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दलबदल का मामला एक न्यायिक प्रक्रिया है, कोर्ट को हस्तक्षेप करने का है पूरा अधिकारः सुभाष कश्यप

दलबदल मामले में बाबूलाल मरांडी को विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर कोर्ट की रोक को संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि यह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है. कोर्ट को पूरा अधिकार है कि वो दलबदल मामले में स्पीकर के फैसले पर कोई भी निर्णय ले.

subhash kashyap statement on babulal
सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ
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Published : Dec 17, 2020, 6:11 PM IST

Updated : Dec 17, 2020, 10:04 PM IST

नई दिल्लीः बाबूलाल मरांडी मामले में झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा है कि यह उनके लिए बड़ी राहत है. उन्होंने कहा कि दलबदल के मामले में न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है.

जानकारी देते संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप

दलबदल मामले में विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर कोर्ट की रोक के बारे में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि आमतौर पर संविधान में प्रावधान है कि विधानसभा की कार्यवाही और कार्य प्रणाली में कोर्ट नहीं हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. लेकिन दलबदल का जो मामला है, उसमें जो स्पीकर को पावर दिए गए हैं वो प्रेसी ज्यूडिशियल पावर हैं. उसमें स्पीकर को क्वेसी ज्यूडिशियल अथॉरिटी माना जाता है. ऐसी स्थिति में उनके सारे निर्णय ज्यूडिशियल रिव्यू के विषय होते हैं. ऐसी परिस्थिति में यह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है कि वो स्पीकर के फैसलों पर रोक लगा सके, बदल सके.

उन्होंने कहा कि दलबदल का मामला विधानसभा की कार्यवाही में नहीं आता है. यह एक न्यायिक प्रक्रिया है. इसलिए इसमें कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है. कोर्ट के सवालों का विधानसभा अध्यक्ष को जवाब देना होगा. अगर स्पीकर जवाब नहीं देते हैं तो वो अदालत की अवमानना माना जाएगा.

बता दें कि दलबदल मामले में झारखंड विधानसभा अध्यक्ष की ओर से जारी नोटिस को बाबूलाल मरांडी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. जिस पर झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने अपना फैसला देते हुए विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर तत्काल अंतरिम रोक लगा दी है. साथ ही दोनों पक्षों की सहमति से मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को तय की गई है. इस बीच विधानसभा की ओर से हाई कोर्ट में जवाब पेश करने को कहा है.

नई दिल्लीः बाबूलाल मरांडी मामले में झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा है कि यह उनके लिए बड़ी राहत है. उन्होंने कहा कि दलबदल के मामले में न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है.

जानकारी देते संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप

दलबदल मामले में विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर कोर्ट की रोक के बारे में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि आमतौर पर संविधान में प्रावधान है कि विधानसभा की कार्यवाही और कार्य प्रणाली में कोर्ट नहीं हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. लेकिन दलबदल का जो मामला है, उसमें जो स्पीकर को पावर दिए गए हैं वो प्रेसी ज्यूडिशियल पावर हैं. उसमें स्पीकर को क्वेसी ज्यूडिशियल अथॉरिटी माना जाता है. ऐसी स्थिति में उनके सारे निर्णय ज्यूडिशियल रिव्यू के विषय होते हैं. ऐसी परिस्थिति में यह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है कि वो स्पीकर के फैसलों पर रोक लगा सके, बदल सके.

उन्होंने कहा कि दलबदल का मामला विधानसभा की कार्यवाही में नहीं आता है. यह एक न्यायिक प्रक्रिया है. इसलिए इसमें कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है. कोर्ट के सवालों का विधानसभा अध्यक्ष को जवाब देना होगा. अगर स्पीकर जवाब नहीं देते हैं तो वो अदालत की अवमानना माना जाएगा.

बता दें कि दलबदल मामले में झारखंड विधानसभा अध्यक्ष की ओर से जारी नोटिस को बाबूलाल मरांडी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. जिस पर झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने अपना फैसला देते हुए विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस पर तत्काल अंतरिम रोक लगा दी है. साथ ही दोनों पक्षों की सहमति से मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को तय की गई है. इस बीच विधानसभा की ओर से हाई कोर्ट में जवाब पेश करने को कहा है.

Last Updated : Dec 17, 2020, 10:04 PM IST
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