रांची: झारखंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है लिहाजा, लोगों को सजग होने की जरूरत है. चेहरे पर मास्क के अलावा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना बेहद जरूरी है, लेकिन इसकी अनदेखी होने लगी है. खासकर सब्जी बाजारों में तो सोशल डिस्टेंसिंग की साफ अनदेखी हो रही है. क्या ज्यादातर लोगों ने यह मान लिया है कि कोरोना अब घातक नहीं रहा, क्या अब इससे घबराने की जरूरत नहीं है. इन्हीं सवालों को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने झारखंड के चर्चित न्यूरो सर्जन डॉक्टर संजय कुमार बात की.
'कोरोना को हल्के में न लें'
डॉक्टर संजय ने बताया कि इससे घबराने की कतई जरूरत नहीं है, लेकिन इससे हल्के में लेना बड़ी मुसीबत को चुनौती देने के समान है. उन्होंने कोविड-19 पर अंतरराष्ट्रीय अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि झारखंड में अब तक कोरोना का जो नेचर दिखा है वह घातक नहीं है. यहां ज्यादातर एसिंप्टोमेटिक संक्रमित हैं, जिनमें बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखते और लोग तेजी से स्वस्थ भी हो रहे हैं, लेकिन ऐसे संक्रमित लोग इस बीमारी को फैलाने में कैरियर का काम करते हैं. इसका सीधा नुकसान वैसे लोगों को होता है जो दूसरी बीमारियों से पहले से ग्रसित हैं.
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'ओडिशा मॉडल कारगर'
डॉक्टर संजय ने कहा कि झारखंड में अभी तक कोरोना का संक्रमण नियंत्रण में है, लेकिन बचाव के प्रति लोगों की लापरवाही जारी रही तो आगे कुछ भी हो सकता है. यह पूछे जाने पर कि अगर झारखंड में हालात बिगड़ जाएं और सरकारी कोविड हॉस्पिटल में जगह नहीं बचे तो ऐसी स्थिति में निजी अस्पतालों की भूमिका क्या हो सकती है. निजी अस्पतालों में कोरोना का इलाज कराना आम लोगों के बस की बात नहीं है. इसके जवाब में उन्होंने ओडिशा सरकार के मॉडल का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि ओडिशा सरकार ने कई निजी अस्पतालों को अपने नियंत्रण में ले रखा है ताकि संक्रमितों का इलाज आसानी से हो सके और आम लोगों पर किसी तरह का आर्थिक दबाव न पड़े.