रांची: झारखंड सरकार ने इस साल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 80 लाख क्विंटल धान खरीद का लक्ष्य (Paddy procurement in Jharkhand) रखा है, लेकिन खरीददारी की रफ्तार बेदह धीमी है. 15 दिसंबर 2021 से झारखंड में धान खरीद का अभियान शुरू किया गया है. दो माह बाद अबतक सिर्फ 23.93 लाख क्विंटल धान की खरीद हो पाई है. इसकी तुलना में किसानों को 115.44 करोड़ का भुगतान हुआ है. इसका फायदा सिर्फ 47,517 किसानों को ही मिल पाया है. जबकि रजिस्ट्रेशन कराने वाले किसानों की संख्या 2,42,994 है.
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खास बात यह है कि किसानों को धान बेचने में दिक्कत ना हो, इसे ध्यान में रखते हुए इस बार झारखंड में 659 एमएसपी केंद्र खोले गये हैं. इसके बावजूद किसान पैक्स या लैम्पस पहुंचने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. जाहिर है किसानों का धान कौड़ी के दाम में बिचौलियों के पास जा रहा है. अगर, साधारण धान भी पैक्स या लैम्पस में लाया जाता तो प्रति क्विंटल 2,050 रुपए मिलता. लेकिन पिछले साल धान खरीद में हुई धांधली को देखते हुए सरकार ने इस बार एक किसान से अधिकतम 200 क्विंटल धान खरीद की कैपिंग लगा दी है, क्योंकि एमएसपी पर धान खरीद की सरकार की कोशिश को फर्जी किसानों ने बड़ा नुकसान पहुंचाया था. बड़ी संख्या में फर्जी जमीन रसीद दिखाकर हजारों क्विंटल धान को सरकारी दाम पर सरकार को बेचा गया था. हालांकि वैसे किसानों को चिन्हित कर कार्रवाई की प्रक्रिया जारी है.
धान खरीद की जिलावार स्थिति की बात करें तो 10 फरवरी 2022 तक हुई खरीददारी की सूची में हजारीबाग जिला टॉप पर है. यहां के किसानों ने अबतक 3.98 लाख क्विंटल धान बेचा है. दूसरे स्थान पर गिरिडीह जिला है. यहां के किसानों ने 3.44 लाख क्विंटल धान बेचा है. जबकि 2.03 लाख क्विंटल के साथ गढ़वा जिला तीसरे स्थान पर है. 1.72 लाख क्विंटल के साथ पूर्वी सिंहभूम जिला चौथे पर और 1.50 लाख क्विंटल के साथ पलामू जिला पांचवे स्थान पर है. यानी अबतक 23.93 लाख क्विंटल की खरीददारी में पांच जिलों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से ज्यादा है.
इस तुलना को समझना है तो साल 2020-21 के डाटा पर भी नजर डालना होगा. उस वर्ष झारखंड सरकार ने 6 लाख मिट्रिक टन यानी 60 लाख क्विंटल धान खरीद का लक्ष्य रखा था. इसकी तुलना में टारगेट से कहीं ज्यादा यानी 6.25 लाख मिट्रिक टन धान की खरीद हो गई थी. इसके लिए 2,27,169 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. जबकि इसका फायदा 1,03,026 किसानों ने उठाया था. लेकिन बाद में पता चला कि इसमें ज्यादातर फर्जी किसान थे.