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बालू की किल्लत ने रोका विकास कार्य, आम लोगों के अलावा मजदूरों की बढ़ी परेशानी

झारखंड में बालू खनन को लेकर अव्यवस्था के कारण व्यवासायी से लेकर आम आदमी तक परेशान हैं. इन सब के बीच फायदा हो रही है खनन माफियाओं का. बालू खनन में माफिया राज हावी होने के कारण निर्माण कार्य भी खासा प्रभावित हुआ है.

Sand shortage has affected development work in Jharkhand
Sand shortage has affected development work in Jharkhand
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Published : Jun 8, 2022, 5:08 PM IST

Updated : Jun 8, 2022, 5:26 PM IST

रांची: राज्य में बालू को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. सालाना करीब 300 करोड़ राजस्व देने वाले इस सेक्टर पर माफिया राज कायम है. यही वजह है कि हर दिन बालू के दाम मनमाने ढंग से बढ़ रहे हैं. किल्लत के बीच मनमाने दामों पर बिक रहे बालू के कारण निर्माण कार्य खासा प्रभावित हुआ है. सरकारी निर्माण कार्य के साथ-साथ आम लोग जो घर बनाने के लिए बालू खरीदना चाह रहे हैं उन्हें भी परेशानी हो रही है.


बालू की किल्लत का सरकारी निर्माण कार्य पर भी पड़ा असर: बालू की इस किल्लत का असर सरकारी निर्माण कार्य पर भी पड़ा है. जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे गरीबों के आसियाने के निर्माण बाधित हो गए हैं. विभागीय लक्ष्य के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 3,43,860 आवासों को बनाना है. इसके अलावा बालू संकट के कारण लाइट हाउस प्रोजेक्ट के साथ साथ स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भी प्रभावित हुआ है. सरकारी आंकड़ों में राज्यभर में मात्र 46 बालू घाट वैध रूप से चल रहे हैं. जबकि राज्य में अनाधिकृत रूप से इनकी संख्या 400 से ज्यादा है.

ये भी पढ़ें: खूंटी में अवैध बालू खनन के खिलाफ ग्रामीण करेंगे आंदोलन, जानिए क्यों?

अनाधिकृत रूप से हो रहे बालू खनन में दलाल और माफिया की मिलीभगत का खामियाजा आम जनता उठा रही है. हालत यह है कि 90cft का एक ट्रैक्टर बालू 7 से 8 हजार रुपए तक में मिल रहा है. सरकार ने इसपर रोकथाम लगाने के लिए सभी बालू घाटों का जिले के माध्यम से टेंडर निकालकर नीलाम करने का फैसला लिया. मगर पंचायत चुनाव आचार संहिता के कारण सरकार की यह मांग भी निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव समाप्त होने तक रोक दी थी. अब पंचायत चुनाव खत्म हो चुके हैं और टेंडर की प्रक्रिया बढ़ाई जा सकती है. मगर विभाग इस दिशा में फिलहाल कोई कदम नहीं उठा रहा है. इन सबके बीच नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनबीटी हर वर्ष 10 जून से 15 अक्टूबर तक बरसात के कारण बालू खनन या उठाव पर पाबंदी लगाता रहा है ऐसे में बालू का संकट अभी फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा है.

देखें वीडियो
बालू संकट से बेरोजगार हुए मजदूर: निर्माण क्षेत्र सर्वाधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र है. झारखंड में करीब दस लाख दैनिक मजदूर और कारीगर इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. बालू संकट की वजह से एक के बाद एक बंद हो रहे प्रोजेक्ट का असर मजदूरों पर भी पड़ा है. काम बंद होने से मजदूरों को खाली हाथ घर लौटना पड़ रहा है. लोहरदगा से प्रतिदिन रांची इस उम्मीद से हजारों मजदूर आते हैं कि उन्हें जरूर काम मिलेगा. मगर उनकी उम्मीद रांची में सड़क किनारे घंटों खड़े रहने के बाद टूट जाती है. बिहार के वैशाली से रांची में एक निजी घर को बनाने के लिए आये कौशल दास अपने सभी 21 साथियों के साथ लौटने को मजबूर हैं.

