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झारखंड में शराब पर सिंडिकेट का राज! व्यवसायी परेशान, सियायत भी जोरों पर

विवादों के बीच राज्य में शराब के कारोबार पर सिंडिकेट राज कायम हो गया है. सरकार के द्वारा शराब बिक्री निजी हाथों में सौपे जाने के फैसले के बाद जिला स्तर पर शराब की थोक बिक्री का लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया चल यही है. इसको लेकर व्यवसायी परेशान हैं तो इस मुद्दे पर सियासत भी जोरों पर हो रही है.

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उत्पाद भवन
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Published : Aug 15, 2021, 9:01 PM IST

Updated : Aug 16, 2021, 2:23 PM IST

रांचीः झारखंड की नई शराब नीति विवादों में लगातार है, अब आलम ऐसा है कि राज्य में शराब के कारोबार पर सिंडिकेट राज कायम हो गया है. शराब बिक्री निजी हाथों में सौपे जाने के फैसले के बाद जिला स्तर पर शराब की थोक बिक्री का लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया चल यही है. लेकिन इसको लेकर व्यवसायी भी परेशान हैं तो दूसरी तरफ इसको लेकर राजनीति भी हो रही है.

इसे भी पढ़ें- शराब कारोबार पर सिंडिकेट का राज! लाइसेंस फी ज्यादा होने से स्थानीय व्यवसायी परेशान

शराब कारोबारियों के विरोध के बावजूद प्रदेश के कारोबार में सिंडिकेट पूरी तरह से हावी दिख रहा है. बिक्री निजी हाथों में सौंपने के बाद उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग द्वारा पूर्व मेंं जारी अधिसूचना के मुताबिक विभाग ने आननफानन में थोक बिक्री का लाइसेंस जारी करने का कदम उठाया है. झारखंड मदिरा का भंडारण एवं थोक बिक्री नियमावली 2021 के संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार झारखंड राज्य बिवरेज कॉरपोरेशन लिमिटेड अब राज्य में शराब बिक्री के लिए कॉर्डिनेटर की भूमिका में है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
शराब कारोबार पर सिंडिकेट राज, स्थानीय व्यवसायी परेशानस्थानीय शराब व्यवसायियों के विरोध के बाबजूद शराब के कारोबार पर सिंडिकेट राज हावी हो गया है. एक तरफ राज्य सरकार सड़क किनारे हड़िया दारू बेचने वाली महिलाओं को सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए इस तरह के धंधे से बाहर निकालने के लिए फूलो झानो अभियान चला रही है. दूसरी तरफ राजस्व अधिक से अधिक आए, इसके लिए शराब बिक्री को निजी हाथों में दे दिया है.

आलम यह कि लाइसेंस पाने के लिए पर्दे के पीछे एक ही व्यक्ति ने कई जिलों में अलग-अलग नाम से लाइसेंस लेने में सफल हो गए हैं. इधर इसके खिलाफ स्थानीय शराब व्यवसायी नाराज चल रहे हैं. इन व्यवसायियों का मानना है कि सरकार ने नियमविरुद्ध काम किया है, जिससे छोटे व्यवसायियों को क्षति हुई है. सरकार ने लाइसेंस लेने के लिए गैरकानूनी और अजीबोगरीब नियम रातोंरात बनाकर शराब व्यवसायियों के साथ अन्याय किया है.

इसे भी पढ़ें- बार लाइसेंस नवीनीकरण शुल्क का विरोध, सरकार के निर्णय के बाद भी नहीं खुले 95% बार

किस बात पर नाराज हैं स्थानीय व्यवसायी
निर्धारित लाइसेंस की प्रक्रिया में भारी भरकम राशि जमा करनी पड़ रही है. सरकार ने टेंडर में शामिल होने के लिए आवेदन शुल्क के अलावे पांच वर्षों का अग्रिम लाइसेंस फी जमा करने को कहा है. जिला स्तर पर डीसी लाइसेंस पहले देते थे, अब उत्पाद आयुक्त जिला का भी लाइसेंस देने का अधिकार है. इसके अलावा आवेदन के साथ सेक्युरिटी मनी और लाइसेंस फी हर जिला के लिए अलग-अलग निर्धारित की गई है.

शराब नीति को लेकर जारी निर्देश के अनुसार लाइसेंस की राशि एकमुश्त पांच वर्षों के लिए जमा करनी होगी. इसके लिए लाइसेंस उन्हें एक वर्ष के लिए मिलेगा, जिसका रिनुअल पांच वर्षों तक किया जा सकेगा. सरकार के इस नियम से रांची में शराब का स्टॉकिस्ट बनने के लिए पांच करोड़ लाइसेंस फी और 50 लाख टेंडर में शामिल होने के लिए सरकार के खाता में जमा करनी होगी. उसके बाद एक से अधिक आवेदन आने पर ऊंची बोली लगाने वाले को लाइसेंस दिया जाएगा. सरकार के द्वारा भारी भरकम राशि जमा कराने से स्थानीय व्यवसायी इसमें शामिल नहीं हो सकेंगे.

