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संविधान निर्माण में झारखंड के चार विभूतियों की भूमिका, क्यों खुद को प्रधान सेवक कहते हैं पीएम मोदी, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

झारखंड के चार विभूतियों जयपाल सिंह मुंडा, बाबू राम नारायण, बोनीफास लकड़ा और के.बी सहाय की संविधान निर्माण में अहम भूमिका रही. इनकी दूरदर्शिता के कारण ही संविधान में पांचवी अनुसूची में 3 बातों पर फोकस किया गया था जिसमें सुरक्षा, संरक्षण और विकास के क्षेत्र में स्वशासन के लिए संविधान में ग्राम सभा को मान्यता दी गई. पढ़ें पूरी खबर

Role of Jharkhand in constitution making
झारखंड के चार विभूति
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Published : Nov 29, 2020, 4:28 PM IST

रांचीः देश का सबसे बड़ा विधान 'संविधान' ही है. संविधान दिवस मनाने की परंपरा डॉ भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती मौके पर 26 नवंबर 2015 से शुरू हुई. इसमें कोई शक नहीं कि 'संविधान' हर भारतीय को समान अधिकार देता है लेकिन झारखंड के लोगों को यह जानना चाहिए कि संविधान सभा में झारखंड के चार विभूति ना होते तो शायद आदिवासी बहुल झारखंड की तस्वीर कुछ और होती.

मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की भूमिका

खूंटी में जन्मे, लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े और ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले जयपाल सिंह मुंडा पहले शख्स थे जिन्होंने आदिवासियों के हक की बात की. संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा का भाषण हमेशा याद किया जाएगा. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि "पिछले 6 हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं. अब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए ." उन्होंने ही कहा था कि "हम आदिवासियों में जाति, रंग, अमीरी गरीबी या धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाता, आपको हमसे लोकतंत्र सीखना चाहिए, हमको किसी से सीखने की जरूरत नहीं ."

Role of Jharkhand in constitution making
जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा की पहल पर ही देश के नेताओं ने आदिवासी समाज के दुख को समझा और 400 आदिवासी समूह को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया. इसी के बाद आदिवासी समुदाय के लिए विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में 7.5 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित किया जा सका. जयपाल सिंह मुंडा ने 1938 में आदिवासी महासभा की स्थापना की थी. इन्हीं के नेतृत्व में 1928 में एमस्टरडम ओलंपिक में भारत ने हॉकी का गोल्ड मेडल जीता था.

बाबू राम नारायण के पीएम मोदी भी हैं मुरीद

संविधान सभा में झारखंड की आवाज बुलंद करने वाले छोटानागपुर के केसरी बाबू राम नारायण सिंह को हमेशा याद किया जाएगा. चतरा में जन्मे राम नारायण सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और 1931 से 1947 तक 8 बार जेल में रहे. उनकी पहल पर ही 1940 में रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था. उन्होंने सबसे पहले संसद में छोटानागपुर में अलग झारखंड की मांग उठाई थी. राम नारायण सिंह ने संविधान सभा में एक विधान, एक निधान और एक संविधान की बात कही थी.

Role of Jharkhand in constitution making
बाबू राम नारायण

ये भी पढ़ें-एक देश, एक चुनाव : क्या कहता है संविधान, कब छिड़ी थी बहस

संविधान सभा में उन्होंने कहा था कि देश के प्रधानमंत्री को प्रधान सेवक और नौकरशाह को लोक सेवक के रूप में जाना जाना चाहिए. कांग्रेस की विचारधारा से अलग होकर उन्होंने 1952 में हजारीबाग पश्चिम संसदीय क्षेत्र से बतौर निर्दलीय मैदान में उतरकर कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था. पीएम मोदी अपने भाषणों में अक्सर राम नारायण सिंह का जिक्र करते हैं. उन्हीं से प्रेरणा लेकर खुद को जनता के बीच प्रधानमंत्री नहीं बल्कि प्रधान सेवक के रूप में पेश करते हैं.

