है दर्शन - अर्जुन मुंडा

रांची के आड्रे हाउस में रविवार को तीन दिवसीय जनजातीय दर्शन पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का समापन किया गया. मुख्य अतिथि के तौर पर अर्जुन मुंडा पहुंचे इस दौरान उन्होंने कहा कि आदिवासियों का जीवन ही उनका दर्शन है.

Three-day international conference concludes in ranchi
तीन दिवसीय अंतराराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस
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Published : Jan 19, 2020, 10:26 PM IST

रांची: आड्रे हाउस में चल रहे तीन दिवसीय जनजातीय दर्शन पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का समापन किया गया. इस मौके पर मुख्य अतिथि केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा उपस्थित रहे. अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अंतिम दिन आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा हुई. इस सत्र में आदिवासियों के अपने समाज में आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में क्या धारणाएं हैं, मृत्यु के बाद क्या होता है? किस प्रकार अंतिम क्रिया की जाती है? इन सब पर विस्तार से विद्वानों ने अपने विचार रखें.

देखें पूरी खबर

इस सेमिनार में बताया गया कि जनजातीय समाज के लोगों में सहचर जीवन व्यवस्था का महत्व है. यह इनके जीवन और दर्शन से जुड़ा हुआ है, इसलिए इससे हटकर कुछ सोचना वे पसंद नहीं करते है. वर्ग और प्रजाति के आधार पर सभी अलग-अलग हैं लेकिन कई अध्ययनों के आधार पर इस तरह की सहचर जैसी समानता सभी जगह के जनजातीय समाज में मिलती है.
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि पहली बार डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान ने इसका आयोजन हुआ है, जिसमें आदिवासी दर्शन पर मंथन किया गया. इससे प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों पर अनुभव का लाभ समाज को मिलेगा.

जनजातीय समाज पूरी प्रकृति को सहचर के रूप में देखता है और यह बहुत बड़ा दर्शन है. उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज प्रकृति का अनुचर नहीं है. इस समाज के लोग सरल स्वभाव के होते हैं. वे ज्यादा बोलते नहीं हैं. इसलिए कभी-कभी इसे उनकी कमजोरी समझा जाता है, जबकि वे प्रकृति के साथ एकांत में रहना ज्यादा पसंद करते हैं. उन्होंने कहा कि जनजातियों का जीवन ही उनका दर्शन है. उन्होंने आजतक कोई कानून नहीं बनाया है. उन्होंने जरुरी बातों को अपने जीवन का अंग बना लिया. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यदि जनजातीय समाज के लोगों के जीवन का आकलन किया जाए तो पता चलता है कि वे उत्पति के साथ जुड़े हुए हैं, इसलिए वे एकांत में रहना ज्यादा पसंद करते हैं.

ये भी देखें- राजधानी में हुई बारिश के बाद बढ़ी ठंड, सोमवार को मौसम साफ होने की संभावना

कल्याण विभाग की सचिव हिमांनी पांडे ने कहा कि 10-15 फरवरी तक नेतरहाट में देशभर के जनजातीय लोक कलाकार जुटेंगे. उन्होंने उम्मीद जताई कि झारखंड के कलाकार भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराएंगे.

रांची: आड्रे हाउस में चल रहे तीन दिवसीय जनजातीय दर्शन पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का समापन किया गया. इस मौके पर मुख्य अतिथि केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा उपस्थित रहे. अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अंतिम दिन आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा हुई. इस सत्र में आदिवासियों के अपने समाज में आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में क्या धारणाएं हैं, मृत्यु के बाद क्या होता है? किस प्रकार अंतिम क्रिया की जाती है? इन सब पर विस्तार से विद्वानों ने अपने विचार रखें.

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इस सेमिनार में बताया गया कि जनजातीय समाज के लोगों में सहचर जीवन व्यवस्था का महत्व है. यह इनके जीवन और दर्शन से जुड़ा हुआ है, इसलिए इससे हटकर कुछ सोचना वे पसंद नहीं करते है. वर्ग और प्रजाति के आधार पर सभी अलग-अलग हैं लेकिन कई अध्ययनों के आधार पर इस तरह की सहचर जैसी समानता सभी जगह के जनजातीय समाज में मिलती है.
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि पहली बार डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान ने इसका आयोजन हुआ है, जिसमें आदिवासी दर्शन पर मंथन किया गया. इससे प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों पर अनुभव का लाभ समाज को मिलेगा.