इसे भी पढ़ें- झारखंड हाई कोर्ट में नई शराब नीति को चुनौती, सरकार से अदालत ने मांगा जवाब


हाई कोर्ट पहुंच चुका है मामला
झारखंड शराब बिक्रेता संघ सरकार के नए नियम का विरोध करते हुए झारखंड हाई कोर्ट का दरबाजा खटखटाया है. अब तक राज्यभर से 24 से अधिक केस सरकार के विरुद्ध दर्ज हो चुके हैं. स्थानीय शराब व्यवसायियों को उम्मीद है कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा. संघ के राज्य सचिव सुबोध जायसवाल ने सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि इससे कहीं ना कहीं झारखंड के बाहर के बड़े शराब व्यवसायी को लाभ मिल रहा है और स्थानीय व्यवसायी मारे जा रहे हैं.

शराब पर राजनीति भी हावी
राज्य सरकार की नई शराब नीति विपक्ष के लिए बैठे बिठाए मुद्दा दे दिया है. विपक्षी दल बीजेपी ने सरकार की नई शराब नीति की आलोचना करते हुए कहा है कि स्थानीय व्यवसायियों को नजरअंदाज कर पॉलिसी बनाई गई है, जो गैरकानूनी है. बीजेपी प्रवक्ता सरोज सिंह ने सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि मनमाने ढंग से लाइसेंस का आवंटन हो रहा है, जो सरासर गलत है. इधर विपक्ष के द्वारा उठाए जा रहे सवाल पर सत्तारूढ़ दल झामुमो ने पलटवार किया है. झामुमो विधायक मथुरा महतो ने कहा है कि लाइसेंस आवंटन में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होगी और सरकार इसपर नजर रख रही है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में शराब पर सरकार का बड़ा फैसला, अब निजी कंपनियां भी बेच सकेंगी


शराब की नई नीति बनाने के पीछे सरकार का मकसद तेजी से राजस्व संग्रह करना है. शराब ही ऐसा सेक्टर है, जहां से राज्य सरकार को भारी भरकम राशि हर वर्ष राजस्व के रुप में प्राप्त होता है. कोरोना और लॉकडाउन के बावजूद 2020-21 में विभाग ने करीब 1800 करोड़ की शराब बेचकर राजस्व के रुप में यह राशि प्राप्त की थी.

राज्य सरकार को उम्मीद है कि नई पॉलिसी से 3000 करोड़ तक शराब बिक्री से राजस्व मिलेगा. झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की बात करें तो झारखंड से छोटा क्षेत्रफल और जनसंख्या कम होने के बाबजूद पिछले वर्ष झारखंड से करीब तीन गुणा यानी 5400 करोड़ राजस्व संग्रह शराब की बिक्री से स्टेट को प्राप्त हुआ है. बहरहाल नाराज स्थानीय व्यवसायी सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर उम्मीद लगा बैठे हैं कि नई पॉलिसी जहां रद्द होगी. वहीं सरकार ने लाइसेंस आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर इनकी चिंता जरूर बढ़ा दी है.

रांचीः झारखंड की नई शराब नीति विवादों में लगातार है, अब आलम ऐसा है कि राज्य में शराब के कारोबार पर सिंडिकेट राज कायम हो गया है. शराब बिक्री निजी हाथों में सौपे जाने के फैसले के बाद जिला स्तर पर शराब की थोक बिक्री का लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया चल यही है. लेकिन इसको लेकर व्यवसायी भी परेशान हैं तो दूसरी तरफ इसको लेकर राजनीति भी हो रही है.

इसे भी पढ़ें- शराब कारोबार पर सिंडिकेट का राज! लाइसेंस फी ज्यादा होने से स्थानीय व्यवसायी परेशान

शराब कारोबारियों के विरोध के बावजूद प्रदेश के कारोबार में सिंडिकेट पूरी तरह से हावी दिख रहा है. बिक्री निजी हाथों में सौंपने के बाद उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग द्वारा पूर्व मेंं जारी अधिसूचना के मुताबिक विभाग ने आननफानन में थोक बिक्री का लाइसेंस जारी करने का कदम उठाया है. झारखंड मदिरा का भंडारण एवं थोक बिक्री नियमावली 2021 के संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार झारखंड राज्य बिवरेज कॉरपोरेशन लिमिटेड अब राज्य में शराब बिक्री के लिए कॉर्डिनेटर की भूमिका में है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
शराब कारोबार पर सिंडिकेट राज, स्थानीय व्यवसायी परेशानस्थानीय शराब व्यवसायियों के विरोध के बाबजूद शराब के कारोबार पर सिंडिकेट राज हावी हो गया है. एक तरफ राज्य सरकार सड़क किनारे हड़िया दारू बेचने वाली महिलाओं को सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए इस तरह के धंधे से बाहर निकालने के लिए फूलो झानो अभियान चला रही है. दूसरी तरफ राजस्व अधिक से अधिक आए, इसके लिए शराब बिक्री को निजी हाथों में दे दिया है.

