रांची: रांची विश्वविद्यालय 60 वर्ष का हो गया. राज्य के सबसे पुराने विश्वविद्यालय ने कई उपलब्धियों और चुनौतियों को पार करते हुए 60 वर्ष का सफर पूरा कर लिया है. 12 जुलाई 1960 में स्थापित आरयू का यह सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा. इंफ्रास्ट्रक्चर व शिक्षकों की कमी की मार झेलते हुए विश्वविद्यालय ने आज कई कीर्तिमान हासिल किए हैं. 1960 से 2020 तक ऑफलाइन से पूरी तरह ऑनलाइन की ओर बढ़ रहा यह विश्वविद्यालय अब हाईटेक बनने की ओर अग्रसर है.
इस विवि की स्थापना 12 जुलाई 1960 को हुई थी. उस वक्त रांची विश्वविद्यालय के पास 10 पीजी विभाग, एक अंगीभूत कॉलेज रांची कॉलेज (जो वर्तमान में डीएसपीएमयू है) और 20 एफिलिएटिड कॉलेज इसके अंतर्गत आते थे. वर्तमान में आरयू के तहत 22 पीजी विभाग, 15 अंगीभूत कॉलेज और 57 से अधिक एफिलेटेड कॉलेज हैं.
इसके अलावा मेडिकल, इंजीनियरिंग, बिजनेस मैनेजमेंट के संस्थान, पत्रकारिता विभाग, लीगल स्टडीज सेंटर, फाइन आर्ट सेंटर, योगा सेंटर के अलावा निजी रेडियो संस्थान की तर्ज पर 90.4 एफएम रेडियो खांची भी संचालित हो रहा है. कुल मिलाकर कहें तो यह विश्वविद्यालय आज देश के किसी भी विश्वविद्यालय को हर तरीके से टक्कर दे रहा है.
B.Ed के अलावा योगिक साइंस में पीजी और यूजी की पढ़ाई भी शुरू हो गई है. किसी भी विषय में आप इस विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल कर सकते हैं और डिप्लोमा भी ले सकते हैं. इस विश्वविद्यालय के खिलाड़ी भी कम होनहार नहीं है अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज मधुमिता कुमारी इसी विश्वविद्यालय की खिलाड़ी हैं. हॉकी में भी इस विश्वविद्यालय का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित है.
वर्ष 2016 -17 आरयू के लिए रहा खास
प्लेसमेंट के क्षेत्र में भी यह विश्वविद्यालय पहले से बेहतर कर रहा है. वर्ष 2016 -17 इस विश्वविद्यालय के लिए कुछ खास रहा. 9 वर्षों के बाद छात्र संघ चुनाव कराए गए. पहली बार रांची विश्वविद्यालय का नैक मूल्यांकन हुआ. इसमें बी प्लस रैंक हासिल करने वाला यह राज्य का अकेला विश्वविद्यालय है.
विश्वविद्यालय में ऑनलाइन नामांकन रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था लागू हुई. इसके साथ ही स्नातक स्तर पर सीबीसीएस पैटर्न भी इसी शैक्षणिक सत्र से लागू किया गया. शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए संविदा के आधार पर सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति हुई.
कुलपति रमेश कुमार पांडे, प्रति कुलपति कामिनी कुमार और रजिस्ट्रार अमर कुमार चौधरी के कार्यकाल में इस विश्वविद्यालय ने कई कीर्तिमान भी हासिल किए हैं. आर्यभट्ट सभागार का निर्माण हो, लीगल स्टडी सेंटर का भवन या फिर बहुउद्देशीय कैंपस में गार्डन और दुर्लभ प्रजातियों से पेड़ पौधे से भरा बॉटनिकल गार्डन का निर्माण. रेडियो खांची की शुरुआत भी इन्हीं के कार्यकाल में हुई.
स्पोर्ट्स ग्राउंड बना, इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार तेजी से हुआ. संसाधनों की कमी को भरा जा सका. वाई-फाई कैंपस, सीसीटीवी कैमरे, छात्र संघ चुनाव, नियमित सिंडिकेट की बैठक भी हुई.
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कोरोना महामारी काल में भी बेहतर प्रदर्शन
कुलपति रमेश कुमार पांडे की दृढ़ इच्छाशक्ति और विद्यार्थियों के हित में लिए गए फैसले के तहत विभिन्न तरह के वोकेशनल कोर्सेज भी इस विश्वविद्यालय में खोले गए. पीजी की पढ़ाई विभिन्न महाविद्यालयों में प्रारंभ हुई. सबसे बड़ी बात कोरोना जैसे मुश्किल दौर में इस विश्वविद्यालय ने नए कीर्तिमान स्थापित किया. ऑनलाइन क्लासेस की मांग पर ऑनलाइन क्लासेस दी गई. आधारभूत संरचना और स्किल्ड मैन पावर की कमी के बावजूद इस विश्वविद्यालय ने शहरी क्षेत्र के शत प्रतिशत विद्यार्थियों तक ऑनलाइन पठन-पाठन मुहैया कराया.