जनजातीय समाज पूरी प्रकृति को सहचर के रूप में देखता है और यह बहुत बड़ा दर्शन है. उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज प्रकृति का अनुचर नहीं है. इस समाज के लोग सरल स्वभाव के होते हैं. वे ज्यादा बोलते नहीं हैं. इसलिए कभी-कभी इसे उनकी कमजोरी समझा जाता है, जबकि वे प्रकृति के साथ एकांत में रहना ज्यादा पसंद करते हैं. उन्होंने कहा कि जनजातियों का जीवन ही उनका दर्शन है. उन्होंने आजतक कोई कानून नहीं बनाया है. उन्होंने जरुरी बातों को अपने जीवन का अंग बना लिया. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यदि जनजातीय समाज के लोगों के जीवन का आकलन किया जाए तो पता चलता है कि वे उत्पति के साथ जुड़े हुए हैं, इसलिए वे एकांत में रहना ज्यादा पसंद करते हैं.

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कल्याण विभाग की सचिव हिमांनी पांडे ने कहा कि 10-15 फरवरी तक नेतरहाट में देशभर के जनजातीय लोक कलाकार जुटेंगे. उन्होंने उम्मीद जताई कि झारखंड के कलाकार भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराएंगे.

Intro:जनजातीय दर्शन पर आयोजित तीन दिवसीय अंतराराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का हुआ समापन, केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने कहा- आदिवासियों का जीवन ही उनका दर्शन है

रांची
बाइट--अर्जुन मुंडा केंद्रीय मंत्री


आड्रे हाउस रांची में चल रहे तीन दिवसीय जनजातीय दर्शन पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का समापन किया गया इस मौके पर मुख्य अतिथि केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा उपस्थित रहे । अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अन्तिम दिन आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा हुई। इस सत्र में आदिवासियों के अपने समाज में आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में क्या धारणाएँ है। मृत्यु के बाद क्या होता है किस प्रकार अन्तिम क्रिया किया जाता है इन सब पर विस्तार से विद्वानों ने अपने विचार रखे।


जनजातीय समाज के लोगों में सहचर जीवन व्यवस्था का महत्व है। यह इनके जीवन और दर्शन से जुड़ा हुआ है, इसलिए इससे हटकर कुछ सोचना वे पसंद नहीं करते. वर्ग और प्रजाति के आधार पर सभी अलग-अलग हैं, लेकिन कई अध्ययनों के आधार पर इस तरह की सहचर जैसी समानता सभी जगह के जनजातीय समाज में मिलती है. जनजातीय समुदाय की चारित्रिक विशेषता सभी जगह एक ही तरह की पायी जाती है, जिसे वह बदलना नहीं चाहते हैं. यह एक चक्र की तरह है. पुरानी चीजें नए रूप में पुन: प्रस्तुत होती है. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान और कल्याण विभाग द्वारा आड्रे हाउस में आयोजित जनजातीय दर्शन पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फेंस का आज समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने उक्त बातें कही। इस अवसर पर उन्होंने आदि दर्शन स्मारिका का विमोचन भी किया. श्री मुण्डा ने कहा कि पहली बार डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के द्वारा इसका आय़ोजन हुआ है, जिसमें आदिवासी दर्शन पर मंथन किया गया. इससे प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों पर अनुभव का लाभ समाज को मिलेगा.


जनजातीय समाज पूरी प्रकृति को सहचर के रुप में देखता है और यह बहुत बड़ा दर्शन है. उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज प्रकृति का अनुचर नहीं है. इस समाज के लोग सरल स्वभाव के होते हैं। वे ज्यादा बोलते नहीं हैं. इसलिए कभी-कभी इसे उनकी कमजोरी समझा जाता है, जबकि वे प्रकृति के साथ एकांत में रहना ज्यादा पसंद करते हैं. उन्होंने कहा कि जनजातियों का जीवन ही उनका दर्शन है. उन्होंने आजतक कोई कानून नहीं बनाया है. उन्होंने जरुरी बातों को अपने जीवन का अंग बना लिया. जनजातीय समाज ने दस्तावेज बनाना जरुरी नहीं समझा.


केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यदि जनजातीय समाज के लोगों के जीवन का आकलन किया जाए तो पता चलता है कि वे उत्पति के साथ जुड़े हुए हैं, इसलिए वे एकांत में रहना ज्यादा पसंद करते हैं.


Body:कल्याण विभाग की सचिव श्रीमती हिमांडी पांडे ने कहा कि 10-15 फरवरी तक नेतरहाट में देशभर के जनजातीय लोक कलाकार जुटेंगे. उन्होंने उम्मीद जताई कि झारखंड के कलाकार भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराएंगे.
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