रांचीः कोरोना काल में खून के रिश्ते भी तार-तार होते दिख रहे हैं. एक तरफ अपनों ने संक्रमित सदस्य से मुंह फेर लिया तो कई लोगों ने अपनों का शव जलाने से इनकार कर दिया. खौफ के बावजूद कुछ लोगों ने जान जोखिम में डालकर संक्रमित परिवारों की मदद की. ईटीवी भारत आपको मिलवा रहा है एक ऐसे ही युवा शिव तिवारी से, जो किसी फरिश्ते से कम नहीं है.
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शिव सेलेब्रेटी नहीं और ना ही धन्नासेठ
कोरोना की दूसरे लहर में 30-35 से ज्यादा घरों के दरवाजे तक दवा, फल, सब्जी पहुंचाने वाले शिव की दिनचर्या सुबह 6 बजे ही किसी जरूरतमंद की फोन की घंटी से शुरू होती है. किसी बुजुर्ग महिला को दवा पहुंचाना हो या फिर किसी को डॉक्टर की पर्ची, शिव ने इस कोरोना काल में जनसेवा को ही दिनचर्या का हिस्सा बना लिया है.
बिना डरे, बिना सहमे, हर दिन पीड़ित परिवारों को सुबह-सुबह फोन कर उनकी जरूरतों को पूछना और उसे पूरा करना इनकी दिनचर्या का हिस्सा बना रहा. अपने मोहल्ले के सभी संक्रमित परिवारों तक दवा, फल और सब्जियां पहुंचाने वाला शिव ना कोई सेलेब्रेटी है और ना ही अमीर. कुछ लोग को जब इन्होंने जरूरत का सामान पहुंचाया तो किसी ने उसकी राशि दे दी और जो दुख के समय नहीं दे पाया उसके लिए यह कि जब ठीक हो जाइएगा तब दे दीजिएगा पैसा.
कैसे समाज सेवा की मिली प्रेरणा
शिव बताते हैं कि पिछले वर्ष अप्रैल महीने में उनके परिवार के 9 लोग कोरोना संक्रमित हो गए. कुछ मित्रों ने उनकी मदद की थी, तभी उसने मन मे ठान ली थी कि अगर वह इस महामारी से बच निकला तो वह समाज की मदद करेगा.
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मेरे बेटे से अच्छा शिव है- राजलक्ष्मी
शिव की सेवा को लेकर कोकर की बुजुर्ग महिला के आंखों में आंसू आ जाता है. जब शिव उनकी चौखट पर दवा लेकर पहुंचता है, वो आंखों में आंसू लिए इतना ही बोल पाती है कि मेरे बेटे से अच्छा शिव है. राजलक्ष्मी कोकर के एक अपार्टमेंट में रहती हैं. पति के निधन के बाद घर में अकेली रह गईं. राजलक्ष्मी के बेटे विदेश में रहते हैं. ऐसे में जब विपदा पड़ी तो शिव ने बेटे से भी बढ़कर राजलक्ष्मी का ख्याल रखा. राजलक्ष्मी कहती है ये मेरे बेटे से भी अच्छा है. राजलक्ष्मी शिव को अपने बेटे से अच्छा बताती हैं. वो अकेली नहीं हैं, भाभा नगर के राकेश श्रीवास्तव कहते हैं कि शिव फरिश्ता है. पहले ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की, फिर जब घर के सभी लोग संक्रमित हो गए और पड़ोस के लोगों ने साथ छोड़ दिया तो शिव आगे आया.