रांची: राजधानी में 'जे नाची से बांची' का नारा देने वाले महापुरुष और पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा की 82वीं जयंती मनायी गई. इस मौके पर रांची के टैगोर हिल परिसर में पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा की 9 फीट ऊंची आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई, जिसका अनावरण डॉक्टर रामदयाल मुंडा की पत्नी अमिता मुंडा ने किया.
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डॉक्टर रामदयाल मुंडा की प्रतिमा का अनावरण
पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा की 82वीं जयंती के मौके पर उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण पारंपरिक वाद्य यंत्र और ढोल नगाड़ों की गूंज के साथ की गई. इस दौरान रांची के टैगोर हिल परिसर में सांस्कृतिक नृत्य की झलकियां भी देखने को मिली. कार्यक्रम में मौजूद सीपीएम के राज्य कमिटी सदस्य सुभाष मुंडा के मुताबिक राज्य के महापुरुषों के जयंती हो या पुण्यतिथि महज एक सांस्कृतिक समारोह तक ही सीमित रह जाती है.
उन्होंने कहा कि जिस उद्देश्य के लिए राज्य के महापुरुषों ने लड़ाई लड़ी राज्य की जिस सभ्यता संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करने की कोशिश की गई. जिस भाषा संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाने का काम किया गया, उसे आगे बढ़ाने का जिम्मेदारी राज्य के सरकार की है. लेकिन दुर्भाग्य है कि 21 साल के कालखंड में किसी भी सरकार ने राज्य के महापुरुषों के योगदान को आगे बढ़ाने का काम नहीं किया.
कई तरह से खास है ये प्रतिमा
टैगोर हिल परिसर में स्थापित पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा की ये प्रतिमा कई मायनों में खास है. इस प्रतिमा में डॉ. रामदयाल मुंडा को वाद्य यंत्र ढोल के साथ स्थापित किया गया है. पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा की ये परिकल्पना थी कि आदिवासी मूलवासी समेत समस्त झारखंड वासियों की सभ्यता संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखने का बेहतर स्थान ओपन स्पेस थिएटर होना चाहिए.
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इसको लेकर उन्होंने साल 2011 में रांची के टैगोर हिल परिसर पर ओपन स्पेस थिएटर का शिलान्यास किया था. जिसे संरक्षित करने की दिशा में झारखंड आदिवासी विकास समिति काम कर रही है. पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा की जयंती समारोह टैगोर हिल के अलावा राजधानी में कई जगहों पर भी आयोजित की गई. जहां उन्हें पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई. इस दौरान राम दयाल मुंडा के विचारों और गुणों को याद किया गया.
पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा- एक परिचय
पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा को झारखंड की आदिवासी लोक कला, विशेषकर पाइका नाच को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए जाना जाता है. वो अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद, समाजशास्त्री, आदिवासी बुद्धिजीवी और साहित्यकार के साथ-साथ एक अप्रतिम आदिवासी कलाकार भी थे. उन्होंने मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिंदी, अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा गद्य साहित्य की भी रचना की थी. विश्व आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू करने में पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा का अहम योगदान रहा है.