रांची: झारखंड के 8 जिलों को साल 2023 तक और पूरे राज्य को 2025 को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन क्या सरकार इस ओर काम करती दिखाई दे रही है. दीवारों पर लिखे स्लोगन, पोस्टर और बैनर से तो कम से कम यही आभास मिलता है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है.झारखंड में टीबी उन्मूलन के लिए ओलंपिक तीरंदाज दीपिका कुमारी को राज्य का ब्रांड अबेंसडर तो बनाया गया है लेकिन राज्य में ड्रग रेजिस्ट टीबी रोगियों के लिए एक भी वार्ड नहीं है. ऐसे में टीबी हारेगा, देश जीतेगा का स्लोगन कितना कारगर है समझने की जरूरत है.
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टीबी स्क्रीनिंग की सुविधा काफी कम
झारखंड को वर्ष 2021 में 1500 स्क्रीनिंग प्रति 01 लाख आबादी का लक्ष्य मिला था. पर इस लक्ष्य का महज 84% ही राज्य में स्क्रीनिंग की गयी है. राज्य में अभी 51हजार 351 टीबी संक्रमित हैं. जिसमें बड़ी संख्या वैसे लोगों की है जो DR-TB यानी ड्रग रेजिस्ट टीबी मरीज हैं. ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती कर इलाज की जरूरत को देखते हुए NMC ने हर मेडिकल कॉलेज में अलग से DR-TB वार्ड और वहां डाक्टरों सहयोगी स्टाफ की नियुक्ति के निर्देश दे रखे हैं. पर राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में ही इसकी व्यवस्था नहीं है.
कमियों को किया जाएगा दूर
सभी कमियों की तरफ जब झारखंड के टीबी अधिकारी डॉ रंजीत प्रसाद का ध्यान आकृष्ट कराया गया तब उन्होंने झारखंड को टीबी मुक्त बनाने के संकल्प को दोहराया और कहा कि केस की पहचान और इलाज को लेकर जो भी कमियां है उसे दूर किया जाएगा. वहीं रिम्स के टीबी और छाती रोग विशेषज्ञ डॉ ब्रजेश मिश्रा ने कहा कि उन्होंने इसके लिए प्रबंधन को कई बार लिखा है. वहीं रिम्स के जनसंपर्क अधिकारी डीके सिन्हा ने कहा कि जल्द ही रिम्स में DR TB वार्ड काम करने लगेगा इसके लिए कोशिश की जा रही है.