बोनीफास लकड़ा ने जनजातीय परामर्शदात्री परिषद की बताई थी अहमियत

संविधान सभा के सदस्य रहे बोनीफास लकड़ा का जन्म लोहरदगा में हुआ था. 1937 में रांची से बतौर वकील आदिवासी और पिछड़े की पैरवी करते रहे. इसी साल रांची सामान्य सीट से कैथोलिक सभा के उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए. बोनीफास लकड़ा ने छोटानागपुर और संथाल परगना के आदिवासियों के लिए सुरक्षा प्रावधानों को संविधान में शामिल करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्र को मिलाकर स्वायत्त क्षेत्र बनाने, केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिलाने, सिर्फ कल्याण मंत्री की नियुक्ति और जनजातीय परामर्श दात्री परिषद यानी टीएसी के गठन पर जोर दिया था. वह जयपाल सिंह मुंडा के आदिवासी महासभा के संस्थापक सदस्य भी थे. अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर 1966 से 1968 तक जेल में भी रहे.

Role of Jharkhand in constitution making
बोनीफास लकड़ा

के.बी सहाय की देन है जमींदारी प्रथा उन्मूलन कानून

कृष्ण बल्लभ सहाय का जन्म पटना में 1898 में हुआ था लेकिन झारखंड की धरती उनकी कर्मभूमि रही. 1952 में गिरिडीह से पहली बार बिहार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए. 1963 में बिहार के चौथे मुख्यमंत्री बने थे और 3 जून 1974 को हजारीबाग में निधन हुआ था. केबी सहाय को जमींदारी उन्मूलन का सूत्रधार माना जाता है. आजादी के बाद अंतरिम सरकार में पता राजस्व मंत्री रहते हुए उनकी पहल से भी जमीदारी प्रथा उन्मूलन कानून बना था. हाई कोर्ट से यह कानून निरस्त होने पर जवाहरलाल नेहरू को पहला संविधान संशोधन विधायक लाना पड़ा था. स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अपने पूरे राजनीतिक जीवन में केबी सहाय जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे. बिहार के सभी राजघराने और जमींदार परिवार उनकी राजनीति खत्म करने के लिए एड़ी चोटी लगाते रहे. उनका सीधा राजनीतिक टकराव रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह से कई बार हुआ. उन पर कई बार हमले भी हुए. अंत में 2 जून 1974 को पटना से हजारीबाग लौटते वक्त का दुर्घटना में उनकी मौत हो गई. आज भी उस रहस्य पर से पर्दा नहीं उठा है.

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के.बी सहाय

जानकारी के मुताबिक 2 साल 11 महीना और 17 दिन के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार किया गया था. संविधान सभा में देश भर से 299 चयनित सदस्य बनाए गए थे. 24 जनवरी 1950 को कुल 284 सदस्यों ने वास्तविक रूप में संविधान पर हस्ताक्षर किए थे. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था. संविधान के कारण ही आज जाति, धर्म और अलग-अलग संस्कृतियों के बावजूद भारत एक है.

रांचीः देश का सबसे बड़ा विधान 'संविधान' ही है. संविधान दिवस मनाने की परंपरा डॉ भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती मौके पर 26 नवंबर 2015 से शुरू हुई. इसमें कोई शक नहीं कि 'संविधान' हर भारतीय को समान अधिकार देता है लेकिन झारखंड के लोगों को यह जानना चाहिए कि संविधान सभा में झारखंड के चार विभूति ना होते तो शायद आदिवासी बहुल झारखंड की तस्वीर कुछ और होती.

मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की भूमिका

खूंटी में जन्मे, लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े और ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले जयपाल सिंह मुंडा पहले शख्स थे जिन्होंने आदिवासियों के हक की बात की. संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा का भाषण हमेशा याद किया जाएगा. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि "पिछले 6 हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं. अब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए ." उन्होंने ही कहा था कि "हम आदिवासियों में जाति, रंग, अमीरी गरीबी या धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाता, आपको हमसे लोकतंत्र सीखना चाहिए, हमको किसी से सीखने की जरूरत नहीं ."

Role of Jharkhand in constitution making
जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा की पहल पर ही देश के नेताओं ने आदिवासी समाज के दुख को समझा और 400 आदिवासी समूह को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया. इसी के बाद आदिवासी समुदाय के लिए विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में 7.5 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित किया जा सका. जयपाल सिंह मुंडा ने 1938 में आदिवासी महासभा की स्थापना की थी. इन्हीं के नेतृत्व में 1928 में एमस्टरडम ओलंपिक में भारत ने हॉकी का गोल्ड मेडल जीता था.

