रांची: कहते हैं करें योग रहे निरोग, लेकिन जब लोगों को स्वस्थ रखने के लिए योग का राजकीय संस्थान ही उपेक्षा का शिकार हो जाए तो सवाल उठना लाजिमी है. कुछ ऐसा ही हाल रांची के योग संस्थान का है. जो लोकार्पण के 6 सालों के अंदर ही जर्जर हो गया है.
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2015 में हुआ था लोकार्पण
साल 2015 में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने विश्व योग दिवस यानी 21 जून को राज्य वासियों को योग के क्षेत्र में राज्य योग केंद्र का तोहफा दिया था. तब की सरकार ने इसे योग और प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में उन्नत संस्थान बनाने की बात कही थी. इसके लिए परिसर में मेडिसिनल पौधों का एक बाग और एक रिसर्च सेंटर विकसित करने की बात कही गई थी. लेकिन घोषणाओं के उलट महज 6 साल के अंदर राज्य योग संस्थान बदहाल हो गया है. षट्कर्म, हाइड्रो थेरेपी, मड थेरेपी जैसी इलाज की प्राकृतिक पद्धतियां बंद है तो जिन कमरों में इन इलाज पद्धतियों से रोगियों का इलाज होता था उन कमरों में सेनेटरी सामानों का स्टोर रूम बना दिया गया है. एक कमरे में तो बाथरूम का फ़्लैश,कोमोड और टॉयलेट्स सीट्स रखा हुआ है.
योग संस्थान पर राजनीति
रांची के जिस इलाके में राज्य योग केंद्र है उस क्षेत्र के बीजेपी विधायक सीपी सिंह राज्य योग संस्थान की खस्ताहाल स्थिति के लिए सीधा आरोप राज्य सरकार की नीतियों और तुष्टिकरण की राजनीति को मानते हैं. सीपी सिंह ने कहा कि एक धर्म विशेष के लोगों को योग से दिक्कत होता है. इसलिए सरकार का ध्यान योग और राज्य योग केंद्र पर नहीं है.
षट्कर्म सहित सभी नेचुरोपैथी ट्रीटमेंट बंद
वर्ष 2005 में शुरू हुए राज्य योग केंद्र में एक समय में शरीर को हानिकारक तत्वों से मुक्त करने की पद्धति षट्कर्म भी की जाती थी. इसके साथ ही स्किन सहित कई रोगों में लाभकारी मड थैरेपी, हाइड्रो थेरेपी भी किया जाता था लेकिन अब सब बंद पड़ा है. राज्य योग केंद्र की खस्ताहाल स्थिति और नैचुरोपैथी से इलाज बंद होने, संसाधनों के बर्बाद होने, क्लीनजिंग वेल पर जंगल उग आने सहित सभी सवालों का आयुष निदेशक डॉ फजलुस समी का एक ही जवाब होता है कि जल्द राज्य योग केंद्र की गौरव लौटाई जाएगी. यहां पंचकर्म से इलाज भी होगा और योगाभ्यास भी. उन्होंने कहा कि अभी भवन का रेनोवेशन का काम चल रहा है पर छह साल में ही एक नए लोकार्पित संस्थान को बड़े पैमाने पर रेनोवेशन की जरूरत क्यों पड़ गयी इसका भी जवाब आयुष निदेशक के पास नहीं है.