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लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 21 साल होने से कई तरह के हैं फायदे: वासवी किड़ो

भारत में लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने को लेकर मंथन शुरू हुआ है. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से बात की. उन्होंने कहा कि अगर लड़की की शादी की कानूनी उम्र 21 साल हो जाती है तो इससे समाज की बुनियाद और मजबूत होगी.

Reaction of social worker Vasavi Kiddo on marriage of girls in 21 years
सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो
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Published : Sep 7, 2020, 5:10 PM IST

रांची: कहते हैं किसी भी देश की बुनियाद तभी मजबूत हो सकती है जब वहां की महिलाएं स्वस्थ और शिक्षित हों. इस दिशा में भारत में चौतरफा पहल हो रही है. अब शायद ही कोई ऐसा सेक्टर है, जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती न दिखती हों. अब तक महिलाओं के लिए चिकित्सा क्षेत्र को सबसे मुफीद माना जाता था, लेकिन अब महिलाएं फाइटर जेट भी उड़ा रही हैं, लेकिन इस बदलाव के बीच महिलाओं की एक बड़ी आबादी गरीबी, अंधविश्वास और अशिक्षा के कारण अपने हक से कोसों दूर हैं. प्रतियोगिता के इस दौर में 18 साल की कानूनी उम्र पूरी होते ही लड़कियों की शादी पर जोर दिया जाता है. इस बीच भारत में लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने को लेकर मंथन शुरू हुआ है.

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से खास बातचीत

इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से बात की. उन्होंने कहा कि अगर लड़की की शादी की कानूनी उम्र 21 साल हो जाती है तो इससे समाज की बुनियाद और मजबूत होगी. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अभी इससे ज्यादा जरूरी है कुपोषण और गरीबी को दूर करना. झारखंड में एनीमिया के कारण एक मां स्वस्थ बच्चे को जन्म नहीं दे पाती. अगर लड़की की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर भी दी जाए तब भी वह कुपोषण के कारण स्वस्थ बच्चे को जन्म नहीं दे पाएंगी. इसलिए जरूरी है कि सरकार इस दिशा में ज्यादा ध्यान दे.

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से खास बातचीत

महिलाओं की साक्षरता दर कम

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो इस बात से इत्तफाक रखती हैं कि 18 साल पूरा होते ही मां-बाप बेटी को विदा कर देना चाहते हैं. इसकी वजह से बड़ी तादाद में लड़कियां शिक्षा हासिल कर अपने सपने पूरी नहीं कर पाती. यही वजह है कि भारत में पुरुषों के शिक्षा का प्रतिशत जहां 82.14% है. वहीं, महिलाओं की शिक्षा का प्रतिशत 65.46 प्रतिशत है. इस मामले में झारखंड राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है. यहां कुल साक्षरता दर 66.41% है. इसमें पुरुषों की साक्षरता दर 76.48% और महिलाओं की महज 55.42% है.

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से खास बातचीत

ये भी पढे़ं: धनबाद में आर्थिक तंगी के कारण पत्नी ने की आत्महत्या, सदमे से पति की भी गई जान

झारखंड के 47.8 फीसद बच्चे अंडरवेट

नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड के 47.8 फीसद बच्चे अंडरवेट हैं. शहरी इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या महज 39.3 फीसद है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 49.8 फीसद बच्चे इससे ग्रसित हैं. इसलिए सामाजिक कार्यकर्ता के मुताबिक सरकार को सबसे पहले महिलाओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

रांची: कहते हैं किसी भी देश की बुनियाद तभी मजबूत हो सकती है जब वहां की महिलाएं स्वस्थ और शिक्षित हों. इस दिशा में भारत में चौतरफा पहल हो रही है. अब शायद ही कोई ऐसा सेक्टर है, जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती न दिखती हों. अब तक महिलाओं के लिए चिकित्सा क्षेत्र को सबसे मुफीद माना जाता था, लेकिन अब महिलाएं फाइटर जेट भी उड़ा रही हैं, लेकिन इस बदलाव के बीच महिलाओं की एक बड़ी आबादी गरीबी, अंधविश्वास और अशिक्षा के कारण अपने हक से कोसों दूर हैं. प्रतियोगिता के इस दौर में 18 साल की कानूनी उम्र पूरी होते ही लड़कियों की शादी पर जोर दिया जाता है. इस बीच भारत में लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने को लेकर मंथन शुरू हुआ है.

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से खास बातचीत

इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से बात की. उन्होंने कहा कि अगर लड़की की शादी की कानूनी उम्र 21 साल हो जाती है तो इससे समाज की बुनियाद और मजबूत होगी. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अभी इससे ज्यादा जरूरी है कुपोषण और गरीबी को दूर करना. झारखंड में एनीमिया के कारण एक मां स्वस्थ बच्चे को जन्म नहीं दे पाती. अगर लड़की की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर भी दी जाए तब भी वह कुपोषण के कारण स्वस्थ बच्चे को जन्म नहीं दे पाएंगी. इसलिए जरूरी है कि सरकार इस दिशा में ज्यादा ध्यान दे.

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से खास बातचीत

महिलाओं की साक्षरता दर कम

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो इस बात से इत्तफाक रखती हैं कि 18 साल पूरा होते ही मां-बाप बेटी को विदा कर देना चाहते हैं. इसकी वजह से बड़ी तादाद में लड़कियां शिक्षा हासिल कर अपने सपने पूरी नहीं कर पाती. यही वजह है कि भारत में पुरुषों के शिक्षा का प्रतिशत जहां 82.14% है. वहीं, महिलाओं की शिक्षा का प्रतिशत 65.46 प्रतिशत है. इस मामले में झारखंड राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है. यहां कुल साक्षरता दर 66.41% है. इसमें पुरुषों की साक्षरता दर 76.48% और महिलाओं की महज 55.42% है.

सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो से खास बातचीत

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झारखंड के 47.8 फीसद बच्चे अंडरवेट

नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड के 47.8 फीसद बच्चे अंडरवेट हैं. शहरी इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या महज 39.3 फीसद है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 49.8 फीसद बच्चे इससे ग्रसित हैं. इसलिए सामाजिक कार्यकर्ता के मुताबिक सरकार को सबसे पहले महिलाओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

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