रांची: कृषि कानून के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान सड़कों पर डटे हुए हैं, लेकिन झारखंड में इस कृषि कानून को लेकर किसी भी प्रकार का किसानों के द्वारा प्रदर्शन या विरोध खुलकर देखने को नहीं मिल रहा है. झारखंड के किसान इस कानून को किस तरीके से देखते हैं. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने किसानों से बातचीत की और जानने की कोशिश की आखिर इस कृषि कानून का झारखंड के किसान किस तरीके से देखते हैं. इस कानून से किसानों को लाभ होगा या फिर नुकसान इन तमाम चीजों को लेकर बातचीत की गई, जिसको लेकर किसानों का मिलाजुला राय देखने को मिला.
रांची जिले के कांके प्रखंड के किसान रामलगन की माने तो केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए यह कृषि कानून को लेकर किसान को अभी तक पूरी तरह से जानकारी नहीं है कि इस कानून के लागू होने से किसानों को किस तरह का से लाभ होगा या फिर हानि. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इसको लेकर सरकार को किसानों को जागरूक करना चाहिए. झारखंड में इस बिल को लेकर किसी भी प्रकार के आंदोलन नहीं होने पर उन्होंने कहा कि झारखंड में सीमांत किसान हैं. ऐसे में वह छोटे-छोटे जोत वाले किसान खेती करते हैं.
ये भी पढ़ें: खूंटीः आदिवासी छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म, पांच युवकों ने दिया वारदात को अंजाम
वहीं, किसान परवेज खान की माने तो झारखंड में इस बिल का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि कोई भी यहां पर किसान बृहद रूप से खेती नहीं करता है. यहां से जितने भी किसान हैं वह छोटे-छोटे किसान हैं. ऐसे में इस बिल का झारखंड के किसानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यही कारण है कि यहां के किसान इसका विरोध नहीं कर रहे हैं. कांके प्रखंड के पिठौरिया निवासी प्रगतिशील किसान नकुल महतो की माने तो पंजाब और हरियाणा में जिस तरीके से खेती होती है उस पैमाने पर झारखंड में खेती नहीं होती है. यहां सिर्फ मोटे अनाज की खेती होती है. यही कारण है कि पंजाब और हरियाणा के किसान सड़कों पर इस बिल का विरोध कर रहे हैं. झारखंड में इस बिल का विरोध नहीं हो रहा है क्योंकि झारखंड में छोटे किसान है और छोटे किसानों को इस बिल से फायदा होगा नुकसान नहीं हो सकता है.