घर के मालिक अजय वर्मा ने बालू नहीं मिलने की वजह से काम बंद करने की बात कहकर मजदूरों को वापस जाने को कह दिया है. इन सबके बीच बालू को लेकर मचे हाहाकार पर बालू सप्लाई एसोसिएशन ने राज्य और केन्द्र सरकार को दोषी बताते हुए आगामी 10 जून को राजभवन के समक्ष धरना पर बैठने की घोषणा की है. बालू एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मो. शहनवाज ने कहा कि टेंडर समय से नहीं होने के कारण बालू घाट से उठाव नहीं हो रहा है. सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ एसोसिएशन 13 जून को राज्यभर में आंदोलन करेगा. इधर झारखंड चैम्बर ऑफ कामर्स ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए बालू को लेकर हो रही परेशानी को दूर करने की मांग सरकार से की है.

विभाग की चुप्पी के बीच ऑनलाइन बुकिंग भी हो चुकी है फेल: राज्य सरकार ने बालू घर तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन बुकिंग व्यवस्था की. लेकिन अब वह भी फेल हो चुकी है. विभाग के उदासीन रवैया के कारण राज्य में बालू का अवैध कारोबार जोरों पर चल रहा है. बालू घाट से लेकर बाजारों तक बालू माफिया सक्रिय हैं. इस काम में पुलिस प्रशासन के अलावा कई सफेदपोश भी शामिल हैं. जिसके कारण बालू घाटों से अवैध खनन कर बालू माफिया मनमाने दामों में बाजारों में बालू बेचे जा रहे हैं. पुलिस प्रशासन और बालू माफिया के मिलीभगत से चल रहे इस धंधे में कई सफेदपोश भी शामिल हैं. जिनकी पहुंच सत्ता की गलियारों तक है जिसके कारण सरकार की सारी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह जाती है. जिसपर विभाग के कोई अधिकारी जुबान खोलना नहीं चाहते.

बहरहाल बालू को लेकर खेल जारी है. माफिया सक्रिय हैं और जनता त्रस्त है. ऐसे में सरकारी स्तर पर जबतक ईमानदारी से पहल नहीं की जाएगी तबतक बालू माफिया का राज बालू घाटों पर बनी रहेगी और जनता महंगे दरों पर बालू खरीदने को विवश होती रहेगी.

रांची: राज्य में बालू को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. सालाना करीब 300 करोड़ राजस्व देने वाले इस सेक्टर पर माफिया राज कायम है. यही वजह है कि हर दिन बालू के दाम मनमाने ढंग से बढ़ रहे हैं. किल्लत के बीच मनमाने दामों पर बिक रहे बालू के कारण निर्माण कार्य खासा प्रभावित हुआ है. सरकारी निर्माण कार्य के साथ-साथ आम लोग जो घर बनाने के लिए बालू खरीदना चाह रहे हैं उन्हें भी परेशानी हो रही है.


बालू की किल्लत का सरकारी निर्माण कार्य पर भी पड़ा असर: बालू की इस किल्लत का असर सरकारी निर्माण कार्य पर भी पड़ा है. जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे गरीबों के आसियाने के निर्माण बाधित हो गए हैं. विभागीय लक्ष्य के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 3,43,860 आवासों को बनाना है. इसके अलावा बालू संकट के कारण लाइट हाउस प्रोजेक्ट के साथ साथ स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भी प्रभावित हुआ है. सरकारी आंकड़ों में राज्यभर में मात्र 46 बालू घाट वैध रूप से चल रहे हैं. जबकि राज्य में अनाधिकृत रूप से इनकी संख्या 400 से ज्यादा है.

ये भी पढ़ें: खूंटी में अवैध बालू खनन के खिलाफ ग्रामीण करेंगे आंदोलन, जानिए क्यों?

