रांची: झारखंड में इस साल श्रद्धालुओं को अपने घरों में ही छठ पूजा करनी होगी. राज्य सरकार की ओर से कोरोना वायरस के अंदेशे को देखते हुए प्रदेश में सार्वजनिक तालाब, नदी, डैम या जलाशयों में लोक आस्था के महापर्व छठ के आयोजन को लेकर रोक लगाई गई है. राज्य सरकार के इस निर्णय का एक तरफ जहां लोगों ने स्वागत किया है तो वहीं, कुछ लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करते हुए नदी और जलाशयों में छठ महापर्व करने को लेकर निर्देश जारी करने की अपील भी की है.
कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए लगातार सुरक्षात्मक कदम उठाए जा रहे हैं. इस वर्ष कई पर्व त्योहारों के दौरान सरकारी दिशा-निर्देश जारी किया गया है. महापर्व छठ के मद्देनजर भी झारखंड सरकार की ओर से छठ पूजा को देखते हुए एक विशेष गाइडलाइन जारी की गई है. झारखंड में सार्वजनिक तालाब, नदी, डैम या जलाशयों में लोक आस्था के महापर्व छठ के आयोजन पर रोक लगाई गई है. हालांकि, इसका चौतरफा विरोध भी हो रहा है तो कुछ लोगों ने इसका स्वागत भी किया है.
सरकार ने आशंका इस बात को लेकर जताई है कि सार्वजनिक स्तर पर तालाब, नदियो, जलाशयों में पूजा के दौरान कोविड-19 के संक्रमण का खतरा हो सकता है. झारखंड सरकार के इस निर्णय को लेकर जब ईटीवी भारत के टीम ने स्थानीय लोगों से उनकी राय जानी तो मिली जुली प्रतिक्रियाएं मिली. कुछ लोगों का मानना है कि सरकार का यह निर्णय बेहतर है. कोविड-19 को देखते हुए यह फैसला सही है, लेकिन कुछ लोगों ने यह भी कहा कि जो लोग कृत्रिम छठ तलाब बनाकर अपने घर हो या सोसाइटी में भगवान भुवन भास्कर को अर्घ्य देते हैं उनके लिए यह निर्णय सही है, लेकिन जिनके घर में जलाशय, पानी की व्यवस्था नहीं होगी. वह आखिर क्या करेंगे. उन्हें तो तालाब का या जलाशयों का रुख तो करना ही पड़ेगा.
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जलाशय की व्यवस्था
कुछ लोगों ने कहा कि महापर्व छठ झारखंड में बड़ी संख्या में लोग मनाते हैं और 80 फीसदी लोगों के घरों में जलाशयों की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में यह निर्णय बेतुका है. इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा का मुकम्मल व्यवस्था करनी होगी और लोगों को भी ध्यान पूर्वक सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए इस पर्व को मनाना होगा.