बाबू राम नारायण के पीएम मोदी भी हैं मुरीद

संविधान सभा में झारखंड की आवाज बुलंद करने वाले छोटानागपुर के केसरी बाबू राम नारायण सिंह को हमेशा याद किया जाएगा. चतरा में जन्मे राम नारायण सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और 1931 से 1947 तक 8 बार जेल में रहे. उनकी पहल पर ही 1940 में रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था. उन्होंने सबसे पहले संसद में छोटानागपुर में अलग झारखंड की मांग उठाई थी. राम नारायण सिंह ने संविधान सभा में एक विधान, एक निधान और एक संविधान की बात कही थी.

Role of Jharkhand in constitution making
बाबू राम नारायण

ये भी पढ़ें-एक देश, एक चुनाव : क्या कहता है संविधान, कब छिड़ी थी बहस

संविधान सभा में उन्होंने कहा था कि देश के प्रधानमंत्री को प्रधान सेवक और नौकरशाह को लोक सेवक के रूप में जाना जाना चाहिए. कांग्रेस की विचारधारा से अलग होकर उन्होंने 1952 में हजारीबाग पश्चिम संसदीय क्षेत्र से बतौर निर्दलीय मैदान में उतरकर कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था. पीएम मोदी अपने भाषणों में अक्सर राम नारायण सिंह का जिक्र करते हैं. उन्हीं से प्रेरणा लेकर खुद को जनता के बीच प्रधानमंत्री नहीं बल्कि प्रधान सेवक के रूप में पेश करते हैं.

बोनीफास लकड़ा ने जनजातीय परामर्शदात्री परिषद की बताई थी अहमियत

संविधान सभा के सदस्य रहे बोनीफास लकड़ा का जन्म लोहरदगा में हुआ था. 1937 में रांची से बतौर वकील आदिवासी और पिछड़े की पैरवी करते रहे. इसी साल रांची सामान्य सीट से कैथोलिक सभा के उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए. बोनीफास लकड़ा ने छोटानागपुर और संथाल परगना के आदिवासियों के लिए सुरक्षा प्रावधानों को संविधान में शामिल करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्र को मिलाकर स्वायत्त क्षेत्र बनाने, केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिलाने, सिर्फ कल्याण मंत्री की नियुक्ति और जनजातीय परामर्श दात्री परिषद यानी टीएसी के गठन पर जोर दिया था. वह जयपाल सिंह मुंडा के आदिवासी महासभा के संस्थापक सदस्य भी थे. अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर 1966 से 1968 तक जेल में भी रहे.

Role of Jharkhand in constitution making
बोनीफास लकड़ा

के.बी सहाय की देन है जमींदारी प्रथा उन्मूलन कानून

कृष्ण बल्लभ सहाय का जन्म पटना में 1898 में हुआ था लेकिन झारखंड की धरती उनकी कर्मभूमि रही. 1952 में गिरिडीह से पहली बार बिहार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए. 1963 में बिहार के चौथे मुख्यमंत्री बने थे और 3 जून 1974 को हजारीबाग में निधन हुआ था. केबी सहाय को जमींदारी उन्मूलन का सूत्रधार माना जाता है. आजादी के बाद अंतरिम सरकार में पता राजस्व मंत्री रहते हुए उनकी पहल से भी जमीदारी प्रथा उन्मूलन कानून बना था. हाई कोर्ट से यह कानून निरस्त होने पर जवाहरलाल नेहरू को पहला संविधान संशोधन विधायक लाना पड़ा था. स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अपने पूरे राजनीतिक जीवन में केबी सहाय जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे. बिहार के सभी राजघराने और जमींदार परिवार उनकी राजनीति खत्म करने के लिए एड़ी चोटी लगाते रहे. उनका सीधा राजनीतिक टकराव रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह से कई बार हुआ. उन पर कई बार हमले भी हुए. अंत में 2 जून 1974 को पटना से हजारीबाग लौटते वक्त का दुर्घटना में उनकी मौत हो गई. आज भी उस रहस्य पर से पर्दा नहीं उठा है.

Role of Jharkhand in constitution making
के.बी सहाय

जानकारी के मुताबिक 2 साल 11 महीना और 17 दिन के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार किया गया था. संविधान सभा में देश भर से 299 चयनित सदस्य बनाए गए थे. 24 जनवरी 1950 को कुल 284 सदस्यों ने वास्तविक रूप में संविधान पर हस्ताक्षर किए थे. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था. संविधान के कारण ही आज जाति, धर्म और अलग-अलग संस्कृतियों के बावजूद भारत एक है.

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