रांची: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर बड़े सुपर स्पेशलिटी अस्पताल तक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने में अगर किसी की अहम भूमिका होती है तो वह है नर्सिंग स्टाफ की. कोविड-19 के इस दौर में नर्सें अपनी परवाह किए बगैर मरीजों की सेवा में जुटी हैं. लेकिन राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में नर्सों की घोर कमी है.
रिम्स के चिकित्सकों ने बताया कि अमूमन आईसीयू में एक से दो बेड पर एक नर्स की आवश्यकता होती है क्योंकि आईसीयू में अति गंभीर मरीजों का इलाज होता है, वहीं सामान्य वार्ड में 6 से 7 मरीज पर एक नर्स की आवश्यकता होती है. रिम्स में फिलहाल करीब 350 नर्सें काम कर रही हैं, जबकि 2000 से ज्यादा बेड वाले इस अस्पताल में लगभग एक हजार नर्सों की आवश्यकता है.
'नर्सों की कमी से परेशानी'
रिम्स की हेड नर्स राम रेखा देवी ने कहा कि अस्पताल में नर्सों की कमी की वजह से दिक्कतों का सामना तो करना ही पड़ रहा है क्योंकि कोविड-19 के कारण आए इस संकट में कई नर्सों को सामान्य मरीजों की देखभाल में भेजने से पहले कोरोनटाइन सेंटर में 14 दिनों तक रखा जाता है, जिस वजह से मैन पावर की दिक्कतों से आए दिन जूझना पड़ता है. वहीं, वरिष्ठ चिकित्सक डॉ निशित एक्का ने कहा कि बहाली को लेकर प्रशासनिक स्तर पर प्रक्रिया जारी है जल्द ही रिम्स नर्सिंग कॉलेज से पासआउट छात्राओं को रिम्स में ही नियुक्त कर लिया जाएगा.
निजी अस्पतालों में भी नर्सों की कमी
सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी नर्सिंग होम्स में भी नर्सों की कमी की बात सामने आ रही है. ईटीवी भारत की पड़ताल में ये जानकारी मिली है कि कुछ नर्सें नौकरी छोड़कर गांव जा चुकी हैं तो कुछ नर्सों को लॉकडाउन के दौरान नौकरी से निकाल दिया गया. हालांकि, इस सच्चाई को कोई भी निजी अस्पताल प्रबंधन स्वीकार नहीं कर रहा है. प्राइवेट हॉस्पिटल एसोसिएशन की मानें तो इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए फिलहाल कोई उपाय नहीं है, लेकिन अगर नर्सों की रहने की व्यवस्था अस्पताल में ही बेहतर तरीके से की जाए और अनुभव के अनुसार उनके वेतन पर विचार किया जाए तो नर्सों की कमी की स्थिति से बचा जा सकता है.
'कोरोना के डर से नौकरी छोड़ रही नर्स'
इस मामले पर प्राइवेट हॉस्पिटल एसोसिएशन के अध्यक्ष जोगेश गंभीर ने कहा कि कोविड 19 की वजह से प्राइवेट अस्पतालों में भी नर्सों की कमी लगातार हो रही है, जिनके घर में दो लोग कमाने वाले हैं वैसे घरों की नर्स हॉस्पिटल का काम डर से छोड़ रही हैं. नर्सों के घर वालों की तरफ से लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि अस्पताल में संक्रमित मरीजों का इलाज करते-करते कहीं घर वाले भी संक्रमित न हो जाएं.
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नर्सों को 12 से 14 हजार मानदेय
राज्य में करीब 4660 सहायक नर्स यानी एएनएम अनुबंध पर काम कर रही हैं, जिन्हें 12 से 14 हजार रुपए मानदेय दिया जाता है. इन्हें अपनी सेवाएं देते हुए 10 साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन इन्हें अब तक स्थाई नहीं किया गया है. साल 2019 में 1900 पदों के लिए नियुक्ति निकाली भी गई थी, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया. एएनएम जीएनएम कर्मचारी संघ की सचिव वीणा देवी ने कहा कि एएनएम शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के सुदूर इलाकों में जाकर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने का काम करती हैं. खासकर इस कोविड-19 के संकट में पर्वत पहाड़ और जंगलों के बीच घंटों तक पैदल चल लोगों को स्वास्थ्य लाभ देती हैं उसके बावजूद भी राज्य सरकार राज्य में कार्यरत 4660 एएनएम और 550 जीएनएम को लेकर कोई सुध नहीं ले रही है
'जल्द भरी जाएंगी रिक्तियां'
नर्सों की कमी को लेकर स्वास्थ्य मंत्री ने भी माना कि नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की स्वास्थ्य व्यवस्था में काफी कमी है. इसको लेकर राज्य सरकार प्रयासरत है और स्वास्थ विभाग के अधिकारियों को ये दिशा-निर्देश दिए गए हैं कि आउटसोर्सिंग के माध्यम से भी अगर रिक्तियां भरी जा सकती हैं तो इस पर जल्द से जल्द काम शुरू किया जाए.