अनाधिकृत रूप से हो रहे बालू खनन में दलाल और माफिया की मिलीभगत का खामियाजा आम जनता उठा रही है. हालत यह है कि 90cft का एक ट्रैक्टर बालू 7 से 8 हजार रुपए तक में मिल रहा है. सरकार ने इसपर रोकथाम लगाने के लिए सभी बालू घाटों का जिले के माध्यम से टेंडर निकालकर नीलाम करने का फैसला लिया. मगर पंचायत चुनाव आचार संहिता के कारण सरकार की यह मांग भी निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव समाप्त होने तक रोक दी थी. अब पंचायत चुनाव खत्म हो चुके हैं और टेंडर की प्रक्रिया बढ़ाई जा सकती है. मगर विभाग इस दिशा में फिलहाल कोई कदम नहीं उठा रहा है. इन सबके बीच नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनबीटी हर वर्ष 10 जून से 15 अक्टूबर तक बरसात के कारण बालू खनन या उठाव पर पाबंदी लगाता रहा है ऐसे में बालू का संकट अभी फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा है.

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बालू संकट से बेरोजगार हुए मजदूर: निर्माण क्षेत्र सर्वाधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र है. झारखंड में करीब दस लाख दैनिक मजदूर और कारीगर इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. बालू संकट की वजह से एक के बाद एक बंद हो रहे प्रोजेक्ट का असर मजदूरों पर भी पड़ा है. काम बंद होने से मजदूरों को खाली हाथ घर लौटना पड़ रहा है. लोहरदगा से प्रतिदिन रांची इस उम्मीद से हजारों मजदूर आते हैं कि उन्हें जरूर काम मिलेगा. मगर उनकी उम्मीद रांची में सड़क किनारे घंटों खड़े रहने के बाद टूट जाती है. बिहार के वैशाली से रांची में एक निजी घर को बनाने के लिए आये कौशल दास अपने सभी 21 साथियों के साथ लौटने को मजबूर हैं.

घर के मालिक अजय वर्मा ने बालू नहीं मिलने की वजह से काम बंद करने की बात कहकर मजदूरों को वापस जाने को कह दिया है. इन सबके बीच बालू को लेकर मचे हाहाकार पर बालू सप्लाई एसोसिएशन ने राज्य और केन्द्र सरकार को दोषी बताते हुए आगामी 10 जून को राजभवन के समक्ष धरना पर बैठने की घोषणा की है. बालू एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मो. शहनवाज ने कहा कि टेंडर समय से नहीं होने के कारण बालू घाट से उठाव नहीं हो रहा है. सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ एसोसिएशन 13 जून को राज्यभर में आंदोलन करेगा. इधर झारखंड चैम्बर ऑफ कामर्स ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए बालू को लेकर हो रही परेशानी को दूर करने की मांग सरकार से की है.

विभाग की चुप्पी के बीच ऑनलाइन बुकिंग भी हो चुकी है फेल: राज्य सरकार ने बालू घर तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन बुकिंग व्यवस्था की. लेकिन अब वह भी फेल हो चुकी है. विभाग के उदासीन रवैया के कारण राज्य में बालू का अवैध कारोबार जोरों पर चल रहा है. बालू घाट से लेकर बाजारों तक बालू माफिया सक्रिय हैं. इस काम में पुलिस प्रशासन के अलावा कई सफेदपोश भी शामिल हैं. जिसके कारण बालू घाटों से अवैध खनन कर बालू माफिया मनमाने दामों में बाजारों में बालू बेचे जा रहे हैं. पुलिस प्रशासन और बालू माफिया के मिलीभगत से चल रहे इस धंधे में कई सफेदपोश भी शामिल हैं. जिनकी पहुंच सत्ता की गलियारों तक है जिसके कारण सरकार की सारी व्यवस्थाएं धरी की धरी रह जाती है. जिसपर विभाग के कोई अधिकारी जुबान खोलना नहीं चाहते.

बहरहाल बालू को लेकर खेल जारी है. माफिया सक्रिय हैं और जनता त्रस्त है. ऐसे में सरकारी स्तर पर जबतक ईमानदारी से पहल नहीं की जाएगी तबतक बालू माफिया का राज बालू घाटों पर बनी रहेगी और जनता महंगे दरों पर बालू खरीदने को विवश होती रहेगी.

Last Updated : Jun 8, 2022, 5:26 PM IST
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