रांचीः झारखंड की राजधानी रांची में एक ऐसा सरकारी स्कूल है जो अपने स्टूडेंट्स के बजाय वहां तैनात टीचरों की वजह से ज्यादा जाना जाता है. आस पास के लोग इन्हें पकड़ुआ टीटर भी कहते हैं. वो ऐसी टीचर हैं जो बच्चों को न केवल पढ़ाती हैं बल्कि उन्हें उनके घर से निकाल कर स्कूल तक लाती हैं और वापस गिनती कर पहुंचाती भी हैं. राजधानी के चिरौंदी पहाड़ के नीचे बसे अंबेडकर नगर में राज्य सरकार का नव प्राथमिक स्कूल मूल रूप से वहां बसे अनुसूचित जाति के लोगों के बच्चों के लिए है. स्कूल के अटेंडेंस रजिस्टर के हिसाब से यहां क्लास 1 से 5 के बीच 55 बच्चे हैं.
राजधानी रांची के अलग-अलग इलाकों में स्लम्स में रह रहे लोगों को अंबेडकरनगर में बसाया गया. यहां 12 अलग-अलग बिल्डिंगों में 882 कमरे बनाए गए, जिनमें फिलहाल 4000 से अधिक लोग रह रहे हैं, उनके बच्चों को शिक्षा देने के लिए पास में है नव प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की गई.
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दो पारा टीचर चला रही हैं स्कूल
नव प्राथमिक स्कूल को दो पारा टीचर चला रही हैं, इनमें से एक लक्ष्मी मिंज 2011 से बकौल पारा टीचर यहां काम कर रही हैं, वहीं दूसरी अनीता तिर्की 2017 से स्कूल आ रही हैं. लक्ष्मी बताती हैं कि चूंकि पूरी कॉलोनी अनुसूचित जाति के निवासियों के लिए बनाई गई है इसलिए उनके बच्चे स्कूल में इनरोल कराए गए हैं. इस कॉलोनी में रहने वाले ज्यादातर लोग कूड़े कबाड़ी या फिर साफ सफाई का काम करते हैं, जिसकी वजह से वह सुबह अपने काम पर निकल जाते हैं जबकि उनके बच्चे घर में पड़े रहते हैं,
स्कूल में अपनी हाजिरी बनाकर निकलती हैं बच्चों को लाने
लगभग हर रोज लक्ष्मी की दिनचर्या यही है कि वह स्कूल आती हैं और अपनी हाजिरी बना कर उन बच्चों के घर से खींचकर स्कूल लाने निकल जाती है. उन्होंने बताया कि कई बार स्थितियां ऐसी हो जाती है कि यूनिफॉर्म तक बच्चों को उन्हें खुद पहनाना पड़ता है. स्कूल की छात्रा स्वाति के पिता बताते हैं कि रोज कमाने खाने वाले लोग उस कॉलोनी में रहते हैं, ऐसे में उनकी मूल समस्या पेट पालने की है. यही वजह है कि वह अपने बच्चों की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते. वह कहते हैं कि अगर दोनों शिक्षिकाएं पकड़कर घरों से स्कूल तक बच्चों को न लाएं तो बच्चे ककहरा तक नहीं सीख पाएंगे.
स्कूल के किचन से निकलने वाला धुंआ देखकर आते थे बच्चे
शिक्षिका अनीता तिर्की बताती हैं कि पहले काफी आसानी होती थी जब लकड़ी के ईंधन वाला चूल्हा स्कूल में जलता था. अनीता कहती हैं कि पहले जैसे ही चूल्हा जलता था, उसका धुआं देखकर बच्चे दौड़कर स्कूल आ जाते थे. अब गैस कनेक्शन मिल जाने से बाहर से बच्चों को पता नहीं चलता है कि मिड डे मील का खाना कब तैयार होगा और कब वो स्कूल पहुंचे.
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कभी भी गिर सकती है कॉलोनी
अंबेडकर नगर कॉलोनी की अध्यक्ष गुड़िया देवी कहती हैं कि सरकार ने राजधानी के अलग-अलग इलाकों में झुग्गी झोपड़ियों में रह रहे लोगों के लिए अंबेडकर नगर कॉलोनी तो बना दी लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ नहीं दिया. अब हालत यह है कि कॉलोनी की बिल्डिंग काफी कमजोर हो गई है और कई जगह तो दीवार हिलने लगी है. उन्होंने बताया कि यहां तक की न तो शौचालय की व्यवस्था है और ना पानी की निकासी की व्यवस्था की गई है. नतीजा यह है कि यहां रहने वाले लोगों को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि कई बार इसको लेकर वह मेयर डिप्टी मेयर और यहां तक कि मंत्री के पास तक गई लेकिन उनकी समस्या जस की तस बनी हुई है.
तमाम परेशानियों के बावजूद पारा शिक्षकों ने यहां के बच्चों को स्कूल लाने, पढ़ाने और वापस घर छोड़ने का बीड़ा उठाया है. उनकी ये मेहनत कामयाबी होती दिख रही है. बच्चों के अभिभावक भी नौनिहाल का भविष्य रोशन होते देख खुश हैं.