रांचीः आज प्रकृति का महापर्व सरहुल है. आज सभी सरना धर्मावलंबी प्रकृति की पूजा करते हैं. अच्छी बारिश, अच्छी खेती-बाड़ी और राज्य कोरोना मुक्त हो इसी कामना के साथ हातमा के सरना स्थल में जगलाल पाहन ने पूरे विधि विधान के साथ पूजा की. प्रकृति पर्व सरहुल पूरी आस्था और विधि विधान के साथ मनाया जा रहा है, लोग अपने अपने घरों में रहकर ही पूजा कर रहे हैं. हातमा सरना पूजा स्थल में मुख्य पाहन जगलाल पाहन ने पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की.
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संक्रमण का साइड इफेक्ट
कोरोना के बढ़ते संक्रमण का साइड इफेक्ट सरहुल पर्व पर भी पूरी तरह से दिखाई दे रहा है. 54 साल के इतिहास में ऐसा दूसरी बार हो रहा है कि सरहुल की भव्य शोभायात्रा रांची की सड़कों पर दिखाई नहीं देगी. पिछले 2 वर्षों से कोरोना के कारण सरहुल सादगी के साथ मनाया जा रहा है. सरहुल के दिन जो शोभायात्रा और जुलूस निकाली जाती थी, कोरोना के बढ़ते रफ्तार को देखते हुए और सरकार के जारी गाइडलाइन का पालन करते हुए इस वर्ष भी नहीं निकाली जाएगी.
आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व सरहुल माना जाता है. सरहुल पर्व के साथ ही कई तरह की नई शुरुआत भी की जाती है, लेकिन इस बार का सरहुल सन्नाटे के बीच गुजर रहा है. यही सभी लोग कामना कर रहे हैं कि कोरोना से छुटकारा मिले तो आने वाला सरहुल और लोगों का जीवन बेहतर होगा.
महापर्व सरहुल की विशेषता
प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से होती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं, जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नए साल का सूचक मानते हैं और पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. सरहुल आदिवासियों के प्रमुख त्योहार में से एक है.
तीन दिनों के इस पर्व की अपनी अलग कई विशेषताएं हैं. इस पर्व में गांव के पाहन विशेष अनुष्ठान करते हैं. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो. इस क्रम में पाहन सरना स्थल में मिट्टी के हांडियों में पानी रखते हैं पानी के स्तर से ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पाहन घर-घर जाकर फूलखोंसी करते हैं ताकि उस घर और समाज में खुशी बनी रहे.