2019 में विवादों में आया विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय के कुछ निरंकुश कर्मचारियों की वजह से 60 वर्षों में पहली बार विश्वविद्यालय विवादों में भी आया. प्रबंधन पर परीक्षा विभाग के कर्मचारियों को सह देने का आरोप लगा. अनियमितता से जुड़ी खबर उजागर करने पर तीन पत्रकारों के साथ बुरी तरह मारपीट का यह मामला था.
इसे लेकर पूरी पत्रकार बिरादरी रांची विश्वविद्यालय के खिलाफ हो गई थी. विश्वविद्यालय के दो कर्मचारियों को जेल तक जाना पड़ा. इस मामले में रांची विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति रमेश कुमार पांडे को आगे आना पड़ा और मामला न्यायालय तक जा पंहुचा.
1960 से 2020 तक 21 कुलपति, 17 प्रति कुलपति और 19 कुलसचिव की कड़ी मेहनत के कारण रांची विश्वविद्यालय आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है. इस विश्वविद्यालय के कई छात्र बड़े-बड़े पदों पर आसीन हैं और सरकार में भी शामिल हैं. इंजीनियर, डॉक्टर के अलावा साइंटिस्ट तक का सफर इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थी कर रहे हैं.
अब तक के कुलपति (वीसी)
वीएन सिंह -1960 से 1962 तक, एसडी सिंह- 1962 से 1965 तक, एएफ मारखम -1965 से 1969 तक, जॉर्ज जैकब - 1969 से 1970 तक, बीएन राहटगे-1970 से 1972 तक, आरएस मंडल -1972 से 1975 तक, एकके धान- 1975 से 1977 तक, शालिग्राम सिंह-1977 -1978 तक, एनएल नड्डा -1978 से 1980 तक, विश्वनाथ प्रसाद -1984 से 1985 तक, सच्चिदानंद -1985 से 1986 तक, रामदयाल मुंडा -1987 से 1988 तक, लाल साहब सिंह -1988 से 1990 तक, एके सिंह -1990 से 1992 तक, केके नाग- 1992 से 1996 तक, डीपी गुप्ता -1996 से 1997 तक, एलसीसीएन सहदेव -1994 से 2000,2001 से 2002 तक, एसएस कुशवाहा -2003 से 2005 तक, एए खान -2006 से 2011 तक, एलएन भगत- 2012- 2015 तक, रमेश कुमार पांडे 2015 से अब तक
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अब तक के प्रतिकुलपति (प्रो वीसी)
याकूब मसीह- 1975 से 1977 तक, पीसी होरो -1977 से 1980 तक,केसी बोस- 1980 से 1983 तक, आरडी सिंह- 1983 से 1984 तक, पीसी होरो -1984 से 1985 तक, आरडी मुंडा- 1985 से 1987 तक, आर बद्रीनारायण -1987 से 1990 तक, एमके हसन- 1990 से 1997 तक, एसएस हुसैन- 1998 से 2001 तक, आनंद भूषण- 2001 से 2004 तक, एए खान-2004 से 2005 तक, शालिनी कुमार राय- 2006 से 2007 तक, शालिनी कुमार राय -2007 से 2009 तक, वीपी शरण- 2009 से 2012 तक, एम रजीउद्दीन- 2013 से 2016, एसके शुक्ला 17 जून 2016 से 9 अगस्त 2016 तक, कामिनी कुमार -2017 अब तक जारी.
1960 से 2020 तक कुलसचिव (रजिस्ट्रार)
जय सहाय -1960 , डीपी वर्मा -1963 से 1964 तक, पीएम ओझा -1964 से 1965 तक, डीपी वर्मा -1965 से 1976 तक, पांडे एस के शर्मा- 1976 से 1979 तक, ए प्रसाद -1979 से 1980 तक, डीपी वर्मा -1980 से 1981 तक, एम उरांव -1981 से 1986 तक, एन भगत-1986 से 1988 तक, एम उरांव -1989 से 1992 तक, ए प्रसाद-1992 से 1993 तक, एम उरांव-1993 से 1994 तक, एके श्रीवास्तव -1994 से 1997 तक, के गोप -1997 से 1998 तक, पीपी वर्मा 1998 से 2000 तक, बहुरा एक्का- 2000 से 2002 तक, एलएन भगत-2004 से 2008 तक, ज्योति कुमार -2008 से 2012 तक, अमर कुमार चौधरी- 2012 से अब तक.