आलम यह कि लाइसेंस पाने के लिए पर्दे के पीछे एक ही व्यक्ति ने कई जिलों में अलग-अलग नाम से लाइसेंस लेने में सफल हो गए हैं. इधर इसके खिलाफ स्थानीय शराब व्यवसायी नाराज चल रहे हैं. इन व्यवसायियों का मानना है कि सरकार ने नियमविरुद्ध काम किया है, जिससे छोटे व्यवसायियों को क्षति हुई है. सरकार ने लाइसेंस लेने के लिए गैरकानूनी और अजीबोगरीब नियम रातोंरात बनाकर शराब व्यवसायियों के साथ अन्याय किया है.

इसे भी पढ़ें- बार लाइसेंस नवीनीकरण शुल्क का विरोध, सरकार के निर्णय के बाद भी नहीं खुले 95% बार

किस बात पर नाराज हैं स्थानीय व्यवसायी
निर्धारित लाइसेंस की प्रक्रिया में भारी भरकम राशि जमा करनी पड़ रही है. सरकार ने टेंडर में शामिल होने के लिए आवेदन शुल्क के अलावे पांच वर्षों का अग्रिम लाइसेंस फी जमा करने को कहा है. जिला स्तर पर डीसी लाइसेंस पहले देते थे, अब उत्पाद आयुक्त जिला का भी लाइसेंस देने का अधिकार है. इसके अलावा आवेदन के साथ सेक्युरिटी मनी और लाइसेंस फी हर जिला के लिए अलग-अलग निर्धारित की गई है.

शराब नीति को लेकर जारी निर्देश के अनुसार लाइसेंस की राशि एकमुश्त पांच वर्षों के लिए जमा करनी होगी. इसके लिए लाइसेंस उन्हें एक वर्ष के लिए मिलेगा, जिसका रिनुअल पांच वर्षों तक किया जा सकेगा. सरकार के इस नियम से रांची में शराब का स्टॉकिस्ट बनने के लिए पांच करोड़ लाइसेंस फी और 50 लाख टेंडर में शामिल होने के लिए सरकार के खाता में जमा करनी होगी. उसके बाद एक से अधिक आवेदन आने पर ऊंची बोली लगाने वाले को लाइसेंस दिया जाएगा. सरकार के द्वारा भारी भरकम राशि जमा कराने से स्थानीय व्यवसायी इसमें शामिल नहीं हो सकेंगे.

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हाई कोर्ट पहुंच चुका है मामला
झारखंड शराब बिक्रेता संघ सरकार के नए नियम का विरोध करते हुए झारखंड हाई कोर्ट का दरबाजा खटखटाया है. अब तक राज्यभर से 24 से अधिक केस सरकार के विरुद्ध दर्ज हो चुके हैं. स्थानीय शराब व्यवसायियों को उम्मीद है कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा. संघ के राज्य सचिव सुबोध जायसवाल ने सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि इससे कहीं ना कहीं झारखंड के बाहर के बड़े शराब व्यवसायी को लाभ मिल रहा है और स्थानीय व्यवसायी मारे जा रहे हैं.

शराब पर राजनीति भी हावी
राज्य सरकार की नई शराब नीति विपक्ष के लिए बैठे बिठाए मुद्दा दे दिया है. विपक्षी दल बीजेपी ने सरकार की नई शराब नीति की आलोचना करते हुए कहा है कि स्थानीय व्यवसायियों को नजरअंदाज कर पॉलिसी बनाई गई है, जो गैरकानूनी है. बीजेपी प्रवक्ता सरोज सिंह ने सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि मनमाने ढंग से लाइसेंस का आवंटन हो रहा है, जो सरासर गलत है. इधर विपक्ष के द्वारा उठाए जा रहे सवाल पर सत्तारूढ़ दल झामुमो ने पलटवार किया है. झामुमो विधायक मथुरा महतो ने कहा है कि लाइसेंस आवंटन में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होगी और सरकार इसपर नजर रख रही है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में शराब पर सरकार का बड़ा फैसला, अब निजी कंपनियां भी बेच सकेंगी


शराब की नई नीति बनाने के पीछे सरकार का मकसद तेजी से राजस्व संग्रह करना है. शराब ही ऐसा सेक्टर है, जहां से राज्य सरकार को भारी भरकम राशि हर वर्ष राजस्व के रुप में प्राप्त होता है. कोरोना और लॉकडाउन के बावजूद 2020-21 में विभाग ने करीब 1800 करोड़ की शराब बेचकर राजस्व के रुप में यह राशि प्राप्त की थी.

राज्य सरकार को उम्मीद है कि नई पॉलिसी से 3000 करोड़ तक शराब बिक्री से राजस्व मिलेगा. झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की बात करें तो झारखंड से छोटा क्षेत्रफल और जनसंख्या कम होने के बाबजूद पिछले वर्ष झारखंड से करीब तीन गुणा यानी 5400 करोड़ राजस्व संग्रह शराब की बिक्री से स्टेट को प्राप्त हुआ है. बहरहाल नाराज स्थानीय व्यवसायी सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर उम्मीद लगा बैठे हैं कि नई पॉलिसी जहां रद्द होगी. वहीं सरकार ने लाइसेंस आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर इनकी चिंता जरूर बढ़ा दी है.

Last Updated : Aug 16, 2021, 2:23 PM IST
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